आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
कार्यार्थी भजते लोकं यावत्कार्य न सिद्धति।उत्तीर्णे च परे पारे नौकायां किं प्रयोजनम्।।
भावार्थ : जिस प्रकार लोग नदी पार करने के बाद नाव को भूल जाते हैं, उसी तरह लोग अपना काम पूरा होने तक दूसरों की प्रशंसा करते हैं और काम पूरा होने के बाद दूसरे को भूल जाते हैं।सभी मोह माया, उम्र की ढलान पर
है शून्यता की छाया । मंदिर घाट
की सीढ़ियों से उतर कर जल
स्पर्श द्वारा सिंधु पार की है
कल्पना, काश सहज
होता फल्गु नदी
के पार देह
का नव
रूप
पहले हर गली मोहल्ले में समूह के समूह एक साथ होली खेलते थे ! आस पड़ोस के हर घर में सबसे मिलने जाते थे और सबके घरों के पकवानों का स्वाद लेते थे लेकिन अब चन्दा जमा करके सामूहिक होली का आयोजन किसी पार्क या खुली जगह पर होने लगा है जहाँ कुछ खाने पीने की व्यवस्था भी होती है ! सब वहीं पर एक दूसरे से मिल लेते हैं इसलिए अब घरों में जाने की परम्परा भी ख़त्म हो गई !
मिलते हैं अगले अंक में।
कार्यार्थी भजते लोकं यावत्कार्य न सिद्धति।
जवाब देंहटाएंउत्तीर्णे च परे पारे नौकायां किं प्रयोजनम्।।
सुंदर विचार
काम निकला और निकल भागो
आभागी नाव
आभार
वंदन
सुंदर अंक !
जवाब देंहटाएंवाह श्वेता, भूमिका में तो आपने मेरे मन की बात कह दी. पिछले कई दिनों से मैं इसी अनुभव से गुजर रही हूँ. आज दिन में रचनाएँ पढूँगी. सस्नेह.
जवाब देंहटाएंअर्थपूर्ण अंक, मुझे सम्मिलित करने हेतु असंख्य आभार ।
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