यह निर्विवाद सत्य है कि सभी जीवित प्राणियों की उत्पत्ति जल में हुई है। वैज्ञानिक अब पृथ्वी के अलावा अन्य ग्रहों पर पहले पानी की खोज को प्राथमिकता देते हैं। पानी के बिना जीवन जीवित ही नहीं रहेगा। इसी कारणवश अधिकांश संस्कृतियाँ नदी के पानी के किनारे विकसित हुई हैं। इस प्रकार ‘जल ही जीवन है’ का अर्थ सार्थक है। दुनिया में, 99% पानी महासागरों, नदियों, झीलों, झरनों आदि के अनुरूप है। केवल 1% या इससे भी कम पानी पीने के लिए उपयुक्त है। हालाँकि, पानी की बचत आज की सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता है। केवल पानी की कमी पानी के अनावश्यक उपयोग के कारण है। बढ़ती आबादी और इसके परिणामस्वरूप बढ़ते औद्योगीकरण के कारण, शहरी मांग में वृद्धि हुई है और पानी की खपत बढ़ रही है। आप सोच सकते हैं कि एक मनुष्य अपने जीवन काल में कितने पानी का उपयोग करता है, किंतु क्या वह इतने पानी को बचाने का प्रयास करता है? असाधारण आवश्यकता को पूरा करने के लिए, जलाशय गहरा गया है। इसके परिणामस्वरूप, पानी में लवण की मात्रा में वृद्धि हुई है।
वैश्विक जल संरक्षण के वास्तविक क्रियाकलापों को प्रोत्साहन देने के लिये विश्व जल दिवस को सदस्य राष्ट्र सहित संयुक्त राष्ट्र द्वारा मनाया जाता हैं। इस अभियान को प्रति वर्ष संयुक्त राष्ट्र एजेंसी की एक इकाई के द्वारा विशेष तौर से बढ़ावा दिया जाता है जिसमें लोगों को जल से संबंधित मुद्दों के बारे में सुनने व समझाने के लिए प्रोत्साहित करने के साथ ही विश्व जल दिवस के लिये अंतरराष्ट्रीय गतिविधियों का समायोजन भी शामिल है। इस कार्यक्रम की शुरुआत से ही विश्व जल दिवस पर वैश्विक संदेश फैलाने के लिये थीम (विषय) का चुनाव करने के साथ ही विश्व जल दिवस को मनाने की सारी जिम्मेवारी संयुक्त राष्ट्र की पर्यावरण तथा विकास एजेंसी की हैl
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ठहर कर
एक पल
मादक वसंत
झरने सा
झर झर
बह गया
लहर कर
गाल ऊपर
बाल काले
मोहक छवि
को गढ़ गया
नीले हम आकाश रहे है
नीला निर्मल जल
नीले फूलों से महका है
कलरव करता दल
नीली पहने प्यार चुनरिया
जीवन का हर पल
नीले जल झांका करता है
नित दिन अस्ताचल
उसे बहुत गुस्सा आया। उसने सोचा कि कल गांव वालों की मदद से इस पत्थर को खेत से निकालकर ही दम लेगा। उसने अगले दिन काफी लोगों को खेत में जमा किया। लोगों को देखकर उसने पत्थर को खोदना शुरू किया। दो-तीन बार फावड़ा चलाने पर वह पत्थर बाहर निकल आया।
सबने देखा कि वह पत्थर बहुत ही छोटा था। इतने छोटे पत्थर को देखकर लोगों ने कहा कि इस पत्थर को तुम पहले भी निकाल सकते थे। किसान ने कहा कि मैंने सोचा कि यह बड़ा पत्थर होगा, लेकिन यह तो बहुत छोटा निकला। यदि मैं ऐसा जानता तो पहले ही निकाल दिया होता। बार-बार इतनी चोट क्यों खाता?
शून्य भीतर,
अनहद का नाद,
कौन सुनेगा?
प्यासी मछली,
जग वैतरणी में,
प्यास न बुझी ।
तन का बीज,
मन के तल पर,
खेत हैं मौन।
शब्द बहते
गंगोत्री है मौन की,
सुनेगा कोई?
फिर मिलते हैं
वंदन
सुंदर अंक
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
बहुत दिनों बाद आना हुआ हलचल के इस नायाब मंच पर...यशोदा जी...सभी लिंक बेहद बेहद शानदार हैं , धन्यवाद इतनी खूबसूरत रचनायें पढ़वाने के लिए ...राम राम
जवाब देंहटाएंराधे राधे दीदी
हटाएंवंदन
बहुत सुंदर अंक
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