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शनिवार, 6 अप्रैल 2024

4088 ..बात करना चाहती हूँ लेकिन चुप हो जाती हूँ.

 सादर अभिवादन


विषय से हटकर
चार कॉलेज की लड़कियां आपस में बाते कर रही  थी
पहला ने पूछा अरे पल्लू (पल्लवी)
तेरी सहेली  का क्या हाल है ..
कुछ खास नहीं मल्लू (मालविका)

मायूस सी थी ..पता नहीं क्या गम होगा उसे
दाढ़ी भी बढ़ी हुई थी

और मुस्कुरा लीजिए


आइए देखें कुछ रचनाएं ....



जग में इस अनाथ का कोई नहीं है,
भावना जग जन की स्वार्थ में रही है।
इसका सहारा केवल एक वही ईश्वर,
'नमन' उसे जो पालता यह जग नश्वर।।




सुबह-सुबह का दृश्य मनोहर
प्रकृति  हो  गाती  जैसे सोहर
जल्दी  सोना  भोर  में उठना
अच्छे   जीवन  की  है  मोहर





न जाने किस से भाग रही हूँ.
न जाने कहाँ जाने को व्याकुल हूँ.
हंसने की कोशिश में न जाने
क्यों आँखें छलक पड़ती हैं.
बात करना चाहती हूँ
लेकिन चुप हो जाती हूँ.





ब्रैम स्टॉकर ने जब ड्रैकुला लिखी होगी तो उन्हें इस बात का अंदाजा भी नहीं रहा होगा कि उनका लिखा किरदार इतना प्रसिद्ध हो जाएगा। ड्रैकुला जनमानस में उसी तरह रक्त पिशाच का पर्याय बन गया है जैसे कभी डालडा वनस्पति का और कोलगेट टूथपेस्ट का भारतीय जनमानस में बन गया था। इस किरदार ने न केवल फिल्मी दुनिया में अपना कमाल दिखाया बल्कि  कॉमिक बुक्स पर भी अपना प्रभाव छोड़ा था। भारतीय हिंदी कॉमिक बुक्स भी इसके प्रभाव से अछूती नहीं रही थी।  





“जैसा हम जानते हैं कि हाइकु तीन पंक्ति और ५-७-५ वर्ण की रचना,”

“जापानी कविता है..”

“जापानी और कविता इन दोनों होने वाली बातों से मेरी सहमति नहीं है…! हम यह क्यों ना माने कि वेद में ५ वर्णी और ७ वर्णी ऋचाएँ होती हैं! बौद्ध धर्म के संग वेद भी भ्रमण के दौरान जापान गया हो और सन् १९१६ में रवीन्द्रनाथ टैगोर के संग घर वापसी हुई हो! समय के साथ रूप बदलना स्वाभाविक है और आज सन् २०२४ में भी प्रवासी कविता क्यों कहलाए!



आज बस. ...
सादर वंदन

1 टिप्पणी:

  1. रोचक लिंकोंं का संकलन। मेरी पोस्ट को स्थान देने हेतु हार्दिक आभार।

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