इक्यानवेवाँ विषय
पर्दा / पर्दे / परदा / चिलमन /
उदाहरण..
पूरा
कर लें मनभेद
इस से
अच्छा माहौल
आगे
होना भी नहीं है
झूठ सारे
लिपटे हुऐ हैं
परतों में
पर्दे में
नहाने की
जरूरत
भी नहीं है
बन्द
रखनी हैं
बस आँखें
रचनाकार....डॉ. सुशील जी जोशी
दिन भर ब्लॉगों पर लिखी पढ़ी जा रही 5 श्रेष्ठ रचनाओं का संगम[5 लिंकों का आनंद] ब्लॉग पर आप का ह्रदयतल से स्वागत एवं अभिनन्दन...
आभार। कृपया ब्लाग को फॉलो भी करें
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बड़े-बड़े दुर्गा पंडाल में मूर्तियाँ स्थापित की गई हैं। बिजली उपकरणों के सजावट पर लाखों खर्च हुए हैं। भारी चहल-पहल बाजारों में है , लेकिन हमारी रामलीला विलुप्त होने को है। इसका उल्लेख हम प्रबुद्धजन मौखिक और लिखित करते हुए अपनी इस धरोहर को बचाने विधवा विलाप करते हैं , परंतु धरातल पर हमारा होमवर्क शून्य है। प्रबुद्ध वर्ग अथार्त पत्रकार ,राजनेता साहित्यकार और भी मुहल्ले के सम्मानित जन एक प्रतिनिधिमंडल के रुप में किसी दुर्गा पूजा कमेटी के सदस्यों के पास यह समझाने कभी नहीं जाते कि बच्चों इस बार तुमने जो चंदा उतारा है उसका एक हिस्सा अपने क्षेत्र की रामलीला को संवारने में भी लगा । संभव है इन बुजुर्गों का सुझाव ये कमेटी वाले मान भी ले और फिर से बोल दो राजा रामचंद्र की जय ... का वह उद्घोष सुनने को मिले। लेकिन, ऐसा नहीं हम लोग जो भी सृजन कार्य करते हैं ,
जवाब देंहटाएंवह कागजों पर करते हैं, इसलिए वह सफल नहीं होता। वह अखबारों के पन्ने में अगले दिन पांव तले कुचला जाता है अथवा किसी पुस्तक में छिपा पड़ा होता है।
माटी के पुतले की विशालकाय मूर्तियाँ खड़ी हैं और जिस माटी में जान थी । वह राम, लक्ष्मण , सीता और हनुमान बनती थी।
उसे निर्जीव करने में हम जुट गये हैं।
सभी को प्रणाम। अनवरत बारिश के बावजूद भी दुर्गा पंडालों की रौनक देख अचानक रामलीला और दशहरे की याद आ गई।
यह भी एक त्रासदी ही है कि हमारे वे धरोहर जिनसे बचपन में ही नैतिक मूल्य मजबूत होते थें, मर रहे हैं।
हटाएंइसलिये इस बाढ़ और बारिश में जहाँ लाखों आशियाने उजड़े हैं,हम तीन दिन के लिये विशाल पंडाल सजाये बैठे हैं।
अब सब कुछ आपका वोट है। पंडाल और मूर्तियाँ भी।
हटाएंआजाद भारत में यही वोट ही तो बेड़ा गर्क किए हैं
हटाएंसुप्रभात दी जी 🙏)
जवाब देंहटाएंपीड़ा में पगे आपके भाव तन नहीं मन मर रहा है |
नि:शब्द आपकी प्रस्तुति पर दी
सादर
समझ रहे हैं। भारतीय होने के नाते।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा विषय चयन
जवाब देंहटाएंबाढ़
जवाब देंहटाएंऔर
तूफान
कुदरती प्रक्रिया है
इन्सान के वश में नहीं
पर जिस तरह तूफान का मुकाबला करने को पूर्णरूपेण तैय्यरिया होती है
बाढ़ की क्यों नही होती
हर वर्ष बिहार में बाढ़ आती है..
निपटा भी जाता है
इस साल तो अति हो गई
दोष किसका..हनि तो जन-जन की हुई
बचाव कार्य में नागरिको का सहयोग स्तुत्य है
आगे ईश्वरेच्छा...
सद्भावनाओँ के साथ..
जी दी,
जवाब देंहटाएंहम बस इतना ही कहेंगे आप और आपकी टीम और जो भी अनाम लोग इस समय संकट की विषम परिस्थितियों से स्थानीय लोगों का सहयोग कर रहे हैं उसके लिए कोई शब्द नहीं कि हमको क्या कहना चाहिए त्थ ऐसा महसूस हो रहा वही इंसानियत और मानवता की सही परिभाषा है।
सादर प्रणाम दी।
कुछ शब्दों में मन की व्यथा परहितार्थ को बहुत सार्थक ढ़ंग से उकेरा है आपने।
जवाब देंहटाएंआज के लिंक पर (नुतन जी) बहुत ही शानदार रचनाएं पढ़ने को मिली काफी हटकर हैं हृदय तक उतरती ।
परहितार्थ आप व आपकी संस्थाएं जो काम कर रही है उस के लिए हृदय तल से साधुवाद।
प्रस्तुति बहुत शानदार हैं।