शीर्षक पंक्ति: आदरणीय अशर्फी लाल मिश्र जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में पढ़िए पाँच पसंदीदा रचनाएँ-
हर कोई बचन था माँग रहा,
फिर कब अइहौ मोरी नगरी।
प्रेमाश्रु टपक रहे अंखियन से,
हम जल्दी अइबे तेरी नगरी।।
ख़्वाब इश्क़ के जब भी देखना चाहो
दिल को धप्पा, दुनिया कम-ज़र्फ़ देती है।
सीले मन के आहातों में अंधेरा कर;
बे-वफ़ाई मोहब्बत का रंग ज़र्द देती है।
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नव प्रकाश से आलोकित हो जगती सारी । नव
संवत्सर।
गढ़े संवारे नवराष्ट्र
आप सुखमय हो
यह समाज सुखमय हो
यही शुभेच्छा हमारी
नव प्रकाश से आलोकित
हो जगती सारी
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हवाओं में एक खुनक थी
और तुमने मेरी देह पर
ख़ामोशी की चादर लपेट थी
तुम्हारी आँखों से सारा अनकहा
मनोकामिनी की ख़ुशबू सा झर उठा था
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सुंदर अंक
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
बहुत हीं सुंदर अंक
जवाब देंहटाएंसुंदर अंक और बहुत सुंदर प्रस्तुतियांँ
जवाब देंहटाएंप्रशंसनीय संकलन।
जवाब देंहटाएंहमें आमंत्रण नहीं मिलता?
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