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शनिवार, 1 मार्च 2025

4414, हे अखंड शिव आनंद वेश

शीर्षक पंक्ति: आदरणीया भारती दास जी की रचना से।

सादर अभिवादन।

आइए पढ़तेे हैं आज की पाँच चुनिंदा रचनाएँ-
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आस्था की डुबकी

सुना है सामूहिक भक्ति में बहुत शक्ति होती है तो उस समूह में शामिल होने गए थे। तुमको कहना है भेड़चाल तो कहते रहो, हमें क्या फर्क पड़ता हैहमने देखा वहाँ जाकर अपार सकारात्मक ऊर्जा का सैलाब, जाग्रत चेतना का प्रकाश, भक्ति, तप, समानता का माहौल , जहाँ न कोई अमीर था न गरीब, न जात न पाँत , उत्साह, सनातन की ताकत, तप की प्रबलता। दूर शहरों, गांव देहात से पधारे अनगिनत लोग। न थकन , न कमजोरी, न भूख न प्यास बस एक ही धुन चरैवेतिचरैवेतिहर हर गंगेहर हर महादेव का जयघोष …🙏

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हे अखंड शिव आनंद वेश




भावमयी प्रतिमा की माया

भक्त नेत्रों से रहे निहार

युगल-चरण की शक्ति साधना

प्राणों को देते आधार।

हे सर्वमंगले हे प्रकाशपूंज

करते हैं नमन पद में वंदन

हे अखंड शिव आनंद वेश

कर मोह नाश, कर पाप शमन।

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हिंदी का विस्तार और उसकी विसंगतियाँ

आज हिंदी मुंबई, बेंगलुरु और हैदराबाद में बोली जा रही है और हैरत नहीं होगी कि अगले कुछ वर्षों में चेन्नई में भी सड़कों पर उसे बोलने-समझने वाले मिलें। इसकी वजह है वे प्रवासी कामगार, जो अपना घर छोड़कर इन दूरदराज इलाकों में काम करने जाते हैं। हिंदी-क्षेत्र के लोगों की भी कुछ जिम्मेदारियाँ बनती हैं। उन्होंने ज्ञान-विज्ञान, कला-संस्कृति और सामान्य ज्ञान के विषयों की जानकारी के लिए अंग्रेजी का पल्लू पकड़ लिया है। अधकचरी अंग्रेजी का।

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फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 


2 टिप्‍पणियां:

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