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गुरुवार, 3 फ़रवरी 2022

3293...बसंत आ गया है...

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक में पाँच सूत्र लेकर हाज़िर हूँ।

हल्की 

सर्द हवाओं संग 

रंग-बिरंगे 

फूल पत्तों 

और फ़स्ल-ए-बहार ने 

अब कह दिया है-

"बसंत आ गया है।"

     -रवीन्द्र सिंह यादव     

लीजिए प्रस्तुत हैं ताज़ा-तरीन सूत्र-

जो मुददआ नहीं उसी को---

मालूम   है    कि   होगा  हवाओं   से  सामना,
फिर  किस  लिए  चराग़  इसे  मसअला कहें।

इंसां  को  प्यास  हो  गई   इंसां  के  ख़ून  की,
वहशत  नहीं   कहें  तो  इसे  और  क्या  कहें।

भूले हुए रास्ते...

हम चलते चले जाते हैं 

अनजान पगडंडियों पर

जिनपर छूटे हुए 

हमारे कदमों के निशान 

या तो बने रहते हैं स्थायी 

या वह भी मिट ही जाते हैं 

एक एक दिन

एक कहानी बनकर 

धूप से गुनगुनाते प्रेम पत्र

एक सड़क मिली मुझे
जो कहीं नहीं जाती थी
एक मौसम मिला
जो अपने तमाम वैभव के बावजूद
मुस्कराहट गुमा आया था कहीं

 गजल

फ़िराक़ में रखें अपनापन रिश्ते ढूंढने को,

मिले तो धुक-धुकी लगें बेजान लगे।

पगडंडियां, हाईवे, मोड़-सोड़ सब हैं सफर में,

अबेर-सबेर चलेगा, पर रफ्तार को विराम लगे।

किताबों की दुनिया II कुछ दुःख, कुछ चुप्पियां

*****

आज बस यहीं तक 

फिर मिलेंगे आगामी गुरुवार। 

रवीन्द्र सिंह यादव  


6 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात...
    हल्की
    सर्द हवाओं संग
    रंग-बिरंगे
    फूल पत्तों
    और फ़स्ल-ए-बहार ने
    अब कह दिया है-
    "बसंत आ गया है।"
    सुंदर अंक
    आभार..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. वेहतरीन लिंकों का संयोजन
    प्रतिभा कटियार जी की पोथी चिड़िया क्या गाती होगी, जिज्ञासा बड़ा रही है, धूप के गुनगुनाते प्रेम पत्र से ही साबित होता है यह काव्य संकलन में ऐसे और भी तार झंकृत करने वाली रचनाएं होंगी .

    जवाब देंहटाएं
  3. अच्छी प्रस्तुति विभिन्न रंग लिए हुए ।

    जवाब देंहटाएं

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