शीर्षक पंक्ति: आदरणीय ओंकार जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
नया गुरुवारीय अंक लेकर फिर हाज़िर हूँ।
अफ़सोस कि ब्लॉगर रीडिंग लिस्ट में हमारा पिछला अंक प्रकाशित होने के उपरांत रात्रि 11:30 PM (25.06.2025) तक केवल एक रचना "वो दबी-सी आवाज़" ही
नज़र आई। दो अन्य रचनाएँ बीते रोज़ प्रकाशित हो चुकी थीं जिन्हें इस अंक में शामिल
किया गया है। तात्पर्य यह है कि ब्लॉगर पर सृजन से मोहभंग की स्थिति से हम गुज़र
रहे हैं।
आपकी सेवा में आज प्रस्तुत हैं तीन रचनाएँ-
प्रेम कविता | उसे पढ़ता है प्रेम | डॉ (सुश्री) शरद सिंह
पुराना घर हो या सूखा हुआ फूल
हमेशा लिखते हैं
यादों की नई इबारत
उसे पढ़ता है प्रेम
बड़े प्रेम से
वर्षों बाद भी।
*****
नहीं उड़ते परिंदे,
लड़ाकू विमान दिखते हैं,
ड्रोन उड़ते हैं।
*****
दिल को कहो,
के कभी अपनी भी सुनी जाये,
सारी दुनिया की बात होती है,
बस वो दबी सी आवाज़
दबी ही रह जाती है,
*****
फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
पुरानी बिमारी को उकेर दिया आपने
जवाब देंहटाएंलिखास तो है पर प्रकाशित हो रही है
फेसबुक में और धड़ल्ले कॉपी हो रही है
कल के अंक के लिए एक आलेख तो बनता है
बनाइए या लिखवाइए किसी से .....
आभार
वंदन
सुंदर लिंक्स। आभार
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