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गुरुवार, 20 मार्च 2025

4433...मन चंगा तो कठौती में गंगा!

शीर्षक पंक्ति: आदरणीया नूपुरं जी की रचना से।

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक में पढ़िए विभिन्न ब्लॉग्स पर सद्य प्रकाशित पाँच रचनाएँ-

अफ़सोस कि सद्य रचनाएँ लिखने की मेरी समझ की संभावना पर तुषारापात हुआ क्योंकि ब्लॉगर रीडिंग सूची में प्रस्तुति तैयार करते समय 19.03.2025 सांय 6 बजे तक केवल एक रचना 'स्वर्ण-विहान' ही नज़र आई। लगता है ब्लॉग-जगत का दिवाला निकल चुका है!

मुट्ठी भर की गौरैया

छपाक-छपाक खूब नहाना!

मन चंगा तो कठौती में गंगा!

तिनके जोङ नीङ बनाना!

चारों दिशाओं में चहचहाना!

*****

एकाकीपन

तेरी तरह

जब कोई गलतियों पर

न हो नाराज

तेरी तरह

जब कोई टोके नहीं

घर से बाहर निकलते हुए

मेरी तरह

यह आजादी नहीं

एकाकीपन है!

*****

स्वर्ण-विहान

रंग - बिरंगे  फूल खिलें है,

मुख पर ले मुस्कान।

रंग- बिरंगी उड़ी तितलियाँ,

कर  रहे  रस  पान।

*****

लड्डू गोपाल जी के संरक्षण में चल रही एक मिठाई की दुकान

बलपुर के नेपियर टाउन में रहने वाले ऐसे ही एक प्रभु भक्त हैं, विजय पांडे जी। उनका मिठाई का कारोबार है। उनकी बचपन से ही श्री कृष्ण जी के बालरूप लड्डू गोपाल में गहरी आस्था व श्रद्धा है। चौबीस घंटे खुली रहने वाली उनकी दुकान 2014 से मंदिरों और पूजास्थलों के साथ-साथ श्रद्धालुओं की मांग पूरी करती आ रही है। पर उस दूकान में ना हीं कोई मालिक है, ना हीं कोई विक्रेता है, ना हीं कोई कैशियर है, ना हीं कोई सुरक्षा कर्मी ! यह दुकान पूरी तरह से विश्वास और ईमानदारी पर टिकी हुई है और पूरी तरह से भगवान के भरोसे चल रही है। यहां आने वाला हर ग्राहक अपनी जरूरत के अनुसार मिठाई उठाता है और पूरी ईमानदारी से पैसे रखकर चला जाता है।

*****

दुआ की ताकत

विदा होकर आई नव-वधू इस सब चिन्ताओं से अनभिज्ञ ऊपर की मंजिल पर अपने कमरे में अकेली बैठी खिड़की से बाहर झांक रही थी। सहसा उसकी दृष्टि बाहर खेत में गई तो देखा खेत में घास काट रही एक गरीब स्त्री प्रसव पीड़ा से जमीन पर पड़ी छटपटा रही है, उसका मन विचलित हो गया पर आसपास कोई नहीं, नया घर, किसी को जानती नहीं तो संकोचवश विवश होकर चुपचाप देखती रही।

 *****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 


5 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन अंक
    आभार
    सादर
    वंदन

    जवाब देंहटाएं
  2. गौरैया दिवस पर गौरैया की बात प्रकाशित हो गई, इस बात का संतोष हुआ। धन्यवाद, रवींद्रजी। प्रसन्नता दिवस भी लगे हाथ मन गया। शीर्षक में भी मन चंगा और कठौती में गंगा प्रवाहित हो गई ! पर आपकी भूमिका खिन्न मन से लिखी गई, इस बात का अफ़सोस है। ब्लॉग लेखन के दिन पूरे होते दिखाई देते हैं। संभवतः ... गौरैया की तरह ... बहुत सारे मंच उपलब्ध हैं.. आय भी हो जाती है और पाठक भी मिल जाते हैं, सिलसिलेवार लिखो तो। क्या इन्ही मंचों पर बिखर गए सब लोग ? कहाँ गए ? गौरैया के लिए दाना-पानी,घर जुटाया जा सकता है। ब्लॉग लेखन के लिए कोई संजीवनी नहीं ? मार्गदर्शन कीजिए।

    जवाब देंहटाएं
  3. रवींद्र जी, सभी रचनाएं पढ़ीं। सबकी कलम से उम्मीद छलक रही है। सकारात्मक संयोजन के लिए आपका पुनः आभार। रचनाकारों का अभिनंदन। नमस्ते। फिर मिलेंगे ! ज़रूर !

    जवाब देंहटाएं

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