शीर्षक पंक्ति:आदरणीय अशर्फी लाल मिश्र जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में पाँच रचनाओं के साथ हाज़िर हूँ।
आज की पसंदीदा रचनाएँ हैं-
उड़ जा पंछी उस देश, जहां न राग न द्वेष।
जँह पर कोई नहि भेद, ऐसा है वह देश।।1।।
हर बार
नई सी नज़र आती हो
पर सुनो ...
तुम मत डालना ये आदत
सूख जाएं
ताकि
समझ सकें
सूखी देह से
बूंद का निर्मल नेह
और
चातक की बिसराई जा रही
प्रेम कथा।
कोई कह दो वसंत से जाकर,
अभी उसको यहांँ से जाना।
कुछ दिन और धरा पर ठहरे,
अभी ढूंढे ना कोई ठिकाना।
प्रिय वसंत से भौरे-तितलियां,
रुक जाने को करते मनुहार देखो।
छायी चारों दिशा में निखार देखो।
बातें मुलाकातें होती रहीं और सुना है की बड़ी लड़की की जन्मपत्री भी मिल गई. ये अंदाजा यूँ लगाया क्यूंकि नरूला जी को गोयल सा का फोन आया था की दिल्ली तभी जाने दूंगा जब बिटिया की शादी संपन्न हो जाएगी! नरूला जी ठंडी साँस भर कर बोले- बेटा नरूला दिल्ली अभी दूर है!
बेहतरीन अंक
जवाब देंहटाएंदूर नहीं अब दिल्ली
आभार..
सादर..
शानदार प्रस्तुति।बहुत बहुत आभार।
जवाब देंहटाएंसभी लिंक्स अच्छे हैं
जवाब देंहटाएंसुंदर संकलन रचनाओं का …
जवाब देंहटाएंआभार मेरी रचना को स्थान देने के लिए …
सुंदर,सराहनीय अंक । आभार ।
जवाब देंहटाएंसराहनीय अंक।
जवाब देंहटाएंवाह अति सुंदर रचनाएं।
जवाब देंहटाएंसभी को शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार... मेरी रचना को सम्मान देने के लिए साधुवाद।
जवाब देंहटाएं'दिल्ली दूर है' को शामिल करने के लिए धन्यवाद. सभी को शुभकामनाएं.
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