हैप्पी सण्डे...
खुशनुमा रविवार...
नया कुछ नहीं
पितृ-पक्ष चालू आहे....
बातें ज़ियादा वक्त ख़राब कर देता है....
चलिए चलें....
आने दो, माँ को, मेरी!....विश्वमोहन
चलो हटो!
आने दो
माँ को मेरी.
करने पवित्र
देवत्व मेरा.
छाया में
ममता से भींगी
मातृ-योनि की अपनी!
यक़ीनन हम इंतज़ार में हैं.....अभिलाषा अभि
कभी तो थोड़ा हंस दिया करो
जब हम खुश होते हैं,
कभी तो दिल बहला दिया करो
जब ये आंसू रोते हैं,
उस छोटी सी तिपाई पर
याद है न,
नुक्कड़ वाली दुकान में
जब वो 'चाय' ठुकराई थी हमने
और वो खूबसूरत सा इतवार
जब 'कॉफ़ी' का ऑफर था तुम्हारा
मतलबी....आशा सक्सेना
घर में सेवा कभी न की
अब ढोते हो दूसरों को
कंधे पर कावड़ टांग कर
यह कहाँ का है न्याय|
घर से ही आरम्भ करो
परमार्थ की प्रक्रिया
तभी सफल हो पाएगी
जीवन की अभिलाषा |
मेरी बेबसी तेरा अहंकार....राजीव
कुछ बोल पड़ूँ,
तो कहते हैं ग़द्दार है
जब चुप रहूँ,
तो ज़ाहिर है लाचार है
बेज़ुबान तो हूँ नहीं,
लिए फिरता जज़्बात कई,
कुछ बोलने का हक़ कहाँ,
हर हर्फ़ मेरा बेज़ार है
जीना नहीं है आसान...मालती मिश्रा 'मयंती'
जीना नहीं है आसान खुद को भुला करके
नया शख्स बनाना है खुद को मिटा करके
मिटाकर दिलो दीवार से यादों के मधुर पल
इबारत है नई लिखनी पुरानी को मिटा करके
माना कि जी रहे हम दुनिया की नजर में
चाँद भी मुस्काया मेरी हस्ती को मिटा करके
वृद्ध होती माँ........सुधा देवराणी
हौसला रखकर जिन्होंने हर मुसीबत पार कर ली ,
अपने ही दम पर हमेशा, हम सब की नैया पार कर दी ।
अब तो छोटी मुश्किलों से वे बहुत घबरा रही हैं,
वृद्ध होती माँ अब मन से बचपने में जा रही हैं ।
नारी तू अपराजिता....पंकज प्रियम
भला किसने कभी तुमसे
यहां कोई जंग है जीता
सदा ही हार मिली सबको
नारी तुम सदा हो अपराजिता
आज बस
आज्ञा दें
दिग्विजय
खुशनुमा रविवार...
नया कुछ नहीं
पितृ-पक्ष चालू आहे....
बातें ज़ियादा वक्त ख़राब कर देता है....
चलिए चलें....
आने दो, माँ को, मेरी!....विश्वमोहन
चलो हटो!
आने दो
माँ को मेरी.
करने पवित्र
देवत्व मेरा.
छाया में
ममता से भींगी
मातृ-योनि की अपनी!
यक़ीनन हम इंतज़ार में हैं.....अभिलाषा अभि
कभी तो थोड़ा हंस दिया करो
जब हम खुश होते हैं,
कभी तो दिल बहला दिया करो
जब ये आंसू रोते हैं,
उस छोटी सी तिपाई पर
याद है न,
नुक्कड़ वाली दुकान में
जब वो 'चाय' ठुकराई थी हमने
और वो खूबसूरत सा इतवार
जब 'कॉफ़ी' का ऑफर था तुम्हारा
मतलबी....आशा सक्सेना
घर में सेवा कभी न की
अब ढोते हो दूसरों को
कंधे पर कावड़ टांग कर
यह कहाँ का है न्याय|
घर से ही आरम्भ करो
परमार्थ की प्रक्रिया
तभी सफल हो पाएगी
जीवन की अभिलाषा |
मेरी बेबसी तेरा अहंकार....राजीव
कुछ बोल पड़ूँ,
तो कहते हैं ग़द्दार है
जब चुप रहूँ,
तो ज़ाहिर है लाचार है
बेज़ुबान तो हूँ नहीं,
लिए फिरता जज़्बात कई,
कुछ बोलने का हक़ कहाँ,
हर हर्फ़ मेरा बेज़ार है
जीना नहीं है आसान...मालती मिश्रा 'मयंती'
जीना नहीं है आसान खुद को भुला करके
नया शख्स बनाना है खुद को मिटा करके
मिटाकर दिलो दीवार से यादों के मधुर पल
इबारत है नई लिखनी पुरानी को मिटा करके
माना कि जी रहे हम दुनिया की नजर में
चाँद भी मुस्काया मेरी हस्ती को मिटा करके
वृद्ध होती माँ........सुधा देवराणी
हौसला रखकर जिन्होंने हर मुसीबत पार कर ली ,
अपने ही दम पर हमेशा, हम सब की नैया पार कर दी ।
अब तो छोटी मुश्किलों से वे बहुत घबरा रही हैं,
वृद्ध होती माँ अब मन से बचपने में जा रही हैं ।
नारी तू अपराजिता....पंकज प्रियम
भला किसने कभी तुमसे
यहां कोई जंग है जीता
सदा ही हार मिली सबको
नारी तुम सदा हो अपराजिता
आज बस
आज्ञा दें
दिग्विजय