"कामना है कुसुमित हों, नव वर्ष की प्रथम भोर में,
प्रथम सूर्य की प्रथम रश्मि के प्रथम आलोक में!
नव आशा, नव कल्पना, नवांकुर, नव कोंपल,
नव किसलय, नव पल्लव, नव सुमन, नव सौरभ!
नव वितान, नव विधान, नव आकाश, नव अभिलाष..!!"
साधना वैद
हाजिर हूँ चंद लिंकों के साथ समय निकाल कर अवश्य पढिए ✍️
प्रकृति ने रचाया अद्भुत श्रृंगार
बागों में बौर लिए टिकोरे का आकार,
खेत खलिहान सुनहरे परिधान किये धारण
सेमल पुष्पों ने रंगोली रच धरा किया मनभावन
मंद सुगन्धित हवाओं से वातावरण हुआ गुलजार
नववर्ष, नवसंवत्सर का करना विशेष स्वागत सत्कार ।
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तन खा गई तनख्वाह...
तन खा गई तनख्वाह मेरी
वेतन बे वतन कर गई
अस्थायी ये नौकरी मेरी
ना जाने क्या क्या सितम कर गई
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या ये मैं नहीं हूँ
एक वक़्त से मैं इसी उधेड़बून में हूँ
कैसे कैसे लम्हों की परते चड़ी
साप ने जैसे बदल ली काचूली
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अंजुमन
इस अंजुमन ताबीर की थी जिन ख्यालों की l
अक्सर उन बैरंग खतों ढ़ल जाती वस्ल रातों की ll
मुख़्तसर थी इनायतें इनके जिन ख्वाबों की l
रूबरू तस्वीर एक हुई थी उन फसानोंअंजुमन
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फल तोके ही होय
जोय पंडित सुमिरन करे
तोहे पुण्य न होय ।
सहस्त्र घड़ी तु बावरे
पर निंदा में खोय ।
मुख में बाणी प्रेम की
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।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह ' तृप्ति '...✍️
मेरी इस रचना को आज के अंक में शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार महोदया 🙏. सभी रचनाकारों को हिन्दू नूतन वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं 💐🙏
जवाब देंहटाएंशारदीय नवरात्रि की अशेष शुमकामनाएं
जवाब देंहटाएंउत्तम अंक
जय भगवान झूलेलाल की
सादर प्रणाम
कोटि कोटि धन्यवाद आपका।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंस्थान देने के लिए आभार🙏