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सोमवार, 1 अप्रैल 2024

4083... पहली बार अच्छा लग रहा था बनकर अप्रैल फूल...

सादर अभिवादन

आज से अप्रेल चालू
पहली अप्रैल..
कुछ याद कीजिए
और मुस्कुरा लीजिए

बन चुके बहुत तुम ज्ञानचंद,
बुद्धिप्रकाश, विद्यासागर?
पर अब कुछ दिन को कहा मान,
तुम लाला मूसलचंद बनो!
अब मूर्ख बनो, मतिमंद बनो!

यदि मूर्ख बनोगे तो प्यारे,
दुनिया में आदर पाओगे।
जी, छोड़ो बात मनुष्यों की,
देवों के प्रिय कहलाओगे!
लक्ष्मीजी भी होंगी प्रसन्न,
गृहलक्ष्मी दिल से चाहेंगी।
हर सभा और सम्मेलन के
अध्यक्ष बनाए जाओगे!
- गोपाल प्रसाद व्यास

अइए देखें कुछ रचनाएं ....




सचमुच... सिर्फ़ तुम्हारी ही बदौलत
अचानक उग आए थे
अप्रैल में
इतने सारे फूल
पहली बार अच्छा लग रहा था
बनकर अप्रैल फूल...




पुल सबके लिए, चुनते दीवार मेरी जानिब
दिल मेरा सरे बाज़ार, क्यूँ इतना दुखाते हैं।

मेरे लिये वो मोती, हम उनके लिये मिट्टी
उनके लिये ही अपना, हम भाव गिराते हैं।





तुम मुझे देखना चाहते हो
मदारी के बंदर की तरह
कितना हसीन ख़्बाव है तुम्हारा,
मेरा तुम पर ऐतमाद
की जहां मुझे लगे की
कदमों तले ज़मीन नहीं है,




मैं जानता हूँ जब तुम आओगी तो समेट लोगी
सँवार लोगी सभी शब्द करीने से
बुन लोगी कविता जो बिखरी पड़ी है
हमारे घर के जाने पहचाने जर्रों के बीच




जब मुकर्रर थी सज़ा सूली हमें चढ़ना ही था
फिर सफाई किसलिए देते किसी भी हाल में.

तितलियां, भौंरे, परिंदे, पेड़-पौधे और गुल
जाने क्या-क्या है फंसा इस बागवां के जाल में.




हमारा काम
नाचना इशारों पे
जैसे वो चाहे  

उसका काम
नचाना डोरियों पे
जब जी चाहे

मानते हम
हुकुम मालिक का
सर झुका के  



सारी किताबें खुली हुई हैं
स्वयं बताएं खुद अपना पन्ने को पन्ने
शक्कर देख रही कहीं दूर से
लड़ते सूखे सारे गन्नों से गन्ने

सच है सारा पसर गया है
झूठ बेचारा यतीम हो गया है
बता गया है बगल गली का
एक लंबा लंबा सा नन्हे



आज बस. ...

सादर वंदन 

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर सूत्रों से सुसज्जित आज की हलचल ! मेरी रचना को आज की हलचल में स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी ! सप्रेम वन्दे !

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर संकलन, आदरणीया मेरी रचना को सम्मिलित करने पर तहेदिल से शुक्रिया आपका

    जवाब देंहटाएं

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