शुक्रवारीय अंक में आप
सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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धर्म क्या है? शास्त्रसम्मत विचार से जिसे धारण किया जा सके वह धर्म है। स्वाभाविक रूप से धर्म वह धारणीय क्रिया है, जो हमें जीने का रास्ता दिखाती है एवं नेकी पर चलने का मार्ग प्रदर्शित करती है. वैसे हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, जैन, बौद्ध आदि के संबंध में कहा जाता है कि ये धर्म नहीं संप्रदाय हैं. धर्म तो हर मनुष्य का एक ही है, वह है मानव धर्म।
अरस्तू एवं अन्य विशेषज्ञों की नजर में जनता
के
सामाजिक एवं आर्थिक स्तर को ऊंचा करना ही राजनीति का लक्ष्य होता है किंतु सदा से
राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित करने के लिए सत्ता के जोर पर धर्म को प्रभावित कर व्यक्तियों या समूहों को नियंत्रित करने और उन पर अत्याचार करने के लिए किया जाता है, जो प्रायः अपमान, अमानवीयकरण और हिंसा के माध्यम से किया जाता है, ताकि समाज में सत्ता कायम रहे और प्रतिरोध को दबाया जा सके।
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आज की रचनाएँ-
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मोर जो बनाओ तो, बनाओ श्री वृंदावन को,
नाच नाच घूम घूम, तुम्ही को रिझाऊं मैं ।
बंदर बनाओ तो, बनाओ श्री निधिवन को,
कूद कूद फांद वृक्ष, जोरन दिखाऊं मैं ॥
न कुछ कहा
न कुछ सुना
बहार चली गई।
अब फिर से बहार का इंतजार है
कुछ सुनने के लिए
कुछ कहने के लिए ...
सोना जब
भट्टी मे तपता है
कुन्दन बनता है ,
और जब कसौटी
पर खरा उतरता है
उसका सही दाम लगता है
उनकी नादानियों की सजा हम अपनी बिटिया को क्यों..........
अरे हम उन मनचलों को रोक नहीं सकते । पर,अपनी बिटिया को तो घर में सुरक्षित.........।
हांँ-हांँ बेटियाँ ही ना बलि का बकरा हो सकती.......।
बेटों को तो छुट्टा साढ़..........
अरे हम यह नहीं कहते कि बेटों को.....
पर बिटिया को समझ कर घर में...........
हमें बिटिया को समझा कर घर में नहीं.........
बेटों को समझाकर बाहर भेजना है कि लड़कियों के साथ किसी भी तरह की.............. पाप है जैसे तुम्हारी मांँ-बहन की आबरू है ।वैसे ही पराई लड़कियों और........।
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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
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जिसे धारण किया जा सके वह धर्म है
जवाब देंहटाएंसुंदर अंक
आभार
वंदन
सार्थक भूमिका और सराहनीय रचनाओं से सजी सुंदर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएं