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गुरुवार, 6 मार्च 2025

4419 ...चलो भूल जाते हैं अब उन खताओं को

 सादर नमस्कार

भाई रवींद्र जी लगता है प्रस्तुति शेड्यूल करना भूल गए
प्रतीक्षा करता हूं 5 बजे तक
फिर इसे पोस्ट कर दूंगा
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हे प्रियतम तुम रूठी क्यों
है कठिन बहुत पीड़ा सहना
इस कठिन घड़ी से जो गुज़रा
निःशब्द अश्रु धारा बनकर
मन की पीड़ा बह निकली तब
है शब्द कहाँ कुछ कहने को
धीरज धरने का धैर्य कहाँ





हर बरस
फागुन के मौसम में
ढाक के गंधहीन फूलों को
बदन पर मल-मलकर
महुआ की गंध से मतायी
मेरी श्वासों की सारंगी
समझने का प्रयास करती है
जीवन का अर्थ...।






स्त्रियों की मुस्कुराहट
सबसे खूबसूरत होती है
जब वे होती हैं नींद में
कभी स्त्रियों को नींद में मत जगाना
हो सकता है वे कर रही हों
तुम्हारे लिए प्रार्थना ही !






खुदी को सौंप कर जिस घड़ी देखा
वह ख़ुद जैसा बनाये जाता है

न दूरी न कोई भेद है उससे
हमको हमसे मिलाये जाता है


पहली बार नया ब्लॉग



प्रातः   की   धूप   लगती   है  प्यारी
वो   माँ   बन  लुटाने   जो  आ   जाती  है
इस   जग   पर   अपनी   ममता   सारी
आँचल  में   भर   लेती   है  अपने  प्यारों  को
जीवन  को  संवारती  है   सहलाती  है
प्यार   भरी   थपकी    दे   नित
निंदिया   भरे    लोचन   को   जगाती    है






चलो भूल जाते हैं
अब उन खताओं को
जो ला न सकी
बड़ी #आपदाओं को
खुशियों के दरवाजे में
ऐसे #ताला कब तक #आबाद रखूं ।

आज बस
फिर मिलते हैं
वंदन

4 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन अंक। समस्त चयनित रचनाकारों को बधाई।

    मेरी भूल सुंदर अंक बन गई।

    क्षमा!

    समय रहते भूल सुधारने हेतु सादर आभार।

    भूल सुधार हेतु निर्धारित समय बीत जाने के बाद नींद खुली तब ग़लती का एहसास हुआ।

    जवाब देंहटाएं
  2. आप समस्त जनों का हार्दिक धन्यवाद ! एक नए और छोटे से प्रयास को महत्व दे उसे इस महत्वपूर्ण स्थान पर स्थान देने योग्य समझने के लिए ! एक बार फिर हृदय से आप सभी का आभार व्यक्त करती हूँ । ब्लॉग पर प्रकाशित अन्य रचनाएँ भाव - विचार और शब्दों से अत्यन्त ही सुंदर है और उन्हें पढ़ते ही पाठक के मन में भी व्यक्त भाव का संचार होने लगता है । अत्यन्त सुन्दर रचनाएँ अत्यन्त सुन्दर सृजन ।

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहतरीन संकलन आदरणीय । मेरी रचना "खता किस किस की याद रखूं" को इस गरिमामय मंच में स्थान देने के लिए बहुत धन्यवाद । सादर ।

    जवाब देंहटाएं

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