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शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2022

3294... संत वैलेंटाइन खुद उलझन में हैं ....

शुक्रवारीय अंक में
श्वेता का आपसभी को
स्नेहिल अभिवादन।
आज का अंक प्रिय संगीता दी के सहयोग से-

 यूँ तो ये माह उल्लास का है 
मौसम भी मन में उमंग 
भर देता है , पाश्चात्य सभ्यता ने 
बाजारीकरण कर इस माह में 
नए आयाम स्थापित कर दिए 
लेकिन हम अभी भी सोचते हैं कि 


पीत वसन 
उल्लसित  है मन 
बसंत आया 

आइये आज की रचनाएँ पढ़ते हैं-

अपना देश इतनी विविध संस्कृतियों वाला है कि यहाँ प्रदेश, महानगर, नगर, कस्बे, मोहल्लों की ही नहीं, एक मोहल्ले की हर गली की अपनी संस्कृति है दही ,पापड़ अचार,घी, चोखा वाली खिचड़ी जैसी, जिसका स्वाद और आनंद अविस्मरणीय होता है स्मृतियों में।

 चाँदनीवाला मोहल्ला

भरी दोपहरी में,
चाँदनी नंगे पाँव ही
टुम्मक-टुम्मक..
चलती है बेपरवाह सी
तपती धरती पर
आखिर ,कौन है वह,
जो बिछा देता है ,
हरी घास या अपनी नरम हथेली,
उसके पाँव तले ।

हाईटेक युग में बच्चों पर हावी होती जीवनशैली में गुम होती कहानियाँ,लोरियाँ और मासूमियत भरे बाल गीत का बच्चों पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ा है जो उनके सर्वांगीण विकास में बाधक है। मुझे लगता है कि आज आपाधापी के इस दौर में बच्चों के कुंठा,निराशा और एकाकीपन में सकारात्मकता के रंग भरने के लिए बेहद आवश्यक है बाल साहित्य।

बालगीत


पानी बिन जंगल न होंगे
पशु, पक्षी, बादल न होंगे
न नाचेगा मोर सुहाना ।
पानी देखो नहीं गिराना ।।

कम शब्दों में,इशारों से ,बेहद अदब से 
कोई बात हौले से छूकर कुछ देर ठहर जाए तो समझना चाहिए कहीं गज़ल  पढ़ी जा रही है।

हवा आज ठीक होगी तो जाने

फ़क़त हम अज़ीयत में जीये अभी तक,
चलो अब उजालों अँधेरा छुपाने ।

हुई शादमानी मिला हमसफ़र जो,
मुहब्बत चली अब हमें आजमाने


सचमुच हम आधुनिकता की भीड़ में चलते हुए अपने पसीने की खुशबू, पायलों की रूनझुन, माटी का सोंधापन और जीवन का स्वाद भूल गये हैं।

नवयुग के विकास में हम बहुत कुछ भूल गये



लरिकैईयाँ की धमाचौकड़ी भूले
भूले चरखे वाली नानी
लालटेन ढिबरी भूलगये
भूलगये हम रात सुहानी..।।


फरवरी का महीना मधुमास के नशीले रंगों में खड़ा मुस्कुरा रहा है मुट्ठियों में भरे प्रेम के गुलाल  तनिक किनारे रखकर अपने मन के भ्रम दूर करने के लिए गहन अध्ययन से निकला निष्कर्ष पढ़ लीजिये न

संत वैलेन्टाइन ख़ुद उलझन में हैं



वहीं भारत में इसका चलन 1992 के बाद बढ़ा। प्यार के जश्न का यह विशेष अवसर सप्ताह भर का उत्सव बन गया है जिसे वेलेंटाइन वीक कहा जाता है। यह वीक 7 फरवरी को रोज डे से शुरू होता है और 14 फरवरी को वैलेंटाइन डे के साथ समाप्त होता है। वेलेंटाइन डे सेलिब्रेशन भारत में 1992 तक नहीं होता था। यह आर्थिक उदारीकरण के अलावा टीवी विज्ञापनों और रेडियो कार्यक्रमों के जरिए फैला।


और चलते-चलते 

कुछ लेखनी में सिर्फ़ स्याही नहीं भरी जाती है भरना होता है उसमें कोई ऐसी तीली जिसके घर्षण से उत्पन्न हुई चिंगारी सहसा चौंका दे ठंडी पड़ी हुई आत्मा को जो यूँ ही नहीं करती किसी 

कविता को सलाम


भीड़ के बीच में भीड़ हो चुकी
आत्मा से लेकर परमात्मा होने के अहसास से
फिर कहाँ बचा जाता है
------/////-----


आज के लिए बस इतना ही
कल मिलिए विशेष अंक के साथ
प्रिय विभा दी से।


10 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर आगाज
    यूँ तो ये माह उल्लास का है
    मौसम भी मन में उमंग
    भर देता है , पाश्चात्य सभ्यता ने
    बाजारीकरण कर इस माह में
    नए आयाम स्थापित कर दिए
    लेकिन हम अभी भी सोचते हैं कि
    बसंत एक रूप अनेक
    सादर...

    जवाब देंहटाएं
  2. हर रचना को पढ़ आत्मसात कर आई । विविधता और परिपक्वता दिखाता उत्कृष्ट अंक, हर सृजन का अलग भाव, अलग विषय,अलग शिल्प ।
    ऊपर से हर रचना पर स्वाभाविक भूमिका ने मन मोह लिया ।
    रचना तक जाए बिना नहीं रहा गया ।
    बहुत श्रमसाध्य श्वेता जी, आपका वंदन, चंदन और अभिनंदन ।
    मेरे बालगीत को शामिल कर आपने मुझे भी एक राह दिखाई ।
    मेरे पास करीब पच्चीस साल से लिखे जा रहे मेरे बालगीत हैं ।जिन्हें मैं डाल सकती हूं ।
    मेरे गीतों पर लिखी भूमिका ने मुझे आह्लादित कर दिया, बहुत आभार सखी👏👏
    आपको और सभी रचनाकारों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं 💐💐👏👏

    जवाब देंहटाएं
  3. आज की प्रस्तुति चाँदनी वाला मोहल्ला से लेकर कविता को सलाम तक नए आयाम प्रस्तुत कर रही है । पूरी प्रस्तुति पर कविता को सलाम सब पर भारी पड़ रही है ।
    सुशील जी को साधुवाद ।
    इस कविता को सुन और सुशील जी की प्रतिक्रिया पढ़ कुछ कहने की स्थिति में नहीं हूँ ।
    बस आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर प्रस्तुति, स्वेता दी।

    जवाब देंहटाएं
  5. बेहतरीन प्रस्तुति
    अंक बहुत ही उम्दा व शानदार है

    जवाब देंहटाएं
  6. वेलेंटाइन उलझन में क्या पूरा भौचक्का है कि हम तो एक्के दिन का सोचे थे, ई ससुरा बाजार तो हमरा नाम से पूरा हफ्तौ अपने नाम कर लिया

    जवाब देंहटाएं
  7. ये नशीली प्रस्तुति बिना भांग के ही मतिया रही है। आपके सहयोगी का योग भी प्रबल है। अति सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अमृता जी ,
      कोई विशेष योगदान नहीं रहा है , व्यर्थ ही श्रेय दिया जा रहा ।

      हटाएं
  8. बहुत ही सुंदर प्रस्तुती सुंदर लिंको से सुसज्जित आदरनीय श्वेता जी।

    जवाब देंहटाएं

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