आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
नेता कोई भी हो, उसकी संवेदना लगभग शून्य होती है.. जिनकी भी जीवन को समझने की समझ शून्य होती है, वही नेतागिरी करता है.. कोई भी स्वस्थ मानसिकता का व्यक्ति नेता तो कभी भी नहीं बन सकता है।
और यही हाल राजनीति में बड़ी भारी रुचि रखने वालों का है.. कोई किसी को अंधभक्त कह के कितना भी चिढ़ा ले, वो भी उसी श्रेणी का ही भक्त होता है और उतना ही संज्ञाशून्य होता जितना कि अन्य पार्टी के समर्थक.. इस दौर में राजनीति को ज्यादा ही ग्लोरिफाई किया जा रहा है जिसके परिणाम स्वरूप खूब सारी किताबें पढ़ने वाले काबिल लोग भी राजनैतिक विश्लेषक बन गए हैं। राजनीति की तरफदारी के लिए कोई कितना भी दाएँ-बाएँ से घुमा कर कान पकड़े, वो होता राजनेता ही है.. चाहे वो विश्लेषक हो, नेता हो या पार्ट टाइम ग़ज़ल या कहानी लिखने वाला हो, अगर वो राजनीति में किसी एक विचार धारा या व्यक्ति किसी भी रूप में समर्थक है तो आप कैसे मान सकते हैं कि वो निष्पक्ष और पूर्णतया तटस्थ है?
मुझे यूँ तो राजनीति का दाँव-पेंच कुछ समझ नहीं आता परंतु राजनेताओं की मानसिकता और व्यवहार से इतनी आहत हो गयी हूँ कि किसी भी राजनीति करने वाले से कोई लगाव नहीं है..ये सब एक ही हैं.. सारे के सारे अवसर की तलाश में हैं..
मुसलमान और सेक्यूलर, दलितों का झंडा उठाये लोग मात्र अवसर ढूंढ रहे हैं.. स्वयं की प्रसिद्धि का, पावर का और पैसे का.. और दूसरी ओर के लोग भी ऊँचे राजनीतिक ओहदे का।
हम इंसानों की क्षमता और सामर्थ्य इस हिसाब से डिज़ाइन ही नहीं है कि हम लाखों और करोड़ों लोगों के भविष्य और उनके भले के लिए दिन रात एक कर दें बिना किसी लालसा के...।
इन वाक् वीर तथाकथित देशभक्त, गरीबों केसब की खुशी में अपनी खुशी है होनी ही चाहिए
सारे खुशी से लिखते हैं खुशी लिखे में है नजर भी आती है
खुदा सब की खैर करे भगवान भी देखें सब ठीक हो
ईसा मसीह भी है की खबर पता नहीं कहाँ है कहीं से भी नहीं आती है
बेच-बेच कर भरी तिजोरी
जल आँखों का सूख गया है,
पत्थर जैसा दिल कर डाला
मनुज प्रकृति से दूर गया है !
जगे पुकार भूमि अंतर से
प्रलय मचा देगा सूरज यह,
अंश उसी का है यह धरती
लाखों वर्ष लगे बनने में !
टेनिस का रैकेट
कैरम की गोटियाँ
वो शरारतें
वो खिलन्दड़ापन
छोटी लम्बी चोटियाँ
आओ फिर से
महफ़िल सजाएं
हँस लें मुस्कुराएँ
न जाने फिर
ऐसे सुन्दर दिन
कभी आयें न आयें
पॉश एरिया के मतदान केंद्रों में भीड़ दिखती ही नहीं।
हम बड़े जोश से मतदान करने गए पर कर ना सके,
अधिकारी बोला, शक्ल आधार कार्ड से मिलती ही नही।
मायूस से देखते हैं जब रोज सुबह उठते हैं सोकर।
कि सर्दी खत्म होते ही गर्म कपड़े ऐसे वेल्ले हो गए हैं,
जैसे सेवानिवृत होने के बाद होते हैं सरकारी नौकर।
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सुंदर समझाइस देता अग्रलेख
जवाब देंहटाएंआभार
सादर वंदन
भाव अकेले आपके नहीं हैं बहुत से लोग और भी हैं बस डरे हुए हैं l सुन्दर l आभार श्वेता जी l
जवाब देंहटाएंसुन्दर अंक
जवाब देंहटाएंहमें तो किसी भी राजनीतिक पंथ या विचारधारा का अंध समर्थक या अंध विरोधी मानसिक रूप से अपंग और गुलाम लगता है। आपके विचार तार्किक और स्वागतयोग्य हैं।
जवाब देंहटाएंसंभवत: लोकतंत्र में यह स्वाभाविक है, मनन करने योग्य भूमिका और सुंदर सूत्रों का संयोजन, बहुत बहुत आभार श्वेता जी !
जवाब देंहटाएंशानदार भूमिका श्वेता ...सच कहा आपनें ,बिना लालसा काम करना .....?
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएँ बहुत सुन्दर हैं ।
आप ब्लॉग जगत को जीवंत रखे हुए हैं, इसके लिए बधाई के पात्र हैं। वरना मुस्कराते पलों की तरह बस यादें ही बची थीं। आभार।
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