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शुक्रवार, 26 अप्रैल 2024

4108....संदेह सबकी निष्ठाओं पर

शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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सोचती हूँ 

 विश्व के ढाँचें को अत्याधुनिक

 बनाने के क्रम में

ग्रह,उपग्रह, चाँद,मंगल के शोध,

 संचारक्रांति के नित नवीन अन्वेषण

सदियों की यात्राओं में बदलते

जीवनोपयोगी विलासिता के वस्तुओं का

आविष्कार,

जीवनशैली में सहूलियत के लिए

कायाकल्प तो स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है

किंतु,

कुछ विचारधाराओं की कट्टरता का

समय की धारा के संपर्क में रहने के बाद भी

प्रतिक्रियाविहीन,सालों अपरिवर्तित रहना

विज्ञान,गणित,भौतिकी ,रसायन,

समाजिक या आध्यात्मिक 

किस विषय के सिद्धांत का

प्रतिनिधित्व करता है?


#श्वेता सिन्हा

आइये आज की रचन



प्रेम की इतनी जटिलताओं के बीच
वो देखता था विस्मय के साथ सबको
वो करता था संदेह सबकी निष्ठाओं पर
 
वो प्रेम के ग्रह पर पटका गया था
किसी धूमकेतु की तरह
बिना किसी का  कुछ बिगाड़े
वो पड़ा था अकेला निर्जन


ऐसे बात करते हैं 

कि मुंडेर पर बैठी चिड़िया 

बिना डरे बैठी रहे,

कलियाँ रोक दें खिलना,

सूखे पत्ते चिपके रहें शाखों से,

हवाएं कान लगा दें,

दीवारें सांस रोक लें,

ठिठककर रह जाएं 

सूरज की किरणें. 



रखना दुश्वार काबू खुद को ।
सब गुस्से से भरे हुए हैं ।।
उम्मीदें क्या क़तील को हो ।।
कातिल हाकिम बने हुए हैं ।।



खोज लगातार जारी रखना ।
हार कर द्वार बंद मत करना ।
शायद थोङा समय और लगेगा,
अवसर इसी रास्ते से आएगा,
तुम अपनी जगह मुस्तैद रहना ।

ये बुजुर्ग चाहते है 
कुछ पल जो हम सिर्फ 
उनको दे सकें 
सुन सकें उनकी यादों का सिलसिला ।
वे कुछ पल जी लें 
उन लोगों की यादों के साथ ,
जो चले गये लेकिन 
जिनके साक्षी हमारे बचपन थे ।
कौन उनको साथ देता है,
हमारे पास वक्त नहीं,


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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में ।
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3 टिप्‍पणियां:

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