मृगतृष्णा का आभास
अथाह बालू के समन्दर में ही नहीं होता
कभी-कभी हाइवे की सड़क पर
चिलचिलाती धूप में भी
दिख जाता है बिखरा हुआ पानी
बस…,
मन में प्यास की ललक होनी चाहिए
निःशब्द कर जाता है फिर से दर्पण का
सवाल, अस्तगामी सूर्य के साथ
डूब जाता है विगत काल ।
आदिम युग से बहुत
जल्दी लौट आता
है अस्तित्व
मेरा
सुंदर अंक
जवाब देंहटाएंलगता है नम्बरिग में कुछ गलती हुई है
अगला अंक 4442 होगा
सादर वंदन
बहुत ही सुंदर प्रस्तुतियाँ !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर संकलन । सभी सूत्र लाजवाब और बेहतरीन ।मेरे सृजन को आज के संकलन में सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार श्वेता जी!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अंक!
जवाब देंहटाएंसुंदर अंक
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