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गुरुवार, 24 फ़रवरी 2022

3314...उड़ जा पंछी उस देश, जहां न राग न द्वेष...

शीर्षक पंक्ति:आदरणीय अशर्फी लाल मिश्र जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक में पाँच रचनाओं के साथ हाज़िर हूँ।

आज की पसंदीदा रचनाएँ हैं-

अध्यात्म पर दोहे

उड़ जा  पंछी  उस देश, जहां राग द्वेष।

जँह पर कोई नहि भेदऐसा   है  वह   देश।।1।।

आदत ...

हर बार

नई सी नज़र आती हो

पर सुनो ...

तुम मत डालना ये आदत

सूख जाएं कहीं कुछ पल

सूख जाएं

ताकि

समझ सकें

सूखी देह से

बूंद का निर्मल नेह

और

चातक की बिसराई जा रही

प्रेम कथा।

वसंत-बहार

कोई कह दो वसंत से जाकर,

अभी उसको यहांँ से जाना।

कुछ दिन और धरा पर ठहरे,

अभी ढूंढे ना कोई ठिकाना।

प्रिय वसंत से भौरे-तितलियां,

रुक जाने को करते मनुहार देखो।

छायी चारों दिशा में निखार देखो।

 दिल्ली दूर है

बातें मुलाकातें होती रहीं और सुना है की बड़ी लड़की की जन्मपत्री भी मिल गई. ये अंदाजा यूँ लगाया क्यूंकि नरूला जी को गोयल सा का फोन आया था की दिल्ली तभी जाने दूंगा जब बिटिया की शादी संपन्न हो जाएगी! नरूला जी ठंडी साँस भर कर बोले- बेटा नरूला दिल्ली अभी दूर है!

*****

आज बस यहीं तक 

फिर मिलेंगे आगामी गुरुवार। 

रवीन्द्र सिंह यादव  


11 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन अंक
    दूर नहीं अब दिल्ली
    आभार..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. शानदार प्रस्तुति।बहुत बहुत आभार।

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर संकलन रचनाओं का …
    आभार मेरी रचना को स्थान देने के लिए …

    जवाब देंहटाएं
  4. आभार... मेरी रचना को सम्मान देने के लिए साधुवाद।

    जवाब देंहटाएं
  5. 'दिल्ली दूर है' को शामिल करने के लिए धन्यवाद. सभी को शुभकामनाएं.

    जवाब देंहटाएं

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