शीर्षक पंक्ति: आदरणीया डॉ. जेन्नी शबनम जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में प्रस्तुत हैं पाँच पसंदीदा रचनाएँ-
संग अनंग वसंत मधुरास रत,
आरक्त कानन
का आनन है।
उलझी बेल
द्रुम प्रेम खेल में,
ऋतु हाला
में अवगाहन है।
774. नैनों से नीर बहा (19 माहिया)
दुनिया खेल दिखाती
माया रचकरके
सुख-दुख से बहलाती।
4.
चल-चल के घबराए
धार समय की ये
किधर बहा ले जाए।
शायरी | मुस्कुराहट | डॉ (सुश्री) शरद सिंह
तुम कहते हो
बुरे वक्त को निकाल फेंको जीवन से,
अच्छे दिनों
की मियाद खुद ब खुद बढ़ जाती है,
जैसे बालों
से निकाल दिया जाता है मुरझाया फूल,
पैरों से
कांटा,
उधारी की याद,
विरह की रात,
जुगनुओं
का नृत्य चलता है रात भर, अद्भुत एक
आभास जीवित रखती है मुझे उस
गहराई में प्राणवायु विहीन,
*****
फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
सुन्दर चयन
जवाब देंहटाएंआभार इस बेहतरीन अंक के लिए
सादर वंदन
सुन्दर अंक
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अंक
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अंक अनुज रविन्द्र जी
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