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बुधवार, 12 मार्च 2025

4425..इतनी चाह किसलिए..

।।प्रातःवंदन।।

भोर की प्रथम किरण फीकी

अनजाने जागी हो याद किसी की-

अपनी मीठी नीकी !

धीरे-धीरे उदित

रवि का लाल-लाल गोला

चौंक कहीं पर

छिपा मुदित बनपाखी बोला

दिन है जय है यह बहुजन की !

अज्ञेय

 रंगीन चेहरे देखिए और खूबसूरत हमारे त्यौहार देखिए ज़म कर होली मनाइए!!

परम्पराओं और संस्कृतियों के साथ अपनी जीवंत विरासत को कायम रख उत्सव मनाने का शुभ अवसर के साथ आज नजर डालिए लिंकोंपर..✍️
इतिश्री स्त्री दिवस
 



•लिखो विरुपा, विलक्षणी को

नायिका अपनी कविताओं की,

जुगनू की डाह पर गुदड़ी सीती

म्लेच्छ को लिखो

नवें माह के गर्भ पर नवीं जनने को तैयार

उस विरल पर, उसकी मंथरा सास पर लिखो..
✨️



सोच कर देखिये कितनी मजेदार बात है न जिस प्रदेश में शराब की बंदी हो और वो भी पिछले कई सालों से और सरकार ,प्रशासन पुलिस सब इस बात की ख़ुशी भी जाहिर करते हों वहां असलियत ये है कि पूरा प्रदेश ही शराब की लत में ऐसा फंसा हुआ है जिसे आप शराब में बिहार बंदी कह सकते हैं।  ..
✨️

बार-बार भोगती रही
अपमान का घूँट पीती रही
और तुम सभी नज़रें झुकाए 
कायर बने बैठे तमाशा देखते रहे
तुम सभी के पुरुष होने ..
✨️


किसी के पूछे जाने की

किसी के चाहे जाने की 

किसी के कद्र किए जाने की

चाह में औरतें प्राय: 

मरी जा रही हैं..

।।इति शम।।

धन्यवाद 

पम्मी सिंह ' तृप्ति '...✍️

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