मंगलवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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बंद मुद्दों के पिटारे, ज़िंदा हैं सिसकियाँ
मुर्दे के फुदने से लटकायी कठपुतलियाँ
खेल रचे सच-झूठ और रहस्योद्घाटन के
तमाशबीन रोमांच से पीटते हम तालियाँ
आले पर रोटी और पैताने मनुष्यता रख
जीभ पर झंडे उठाये देकर हम गालियाँ
देशभक्ति का लबादा प्रदर्शनी में पहने
मुँह में जड़ ताले,आँखों में लगा जालियाँ
न भूख,न बेकारी,न बाढ़ और न बीमारी
मनोरंजक बातें करते 'हम' और मीडिया।
#श्वेता
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आज की रचनाएँ
हल निकल सकता जहाँ
खामोशियों से खुद-ब-खुद
चीखता है बेवजहा,
बेपनाह जहरी मीडिया !
उफने है चंद दिन
पकड़े है फिर अगली खबर
की राह जहरी मीडिया !
आया मार्च ! मौसम रंगीन
फागुन की आहट कण-कण में,
बैंगनी फूलों वाला पेड़
बस जाता मन में नयनों से !
आया मार्च ! महक अमराई
छोटी-छोटी अमियाँ फूटीं,
भँवरे डोला करें बौर पर
दूर नहीं रस भरे आम भी !
आखिरकार लौट आया
चीख और ठहाकों के मध्य
यह सोच कर कि......
सभ्य समाज के
पांव के नीचे.....
किसी की कुचली......
इच्छाओं के ढेर में....
दब कर निर्जीव सा
दम तोड़ दिया होगा
खोया हुआ मेरा.....
अधुरा सपन........
आशीर्वादों का भी अपना एक वाक्य कोष होता है। सारे बुजुर्ग उसी में से उठा उठा कर आशीष दिया करते हैं। भाषा से भी यह अछूते हैं। लगभग सभी भाषाओं में आशीर्वाद का अंदाज और अर्थ एक सा ही होता है। चुनावी जुमलों की तरह ही आशीर्वादी जुमलों का एक सीमित संसार है मगर लुटाया दोनों को ही हाथ खोल कर जाया जाता है।
आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
सुंदर अंक
जवाब देंहटाएंआभार
वंदन
सुप्रभात, यशोदा जी आजकल नज़र नहीं आ रही हैं, उनकी सुप्रभात के बिना हलचल कुछ अधूरी सी लगती है। ज्वलंत विषयों को आपने भूमिका में उठाया है श्वेता जी, मानव एक झूठ पर जी रहा है, जो उसने अपने चारों ओर खड़ा कर लिया है, क्यूँकि सच इतना कड़वा है कि उसका सामना करने की हिम्मत नहीं है
जवाब देंहटाएंजी अनिता जी आपने सही कहा यशोदा दी की सुप्रभात से पाँच लिंक के अंक की शुरुआत होती है.. दिग्विजय सर से पता चला है कि वो अभी हॉस्पिटल में हैं।
हटाएंवो जल्दी स्वस्थ हो जाए यही प्रार्थना करते हैं।
सादर।
शीघ्र स्वास्थ लाभ की सुभकामनाएं यशोदा जी के लिए |
हटाएंयशोदा दीदी के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ के लिए ईश्वर से प्रार्थना है . वे जल्दी ही स्वस्थ होकर आ जाएँ.
जवाब देंहटाएंप्रिय श्वेता को सस्नेह आभार मेरी रचना को मंच पर लेने के लिए. बेहतरीन अंक है और श्वेता की रची सार्थक एवं सशक्त पंक्तियाँ हमेशा ही भूमिका में जान डाल देती हैं.