शीर्षक पंक्ति: आदरणीया अनिता सुधीर जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
मर्यादाओं की स्थापना करते हुए उन्हें चरितार्थ करते हुए, आदर्श स्थापित करते हुए राम अपनी भूमिका में व्यक्ति के रूप में सफल रहे और मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए। राम के आदर्श आज व्यावहारिक जीवन में आत्मसात करना स्वप्न-सा लगता है। सामाजिक मूल्यों का वर्तमान जीवन से पलायन पुनि-पुनि राम का स्मरण कराता है।
गुरुवारीय अंक में पढ़िए पाँच पसंदीदा रचनाएँ-
सूख गए सब रस
कविता खो गई
पथ भीगा मिला
यूँ साँझ हो
गई ।
सूर्य
रश्मि ने किया वंदन
भाल पर
रघुवीर के सूर्य तिलक!
पा कर
स्पर्श प्रभु राम का
धूप हुई
संजीवनी बूटी सम।
आहद अनहद सब में हो तुम
निराकार साकार रूप तुम
विद्यमान हो कण कण में तुम
ऊर्जा का इक अनुभव हो तुम
झांका जब अपने अंतस में,
वरद हस्त अनमोल रहा है
बसी राम की उर में मूरत ,
मन अम्बर कुछ डोल रहा है।
सफलता जोश से मिलती है, रोष से नहीं
रखे रखे
बिन बांटे मिठाइयां कसैली हो गईं हैं,
विमोचन
करते करते किताबें भी मैली हो गईं हैं।
पुस्तक
मेले में छोटे प्रकाशक की बड़ी दुर्गति होती है,
अज़ी हम से
ज्यादा तो चाय वाले की बिक्री होती है।
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फिर
मिलेंगे।
रवीन्द्र
सिंह यादव
स्तरीय रचनाएं
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
सुंदर और पठनीय रचनाएँ,
जवाब देंहटाएंरामनवमी की सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई💐💐
सुन्दर अंक
जवाब देंहटाएंअनुपम शीर्षक, रवीन्द्रजी. सभी रचनाएँ पढीं. अच्छी लगीं.जीवन के अलग-अलग पहलू उजागर करता यह अंक. बधाई ! मेरी रचना को स्थान देने के लिए धन्यवाद. नमस्ते.
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