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बुधवार, 24 अप्रैल 2024

4106..हाँ, हम फिर तैयार हैं

 ।।प्रातःवंदन।।

"लगा राजनीतिज्ञ रहा अगले चुनाव पर घात,

राजपुरुष सोचते किन्तु, अगली पीढ़ी की बात।

शासन के यंत्रों पर रक्खो आँख कड़ी,

छिपे अगर हों दोष, उन्हें खोलते चलो।

प्रजातंत्र का क्षीर प्रजा की वाणी है,

जो कुछ हो बोलना, अभय बोलते चलो..!!"

रामधारी सिंह 'दिनकर'

प्रस्तुतिकरण के क्रम को बढाते हुए...✍️

चुम्बक







कोर्ट परिसर में लगातार चहल कदमी करते लोग। 

जिनमें शामिल थी खिचड़ीनुमाँ जमात। 

कुछ मज़दूर और निम्न वर्गीय लोग, कुछ आम घर परिवारों के नौकरी 

पेशा क़िस्म के लोग, कुछ उद्यमी और व्यवसायी लोग। अधेड़, उम्रदराज़ 

हर उम्र के लोग- कहीं..

✨️

खो रहा मेरा गाँव


खो रहा मेरा गाँव

पंछी और पथिक ढूँढ़ते सघन पेड़ की छाँव, 

रो-रो गाये काली चिड़िया खो रहा मेरा गाँव।

दहकती दुपहरी ढूँढ़ रही मिलता नहीं है ठौर;

स्वेद की बरखा से भींजे तन सूझे न कुछ और..

✨️

बहकते नहीं हैं

 दिल, दाग, दरिया दुबकते नहीं हैं

हृदय, हाय, हालत बहकते नहीं हैं

प्रयासों से हरदम प्रगति नहीं होती

पहर दो पहर में उन्नति कहीं होती..

✨️

पुरानी डायरी

टटोलते टटोलते 

एक भूले बिसरे दराज को 

मिली है आज एक डायरी पुरानी 

जर्जर हो गई है 

कुतर भी डाला था ..

✨️

हाँ, हम फिर तैयार हैं








पुराने घर की अंतिम मुसकुराती हुई तस्वीर 

आग का क्या है पल दो पल में लगती है

बुझते-बुझते एक जमाना लगता है....

जाने कितनी बार सुनी यह गज़ल इन दिनों ज़िंदगी का सबक बनी हुई है। 

अब जब मन थोड़ा संभल रहा है तो इस बारे में लिखना जरूरी लग रहा है

। घटना जनवरी के किसी दिन की है। संक्षेप में इतना ही कि सुबह हमेशा ..

।।इति शम।।

धन्यवाद 

पम्मी सिंह ' तृप्ति '...✍️


2 टिप्‍पणियां:

  1. "लगा राजनीतिज्ञ रहा अगले चुनाव पर घात,
    राजपुरुष सोचते किन्तु, अगली पीढ़ी की बात।
    "लगा राजनीतिज्ञ रहा अगले चुनाव पर घात,
    राजपुरुष सोचते किन्तु, अगली पीढ़ी की बात।
    शासन के यंत्रों पर रक्खो आँख कड़ी,
    छिपे अगर हों दोष, उन्हें खोलते चलो।
    प्रजातंत्र का क्षीर प्रजा की वाणी है,
    जो कुछ हो बोलना, अभय बोलते चलो..!!"
    सुंदर अग्रकविता
    आदि कवियों को आज का भारत का भविष्य पता था
    सादर वंदन

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