शीर्षक पंक्ति: आदरणीय सतीश सक्सेना जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
रविवारीय अंक
की पाँच ताज़ा-तरीन रचनाओं
के लिकों के
साथ हाज़िर हूँ,
आइए रू-ब-रू होते
हैं-
सही राह दिखाने के लिए
कुछ तो दृष्टांत हों
जिनका अर्थ निकलता हो
मन नियंत्रित होता हो।
धड़कनों की सरहद पार आ थे जब गये
निग़ाहों के समंदर उतर नहा थे जब गये
तो कह जाते दिल का भी जज़्बात सारा
बेज़ार करता है नि:शब्द सौगात तुम्हारा ,
बंदरों के हाथ में , परमाणु बम है -सतीश सक्सेना
यूनाइटेड नेशंस एक ऐसा बौना दफ्तर है जिसे पता है कि हमारे हाथ में कुछ नहीं है , जिसके बाबुओं ने हमारे देश से सीख लिया है कि आठ घंटे की ड्यूटी करनी है जिसमें लंच ऑवर एक घंटे पहले और एक घंटे बाद तक होना है ! दफ्तर आते समय और जाते समय की चाय और पकौड़ी आवश्यक पहले से ही हैं ! बिना किसी झंझट के मोटी तनख्वाह जेब में डालो और चलो भइया घरै !
वीटो पावर के आगे सुरक्षा परिषद मात्र अपील कर पाने की क्षमता रखती है यह सिर्फ उस देश को बचा पाती है जब समस्त वीटो पावर देश एकमत हों अन्यथा उसका कोई अर्थ नहीं !
कोई तो सूरत होगी इस भीड़ में कहीं,
जिन आंखों से आप आंखें मिलाते हैं।
मैं भटकता हूँ नहीं, तिश्नगी में कहीं,
होगा कोई, जो प्यासे के पास जाते हैं।
‘पट’ गए हैं
इन रिश्तों से!
कहीं मन के रिश्ते,
कहीं निरा तन के!
कहीं धन के,
तो कहीं
सिर्फ़ आवरण के!
*****
आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे आगामी गुरुवार।
रवीन्द्र सिंह यादव
बहुत सुन्दर प्रस्तुति है आपकी भ
जवाब देंहटाएंमैं भटकता हूँ नहीं, तिश्नगी में कहीं,
जवाब देंहटाएंहोगा कोई, जो प्यासे के पास जाते हैं।
बहुत सुंदर अंक
आभार..
सादर..
आदरणीया यशोदा जी, आपकी सराहना से अभिभूत हूँ। हृदय तल से आभार!--ब्रजेंद्रनाथ
हटाएंबहुत सुंदर, पठनीय अंक । बहुत आभार आदरणीय 👏💐
जवाब देंहटाएंसंक्षिप्त किंतु सारगर्भित और सार्थक संकलन। अत्यंत आभार।
जवाब देंहटाएंप्रिय रवींद्र जी, इस अंक की सारी रचनाएँ अप्रतिम रहीं। आओके यह प्रयास अत्यंत सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंसभी प्रतिभागी रचनाकारों को हृदय तल से बधाई। --ब्रजेंद्रनाथ
बढ़िया रचनाओं के लिंक देने के लिए आभार आपका !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
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