हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो...
मृणाल पाण्डे भारत की एक पत्रकार, लेखक एवं भारतीय टेलीविजन की जानी-मानी हस्ती हैं। अगस्त २००९ तक वे हिन्दी दैनिक "हिन्दुस्तान" की सम्पादिका थीं। वे हिन्दुस्तान टाइम्स के हिन्दी प्रकाशन समूह की सदस्या भी हैं।
मृणाल पाण्डे का जन्म 26 फरवरी 1946 को मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ में हुआ। उनके पिता का नाम एस.डी. पन्त तथा उनकी माता नाम शिवानी था जोकि जानी-मानी उपन्यासकार एवं लेखिका थीं
बातचीत का रुख मनचाही दिशा में मुड़ता देख, मारिया ने अपनी भरकम देह दरवाज़े से टिका दी और फ़ुर्सत से खड़ी हो गई - "ममा, बात तो ये है कि जब तक तू अपनी जुबान को कन्ट्रोल नहीं करेगी, कोई डाक्टर-हकीम तेरे मर्ज़ की दवा नहीं कर सकता। अब डिनर में ज़बरदस्ती चावल खा ले, ऊपर से चॉकलेट भी चबा ले तो डायबिटीज बिगड़ेगी नहीं क्या?"
कोई हमें कुछ नहीं बताता। यहाँ, खासकर रात को जब हम सब सो जाते हैं तब बड़ों की दुनिया खुलती है, जैसे बन्द पिटारा। मैं जागकर सुनना चाहती हूँ पर हर बार बीच में मुझे जाने क्यों नींद आ जाती है। ये आवाज़ किसकी है? खाँसी दबाते कौन रो रहा है? छोटी मौसी? “कुत्ते जित्ती इज़्ज़त मेरी नहीं उस घर में।” वह माँ के बगल में कहीं कह रही है। कहाँ? मैं पूछना चाहती हूँ। माँ कह रही है कि जी तो उन सबका कलपता है पर उसे निभाना तो है ही। मेरी आँखें बन्द होती हैं।
खुदाई की गंध पाकर सबसे पहले पुश्तों से बसे भंडार के चूहे बाहर माटी के बिलों में सरक गये । काकरोच नालियों में समा गये। दोनो भीतर भीतर अपने पुरखों की तरह नई पाली का इंतजार करने लगे। कहते हैं जब जापान पर बम गिरा था और इलाके की सारी इंसानी नसल मिट गई तब भी कई साल बीतने के बाद जैसे ही नई बसासत शुरू हुई, भीतर छुपे चूहे और कॉकरोच सही सलामत बाहिर निकल आये । बम भी उनका कुछ नहीं बिगाड सका था ।
पत्नी मुनहने से जिस्म की सुंदर लड़की थी। लड़की कहना ही पड़ेगा, बावजूद उसके कसे जूड़े, नुची भवों और सुनहरी कमानी के गोल चश्मे के। उसका जबड़ा कुछ-कुछ चौकोर था, और एक खानदानी जिद से भरा हुआ भी, जो पीढ़ियों से अपना हुक्म बाअदब बजवाती रही हो। वैसे उसकी आवाज बेहद नरम और हलीम थी, और उसका उच्चारण गुनगुनी अंग्रेजी ध्वनियों से पगा था। आ की मात्रा को वह हलक में घुमाकर बोलती थी, और र को एक बेहद प्यारे पन से ड़ और र के बीच का हरुफ बनाकर कहती।
ले-देकर पूरे घर में यही तो एक अलार्म घड़ी थी। मां हर बार यह बात दुहराती थी, जब भी बच्चे उसके करीब से दहलानेवाली तेजी से खेल में मगन गुजरते या पिता उसे चाभी देना भूल जाता। इस बार भी उसने वही बात दुहरायी। तब एक छोटे अंगोछे में लपेटकर घड़ी पिल्ले की बगल में रख दी गयी । कुछ पल वह चुप रहा। शायद घड़ी की टिक-टिक से नहीं, बल्कि उनके सजग सान्निध्य से, पर फिर यकायक रो पड़ा। कींsss उसके हिलने से अलार्म की कोई कल भी हिल पड़ी शायद और क्षण-भर को उसकी 'कीं कीं' के ऊपर घनघनाता कर्कश अलार्म भी बज उठा।
सुप्रभातम् दी,
जवाब देंहटाएंटेलीविजन के किसी कार्यक्रम के दौरान पहली बार सुने थे मृगाल पांडे को,उनकी सरल सौम्य छवि और स्थिर, संयत आवाज़ ने ध्यानाकर्षित किया था।
बहुत-बहुत आभारी हूँ जानी पहचानी लेखिका की कहानियों को साझा करने के लिए।
सादर
प्रणाम।
अद्भुत....
जवाब देंहटाएंसदाबहार अंक
सादर नमन.।
सहेज ली है पोस्ट ।
जवाब देंहटाएंबाद में एक एक कार पढूंगी कहानियाँ ।
आभार
बहुत सुंदर,संग्रहणीय अंक । जरूर पढ़ूंगी ।बहुत आभार आपका 👏💐
जवाब देंहटाएंशिवानी जी जैसी वरिष्ठ साहित्यकारा और कालजयी लेखिका की बिटिया होने के बाजवूद भी मृणाल पाण्डे जी ने साहित्य जगत और पत्रकारिता जगत में अपनी अलग पहचान बनाई। उनकी रचनाओं और व्यक्तित्व के बारे में बहुमूल्य अंक से बहुत अच्छा लगा प्रिय दीदी। हार्दिक आभार और अभिनंदन आपका। उनकी दो कहानियां पहले पढ़ रखी हैं आज दुबारा पढ़ने का अवसर मिला। पुनः आभार और प्रणाम 🙏🙏🌷🌷
जवाब देंहटाएंअद्भुत संकलन। आभार!!!
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