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मंगलवार, 18 मार्च 2025

4431...गुजरे वो कल,वो यादों के क्षण...

मंगलवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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कार्यार्थी भजते लोकं यावत्कार्य न सिद्धति।उत्तीर्णे च परे पारे नौकायां किं प्रयोजनम्।।

भावार्थ : जिस प्रकार लोग नदी पार करने के बाद नाव को भूल जाते हैं, उसी तरह लोग अपना काम पूरा होने तक दूसरों की प्रशंसा करते हैं और काम पूरा होने के बाद दूसरे को भूल जाते हैं।
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आज की रचनाएँ-

है छोड़ना
सभी मोह माया, उम्र की ढलान पर
है शून्यता की छाया । मंदिर घाट
की सीढ़ियों से उतर कर जल
स्पर्श द्वारा सिंधु पार की है
कल्पना, काश सहज
होता फल्गु नदी
के पार देह
का नव
रूप



गुजरे वो कल, वो यादों के क्षण,
हर पल भिगोए, ये दामन,
जगाए कभी, नींद से झकझोर कर,
रख दें, टुकड़ों को जोड़कर,
उन्हीं लहरों को, मोड़कर,
लाए इधर,
भिगोए, जमीं ये बंजर,
रुखरा-रुखरा सा!



बचपन की बातें हम करते 
अब किससे वो किस्से बाटूं

तुम तो कहते मत जा दीदी 
मुझसे पहले क्यों जल्दी थी 

जाने को तो मैं बढ़ती थी 
पर तुम मुझसे पहले पहुंचे 



इसी अनुभूति की चाह में मैंने भी कलम संभाली। लगभग छह घन्टे की कसरत के बाद एक शोधालेख लिखा गया। खूब जाँच-परख की। लग रहा था कि लिखा तो ठीक है, पर पता नहीं उस अंतरराष्ट्रीय पत्रिका के मानकों के अनुकूल होगा कि नहीं। दिमाग में ये प्रश्न था, पर मेल भेजने के बाद सब राम को समर्पित करके सो गई। लेख प्रकाशन की चिंता से एकदम मुक्त। सुबह जब आँख खुली तो, दिमाग में रात को देखे गए सपने का एक दृश्य तैर रहा था, जो अब तक जीवंत है। 




पहले हर गली मोहल्ले में समूह के समूह एक साथ होली खेलते थे ! आस पड़ोस के हर घर में सबसे मिलने जाते थे और सबके घरों के पकवानों का स्वाद लेते थे लेकिन अब चन्दा जमा करके सामूहिक होली का आयोजन किसी पार्क या खुली जगह पर होने लगा है जहाँ कुछ खाने पीने की व्यवस्था भी होती है ! सब वहीं पर एक दूसरे से मिल लेते हैं इसलिए अब घरों में जाने की परम्परा भी ख़त्म हो गई !



 ★★★★★★★


आज के लिए इतना ही 
मिलते हैं अगले अंक में।

4 टिप्‍पणियां:

  1. कार्यार्थी भजते लोकं यावत्कार्य न सिद्धति।
    उत्तीर्णे च परे पारे नौकायां किं प्रयोजनम्।।
    सुंदर विचार
    काम निकला और निकल भागो
    आभागी नाव
    आभार
    वंदन

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह श्वेता, भूमिका में तो आपने मेरे मन की बात कह दी. पिछले कई दिनों से मैं इसी अनुभव से गुजर रही हूँ. आज दिन में रचनाएँ पढूँगी. सस्नेह.

    जवाब देंहटाएं
  3. अर्थपूर्ण अंक, मुझे सम्मिलित करने हेतु असंख्य आभार ।

    जवाब देंहटाएं

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