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शुक्रवार, 11 अक्टूबर 2019

1547....ये मुई लड़कियां तो बस बोझ होती है

स्नेहिल अभिवादन
-------
आत्ममंथन के क्षण में
स्वयं के भीतर झाँककर
विचारों का पुलिंदा अवश्य खोलिये
साहित्य साधना है कि साधन?
प्रश्न यह समयपरक
कभी तो आत्मा टटोलिये
स्वयं के विज्ञापन में
लेखनी की सौदागरी..?
स्वार्थ के लबादे का वज़न तोलिये।

★★★★★★

जितनी मीठी आवाज़ उतनी ही 
विचारपूर्ण संवेदनशील मन की सुंदर अभिव्यक्ति


सत्य,अहिंसा वृद्ध हो गए
झूठ और हिंसा धर्म हुए -2

सत्याग्रह भी कहीं खो गए

लिंचिंग में कितने प्राण गए

वो स्वावलम्बी चरखा तेरा

छूटा सूत का स्वदेशी फेरा

सिर ढके विदेशी परिधान
देश तेरा बहक रहा
तुम कहाँ गए बापू....

★★★★★★★
विचारों को आंदोलित करती युवा वर्ग के मन का 
प्रतिनिधित्व करती मार्मिक सराहनीय कृति

किसने तुझे कहा,
लड़के ही वंश बढ़ाते है,
ये मुई लड़कियां तो बस बोझ होती है।
एक बार आने तो दिया होता,
दुनिया में तुम्हारी,
पर ....!
तू इतना भी ना कर सकी,
मेरी मां,
लड़ जाती मेरी खातिर सबसे
और रख ये प्रश्न....!

★★★★★

जीवन की विसंगतियों को शब्द देकर मानव मन को 
झकझोरती बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

यहाँ पता नही किसी नियत का
ये क्या कि आप ईमान ढूंढते हो !

आईनों में भी दग़ा  भर गया यहां
अब क्या सही पहचान  ढूंढते हो !

घरौदें  रेत के बिखरने ही तो  थे,
तूफानों पर क्यूं इल्जाम ढूंढते हो !

★★★★★★

प्रकृति की विभीषिका पर मानवीय स्वार्थ पर प्रश्न उठाती, सुंदर कृति।
बदइंतजामी से बेहाल है बादल
कहीं है जंगल फांका-फांका,
कहीं भूखंड है पड़ा विरान।
असमंजस में बादल, कहीं फूट पड़ा
जन जीवन हुआ इतर-बितर।
असमय व्यवहार इसका,
हदें तोड़ दी जरूरतों की।


★★★★★★

प्रेम का हर रुप मोहक होता है, समर्पित भावों में

पगी खूबसूरत अभिव्यक्ति


माना कि ...
नहीं हैं पास हमारे
मनलुभावन दौलत .. रुतबे
या ओहदे के सुगन्ध प्यारे
पर मनमोहक .. मनभावन ..
प्यार का रंग तो है
जो तपती जेठ की
दुपहरी में भी
खिली-खिली रंगीन
बोगनवेलिया के फूलों की
पंखुड़ियों-सा दमकता है ...

★★★★★★★

व्रत या त्योहार हमारी परंपरा और संस्कृति की अमूल्य धरोहर है, प्रेम अंधविश्वास नहीं होता है जीवन का आधार होता है व्रत करना न करना किसी का भावनात्मक निर्णय,कोई अगर व्रत न कर पाये तो उसपर प्रश्न उठाकर कटघरे में खड़ा कितना न्यायोचित?
इसी सत्य उजागर को करती एक कहानी


हमारी पत्नियाँ तो हमारी लंबी उम्र के लिए पूरे दिन भर व्रत रखती हैं। चाँद निकलने तक कुछ नहीं खाती। मेरी पत्नी तो पानी भी नहीं पीती! रात को चाँद देख कर मेरे हाथ से जल पीकर ही व्रत समाप्त करती हैं!! 
मैं भी अपना प्यार जताने के लिए करवा चौथ का व्रत करता हूं!' 
पंकज ने कहा। 
अनिल ने कहा, 'अपने-अपने विश्वास की बात हैं। 
हम दोनों नहीं मानते ये सब।' 

★★★★★★★
हम-क़दम का नया विषय

★★★★★★★

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16 टिप्‍पणियां:

  1. आत्ममंथन के क्षण में
    स्वयं के भीतर झाँककर
    विचारों का पुलिंदा अवश्य खोलिये
    साहित्य साधना है कि साधन?
    प्रश्न यह समयपरक
    कभी तो आत्मा टटोलिये
    स्वयं के विज्ञापन में
    लेखनी की सौदागरी..?
    स्वार्थ के लबादे का वज़न तोलिये
    🤔क्या इतनी फुर्सत मैं निकालने देती है...

    अति सुंदर सराहनीय प्रस्तुतीकरण

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी सादर प्रणाम दी,
      आपका चिंतन, आपकी कर्मठता, सेवाभाव और क्रियाशीलता आपको विशेष बनाती है जो सदैव अनुकरणीय है।

      हटाएं
  2. श्वेता दी,हर ब्लॉग पोस्ट पर उस ब्लॉग पोस्ट के बारे में कम शब्दों में बहुत कुछ बताने की आपकी कला सराहनीय हैं।
    मेरी रचना को "पांच लिंको का आनंद" में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद,दी।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर प्रस्तुति।
    सटीक प्रश्न करती भुमिका ।
    सभी लिंक शानदार,
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
    सभी रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई

    जवाब देंहटाएं
  5. बेहतरीन प्रस्तुति ,हर एक रचना एक गंभीर सवाल लिए हुए ,सबको सादर नमन

    जवाब देंहटाएं
  6. अंक बड़ा शानदार लगा।
    उम्दा लिंक्स पिरोए हुए हैं।

    जवाब देंहटाएं
  7. आत्मचिंतन करने के लिए मजबूर करती रचनाएँ।
    बेहतरिन प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  8. वाह लाजवाब प्रस्तुति आदरणीया दीदी जी बहुत सुंदर संकलन। सभी रचनाएँ बेहद उत्तम 👌 सभी को खूब बधाई।
    मेरी रचना को स्थान देने हेतु हृदयतल से हार्दिक आभार
    सादर नमन शुभ रात्रि

    जवाब देंहटाएं

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