मंगलवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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आप सभी को नव संवत्सर की हार्दिक शुभकामनाएँ।
आज जिसे हम हिन्दू या भारतीय कैलेंडर कहते हैं, उसका प्रारंभ 57-58 ईसा पूर्व सम्राट विक्रमादित्य ने किया था। विक्रमादित्य से पहले भी चैत्र मास की प्रतिपदा को नववर्ष मनाया जाता रहा है, लेकिन तब संपूर्ण भारत में कोई एक मान्य कैलेंडर नहीं था। कैलेंडर के नाम पर पंचांग प्रचलन में था। संपूर्ण भारत में ज्योतिषीय गणना और पंचांग पर आधारित मंगल कार्य आदि संपन्न किए जाते थे।
इस कैलेंडर को सभी ग्रह-नक्षत्रों के गति और भ्रमण को ध्यान में रखकर बनाया गया। जैसे चंद्र, नक्षत्र, सूर्य, शुक्र और बृहस्पति की गति के आधार पर ही नवसंवत्सर का निर्माण किया गया है।
सूर्य,चंद्र और सितारों के गहन अध्ययन पर आधारित हमारा हिंदू कैलेंडर कब किस तिथि में कौन-सी राशि में कौन-सा नक्षत्र या ग्रह भ्रमण कर रहा है इसी आधार पर मौसम और मंगल कार्य निर्धारित होते हैं। यह बिलकुल ही सटीक पद्धति है। हजारों वर्ष पहले और आज भी यह बताया जा सकता है कि सन् 2040 में कब सूर्यग्रहण या चंद्रग्रहण होगा और कब कौन-सा नक्षत्र किस राशि में भ्रमण कर रहा होगा। यह गणना *अंग्रेजी कैलेंडर सहित दुनिया का कोई सा भी संवत् या कैलेंडर नहीं कर सकता, लेकिन यह गणना नासा की एफेमेरिज या हिन्दू ज्योतिष एवं पंचांग जरूर कर सकता है।*
मार्च माह से ही दुनियाभर में पुराने कामकाज को समेटकर नए कामकाज की रूपरेखा तय की जाती है। इस धारणा का प्रचलन विश्व के प्रत्येक देश में आज भी जारी है।
अंग्रेजी कैलेंडर भारतीय कैलेंडर की ही नकल है. आज भी धार्मिक अनुष्ठान और शादी-विवाह हिंदू कैलेंडर के अनुसार ही होते हैं. इसके अलावा शुभ मुहूर्त भारत में जब विक्रम संवत् के आधार पर नववर्ष प्रारंभ होता है, तो उसे हर राज्य में एक अलग नाम से जाना जाता है, जैसे .महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा, आंध्र में उगादिनाम, जम्मू-कश्मीर में नवरेह, पंजाब में वैशाखी, सिन्ध में चैटीचंड, केरल में विशु, असम में रोंगली बिहू. आदि, जबकि ईरान में नौरोज के समय नववर्ष इसी दिन प्रारंभ होता है। हर राज्य में इसका नाम भले ही अलग हो लेकिन सभी यह जानते हैं कि इसका नाम नवसंवत्सर ही है।
हिंदू माह के नाम जो बहुत कम लोगों को ही याद रहता है..
.चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, अगहन, पौष, माघ और फाल्गुन.|
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अब आज की रचनाएँ -
पर .. है आज भी
मन अथक
और मन-मृदा में
आज भी ..
हैं जड़ें जमीं
यादों की तुम्हारी,
हों जैसे
सुगंध लुटाती,
महमहाती ..
शेष बची
जड़ें ख़स की ..
दुख के काले बादल छाए हाथों से सब छूटा जाए।
जो बीता वो बीत गया अब नवल हमारा बाना होगा।।
आत्म साधना करते रहना ध्येय मोक्ष का रखना शाश्वत ।
पुण्य गठरिया बाँध रखो तुम सदन छोड़ कब जाना होगा
तुम एन्ड्रायड पर लिखो
लोग आई फोन पर पढ़ें
गोया झोपड़ी की चीख
महलों में इको करे
छुपा कर सच
है झूठ बोलता वोह
धुंधला गया है वोह शायद
गर देखना चाहते हो सच को
है देखना तुम्हें
साफ साफ अक्स अपना
सिस्टम उन्हीं लोगों ने उन्हीं लोगों के लिए बनाया है जो सिस्टम में फिट हो सकें. जैसे शरीर में कोई भी अखाद्य पदार्थ किसी भी रूप में चला जाए तो शरीर उसका वमन कर देता है, वैसे ही चीं-चीं करती चेन की कड़ी जल्दी ही अलग से आइडेंटीफाई हो जाती है. उसको बाहर नहीं करेंगे तो चेन के टूटने का खतरा बना रहता है. मूल रूप से वो ग्रीस रहित कड़ी भी कर्म प्रधान ही थी, बस उसके उद्देश्य में स्वार्थ का पैमाना नहीं था. तभी उसने तमाम प्राइवेट पे पैकेज से ऊपर उठ कर सरकार के माध्यम से समाज सेवा के उत्तरदायित्व का चयन किया. कर्म के बिना उसका भी गुजारा नहीं चलना.
आज के लिए बस इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
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नूतनवर्षाभिनन्दन
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार्थक अंक
सादर वंदन
जी ! .. सुप्रभातम् सह नमन संग आभार आपका .. हमारी इस बतकही को इस मंच पर अपनी अनूठी प्रस्तुति में स्थान प्रदान करने के लिए ...
जवाब देंहटाएंआपकी ज्ञानवर्द्धक उपरोक्त भूमिका में आपके निम्न अनुच्छेद से :-
" मार्च माह से ही दुनियाभर में पुराने कामकाज को समेटकर नए कामकाज की रूपरेखा तय की जाती है। इस धारणा का प्रचलन विश्व के प्रत्येक देश में आज भी जारी है। "
- आपका अभिप्राय शायद वित्तीय वर्ष है .. है ना ?
पर है ऐसा नहीं .. दरअसल कई सारे देशों में तो "जनवरी से दिसम्बर" यानी दिसम्बर में पुराने कामकाज समेट कर नए काम की रुपरेखा तैयार की जाती है और जनवरी माह से उनका क्रियान्वयन किया जाता है। भारत समेत कुछेक देश ही "अप्रैल से मार्च" वाले हैं और कुछ तो "जुलाई से जून" वाले भी हैं व कुछेक "अक्टूबर से सितम्बर" वाले भी हैं .. शायद ...
आपकी इस पंक्ति से :-
"अंग्रेजी कैलेंडर भारतीय कैलेंडर की ही नकल है. "
- भी अमीर ख़ुसरो जी की प्रसिद्ध पंक्तियाँ - "गर फिरदौस बर रूये ज़मी अस्त हमी अस्तो हमी अस्तो हमी अस्त" की याद ताजा हो रही हैं। क्योंकि इस धरती पर स्वर्ग और भी कई जगहों पर हैं .. शायद ... और शायद वहाँ तक ख़ुसरो साहब गए ना होंगे ... माना कि हमारा देश-स्वदेश भारत उत्तम या सर्वोत्तम भी है, तो भी अन्य देशों की हासिल की गयी उनकी विश्वपटल पर उपलब्धियों और उनकी सभ्यता-इतिहास को नज़रअंदाज़ तो नहीं किया जा सकता ना ! ... हमें हमारी विहंगम दृष्टि और वृहद् दृष्टिकोण से विश्व की अन्य उप्लब्धियों .. मसलन- हिब्रू कैलेंडर, ग्रेगोरियन कैलेंडर, सोथिक कैलेंडर जूलियन कैलेंडर या फिर चीनी कैलेंडर जैसे कैलेंडरों का भी अवलोकन करना ही चाहिए .. तथाकथित भगवान या उनके तथाकथित अवतारों का पदार्पण केवल भारत में ही नहीं हुआ था .. बल्कि समस्त विश्व के अपने-अपने भगवान हैं, जो उसी आसमान से उतरे होंगे, जहाँ वही समान सूरज और चाँद-तारे चमकते हैं .. बेशक़ उनके चमकने का समय समस्त विश्व में अलग-अलग होता है .. शायद ...
सुन्दर अंक
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर अंक
जवाब देंहटाएंअद्भुत संकलन...धन्यवाद...वाणभट्ट के लेख ' टाइम पास ' को स्थान देने के लिए...🙏🙏🙏
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