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सोमवार, 9 मई 2016

297....सात बार चाबी घुमाओ दो घंटे तक पंखे की हवा खाओ..

सादर अभिवादन स्वीकारें..
मदर्स डे
कल निपट गया
पर लिपट गया ब्लॉग जगत से 
पूरे हफ्ते तक....
हम पूरे मनोयोग से मनाते हैं
कोई भी उत्सव....
कल का दिन खुशी लेकर आया
मेरी सहेली रीतिका के लिए
वो प्रथम बार..माँ बनी
वो बहुत खुश है... 
प्यारी - सी बेटी पाकर
शुभकामनाएँ उसे...

चलिए चलें आज की पढ़ी रचनाओं की ओर

है सलामत मेरे सर पर,
माँ का आँचल जब तलक।
कैसी भी आएं मुश्किलें,
छू न सकेगी तब तक।

हाइकू गुलशन में.....सुनीता अग्रवाल
पंख ही नहीं
दिशा व हिम्मत भी
माँ ने ही दिया


अभिनय हो नहीं पाता सो सीन से निकल लेता हूं
संबंधों में लड़ नहीं पाता बस रास्ता बदल लेता हूं

दिख जाते हैं अब भी कभी कभार वह चौराहे पर 
सिगरेट सुलगाता हूं सुलगता हूं और चल देता हूं


कई बार मन खिन्न हो जाता है
लगता है एक मै ही हूँ, जो परेशान है
मेरे ही पास बहुत काम है
मुझे कुछ ऐसा नही मिला, जिसके लिये खुश रहूँ

ज़ख्म जो फूलों ने दिए में....वन्दना गुप्ता
जन्म मृत्यु के द्वार तक जाकर
तुझको जीवनदान दिया है
ये तू भूल सकता है
बेटा है ना ............
मगर वो माँ है ............


अंत में एक अविष्कार.....
समाधान में..विवेक सुरंगे
सात बार चाबी घुमाओ
दो घंटे तक पंखे की हवा खाओ...
दुमका के रहने वाले निरंजन शर्मा ने 13 साल की मेहनत के बाद चाबी से चलने वाले पंखे का आविष्‍कार किया है। पेशे से बढ़ई निरंजन अपनी दसवीं की पढ़ाई भी पूरी नहीं कर पाए थे। लेकिन अपनी इच्‍छा शक्ति और मेहनत के दम उन्‍होंने यह सफलता हासिल कर ली है।

आज्ञा दें...
मिलेंगे ही...
सादर
यशोदा..












5 टिप्‍पणियां:

  1. शुभप्रभात...

    सुंदर संकलन....

    जवाब देंहटाएं
  2. नमस्कार। मातृ दिवस के उपलक्ष्य में रची गयी रचनाओ के अलावा भी ग़ज़ल और चाभी वाले पंखे के अविष्कार से जुड़ी जानकारी ने संकलन में चार चाँद लगा दिए। इनके मध्य मेरी रचना को यहाँ स्थान देने के लिए हार्दिक आभार ☺

    जवाब देंहटाएं
  3. नमस्कार। मातृ दिवस के उपलक्ष्य में रची गयी रचनाओ के अलावा भी ग़ज़ल और चाभी वाले पंखे के अविष्कार से जुड़ी जानकारी ने संकलन में चार चाँद लगा दिए। इनके मध्य मेरी रचना को यहाँ स्थान देने के लिए हार्दिक आभार ☺

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति हेतु धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं

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