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शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024

4101....हृदय की मौन.भाषा

 शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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 एक ही बात निश्चित है,
इस संसार में सब कुछ अनिश्चित है।

कोयल की मीठी तान और पुरवाई की गुनगुनाहट के साथ क्षितिज  पर लाल,पीले,सुनहरे छींटों के साथ सूरज का उगना, गरम थपेड़ों से परेशान दिन का अलसाना, धूप के कर्फ्यू में दोपहरीभर सोना, शाम को छतों पर चाँद का बादलों के साथ लुका-छिपी निहारना,चमकीले फीके तारों को गिनना, बेली और रातरानी की महक को फ़िज़ाओं में महसूस करना,विभिन्न प्रकार के आम की भीनी खुशबू, ठंडी लस्सी,कुल्फी,आइस्क्रीम,नींबू पानी की लज़्जत, आँधियों और हवाओं के साथ उड़ते बादलों के साथ  बारिश का इंतज़ार करना,
कौन कहता है गर्मियाँ खूबसूरत नहीं होती?

पर सच्चाई तो ये है न......
पर्यावरण के असंतुलन से बिगड़ता तापमान,तेजी से सूखते पीने के पानी के सोते, बीमारियों का बढ़ता प्रकोप, असहनीय,जर्जर लाइट की अव्यस्था से छटपटाते ए.सी,फ्रिज, कूलर और पंखें के उपभोक्ता। पसीने से तरबतर, बार-बार सूखे होंठों पर जीभ फेरते लोग, सच ये गर्मियाँ 
कितनी बुरी होती है न?

अब तो गर्मी हर मौसम के पृष्ठभूमि में होने लगी है। ठंड कम हो तो गरमी,बारिश ठीक से न हो तो गरमी। मतलब स्थायी ऋतु गरमी है 
बाकी मौसम का आना-जाना लगा हुआ है। 

आपने सोचा नहीं था न?....
पर इस असंतुलन के लिए हम ही जिम्मेदार है,
सुविधायुक्त जीवन जीने की लालसा में।


आइये आज की रचनाओं की ओर


ज़रूरत तो इक दलदल गहरा सा है।
फंसे तो बाहर निकलना नहीं आसाँ।।
भरे बाज़ार हैं मौका-परस्तों से ।
यहां ईमान पे पलना नहीं आसाँ ।।
कभी तो वक़्त बदलेगा है उम्मीद।
हमेशा हसरत कुचलना नहीं आसाँ।।




समाधिस्थ अनुराग

पाता है हृदय की मौन भाषा, कुछ कविताएं
अमूल्य अंगूठी की तरह खो जाती हैं
समय के गर्त में, जिसे उम्र भर
हम खोजते रह जाते हैं बस
स्मृति कुंज में पड़े रहते हैं
कुछ टूटे हुए अक्षर के
कंकाल, कोहरे में
भटकती रह
जाती है
प्रणय



वो ज़ालिम एकदिन बेनकाब होगा


उसीके साथ दफन हैं जुल्म की सारी सच्चाई ,
पंचनामे में तो वही घिसा- पिटा जवाब होगा,

दिन भर इधर उधर जो मज़लूम को टहलाते रहे,
रामदीन की जेब में बाबूओं के ज़ुल्म का महराब होगा,



छतरी का चलनी

उन्नति के कार्यक्रम में नौ-दस लाख का बिल दिखलाया गया।और इस बिल का भुगतान तीन-चार जगहों से करवाया गया! यानी मुश्किल से लगभग तीन-चार लाख का खर्चा हुआ मिला लगभग तीस-चालीस लाख मिला!”


गधों की ज़िंदगी पर आई आफ़त


ई-जियाओ को गधे की खाल से निकाले गए कोलेजन का उपयोग करके बनाया जाता है। इसी खाल को पाने के लिए गधों को मारा जाता है। इसकी मांग इतनी ज्यादा है कि सिर्फ दो साल में चीन में गधों की आबादी 2022 में 90 लाख से घटकर 18 लाख पर पहुंच गई। हालत ये हो गई है कि अब चीन के कई इलाकों में गधों की आपूर्ति में दिक्कत हो रही है, जिसके चलते गधों को दूसरे देशों से मंगाया जा रहा है। इनमें अफ्रीका विशेष रूप से है, जहां से बड़ी मात्रा में गधे चीन सप्लाई किए जा रहे हैं। 




आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में ।
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5 टिप्‍पणियां:

  1. उव्वाहहहहहह
    अप्रतिम अंक
    आभार
    सादर वंदन

    जवाब देंहटाएं
  2. चमकती दोपहर को निहारने का अपना आनंद है, सच है कि गर्मी गर्मी के साथ बहुत सी सुंदर चीजें भी अपने साथ लाती है, पर यथार्थ में गर्मी अब दुसह्य हो जाती है, झेलना मुश्किल हो जाता है,
    गर्मी की सच्चाई का सटीक विश्लेषण करती उत्तम भूमिका।
    सुंदर पठनीय रचनाओं का संकलन। शुभकामनाएं सभी के लिए।

    जवाब देंहटाएं
  3. गर्मियों का इतना सुंदर वर्णन कही नहीं पढ़ा था
    बहुत सुंदर लेखन
    सभी लिंक्स उत्तम है
    स्थान देने के लिए आभार🙏

    जवाब देंहटाएं
  4. हार्द‍िक धन्यवाद श्वेता जी, मेरी ब्लॉगपोस्ट को अपने इस कलेक्शन में शाम‍िल करने के ल‍िए आपका आभार

    जवाब देंहटाएं

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