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शनिवार, 19 अक्तूबर 2019

1555...नासमझी..

पद्मश्री डॉ. उषा किरण खान:-
सन् ४० के रामगढ़ कैम्प का वाक़या है -- पृथ्वीराज नामक गांधीजन थे, उनकी खटखट सुमनजी नामक साथी से चलते चलते बहुत बढ़ गई। उन्होंने बड़े तैश में आकर बापू से कहा कि वे उसके साथ काम न करेंगे, दोनों को एक ही विभाग बाँटा हुआ था। बापू के कारण पूछा तो वे बोले-- वह मेरा पक्का दुश्मन है"
तो उससे मित्रता कर लो , साधारण बात है-"- वे मुस्कुराये । पृथ्वीराज और सुमन जी के पास कोई चारा न था।
पर क्या हम ऐसा करते हैं? क्षणिक आवेश पर हुए झगड़ों को दुश्मनी में तब्दील कर लेते हैं।
-लोकगीत में छंद की तरह गाती हैं अपढ़ बहनें --
कागा कोयल सेबि के, पंछी दिया उड़ाय --
वसुधा काहू की न भई


और कोई दोस्त भी न हो आस पास
तो असुरक्षा को
शहर की बिल्लियों से दोस्ती करके
कैसे दूर भगाया जा सकता है
कैसे शहर की गलियां और साईकिल रिक्शा वाला
आत्मीय हो जाता है 


थके मुद्दतों राह में जिनकी चलकर,
वो दर तक भी आये न घर से निकलकर।

मिलने का वादा उनके तो मुंह से निकल गया,
पूछा जगह जो मैंने, कहा हंस के ख्वाब में।


यद्यपि सम्पूर्ण गद्य नाटक में बीच बीच में कविताओं के प्रयोग का चलन तो काफी समय से है और इसकी सराहना भी दर्शकों द्वारा की जाती रही है लेकिन सम्पूर्ण कविता की काव्य पंक्तियों पर अभिनय के साथ प्रस्तुति उल्लेखनीय है ।  गद्य नाटक में बीच बीच में कविताओं की प्रस्तुति के विषय में रंग निर्देशक निसार अली ने ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा है कि "यह दुःख का विषय है कि अनेक बार मंचन के समय ऐसे कवियों का उल्लेख भी नहीं किया जाता न ब्रोशर में उनका नाम होता है बल्कि यह कविताएँ एक फिलर के रूप में उपयोग में लाई जाती हैं ।" बहरहाल यह सम्पूर्ण कविता के मंचन से अलग विषय है ।


जीवन बीमा
के दूत हैं
नाटक में
पात्र हैं
सुंदर से
देवदूत हैं
विज्ञापन में
इंसान हैं
इंसानों में
भूत हैं
बाहर से
सजने सवरने
की मन
चाही है
और खुली
छूट है


सपनों के गणितीय
जोड घटाव के बाद
निर्णय था उसका अन्तिम कि
होनी ही चाहिए प्रेमी की मूँछ
जिससे बना सके वह एक डोंगी


><
नासमझी पर शायरी के लिए इमेज परिणाम

फिर मिलेंगे

अब बस...
तिरानबेवाँ विषय
विषय
दिवाली
उदाहरण...
आई दिवाली फिर से आई
शुरू हो गई साफ सफाई
आई दिवाली आई !

साफ सफाई सीमित घर तक,
रस्तों पर कचरे का जमघट,
बाजारों की फीकी रौनक,
मिली नहीं है अब तक बोनस,
कैसे बने मिठाई !
आई दिवाली आई !

अंतिम तिथि- 19 अक्टूबर 2019
शाम तीन बजे तक
ब्लॉग सम्पर्क फार्म काम नहीं कर रहा है

कृपया मेल करें..
yashodadigvijay4@gmail.com
पर..



8 टिप्‍पणियां:

  1. काश! बापू जैसी सोच हम सभी में होती , तो
    हमारे शास्त्रों में वर्णित  '"वसुधैव कुटुम्बकं' एक आदर्श वाक्य बन कर नहीं रह जाता।

    हर सम्वेदनशील, भावुक और दयालु इंसान ऊपर वाले से कुछ ऐसी ही प्रार्थना तो करता है न-
    गुज़रो जो बाग से तो दुआ मांगते चलो
    जिसमें खिले हैं फूल वो डाली हरी रहे...

    दुश्मन को मित्र बना लेने की कला यदि हममें आ जाए ,तो हमारी धरती भी स्वर्ग से सुंदर हो जाए न ?
    आपकी प्रस्तुति से सदैव कुछ सीखने का अवसर मिलता है। सादर नमन ,सभी रचनाकारों को प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं
  2. सादर नमन..
    कम्माल की प्रस्तुति..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  3. सुप्रभात दी,
    सारगर्भित तथ्य समेटे हमेशा की तरह लाज़वाब अंक सभी रचनाएँ बहुत अच्छी हैं।

    जवाब देंहटाएं
  4. पद्मश्री डॉ. उषा किरण खान का प्रेरक प्रसंग लाजवाब है।
    'नासमझी' पर आधारित रचनाएँ बहुत अच्छी लगीं।
    सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  5. भुमिका बहुत प्रेरक और रोचक , शानदार प्रस्तुति उम्दा संकलन।

    जवाब देंहटाएं

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