शीर्षक पंक्ति:आदरणीया दीदी कुसुम कोठारी जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक
में पाँच लिंकों
के साथ हाज़िर
हूँ-
फिर रिक्तता नहीं रहती जीवन में
जब जीवन के अंतिम पड़ाव पर ठहरते
या होते अपनों से दूर उन्हें याद करते
यादों में सब धूमते रहते आसपास |
सतरंगी मौसम सुरभित
पात-पात बसंत रंग छाय
गोप गोपियाँ सुध बिसराय
सुनादो मुरली मधुर धुन आय
हरि आओ ना।
देर तक सोचता हूँ, फिर पूछता हूँ खुद से
क्या मेरा भी प्रेम-आकाश है ... ?
कब, कहाँ, कैसे, किसने बुना ...
पर उगे तो हैं, फूल भी नागफनी भी
क्यों ...
किस मिट्टी से बना है मेरा भारत ?
पर क्या वसीयत में मिला गौरव मात्र है देश की पहचान ?
क्या केवल कला, स्थापत्य, काव्य से ही होगा देश का सम्मान ?
क्या आर्थिक बल से मिली प्रतिष्ठा ही प्रयोजन एकमात्र ?
या नुक्ताचीनी, विरोध, हङताल, धरना ही है समाधान ?
क्या अवसरवादिता से ही बना रहेगा मेरा भारत महान ?
*****
आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे आगामी रविवार।
कुछ आत्महत्याओं में
जवाब देंहटाएंसच्चाई के पर्चें
नहीं खोले जाते हैं
हत्यारे के नाम पर
हमेशा कफन पड़ा रहता है
बहुत खूब
सादर
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंआभार सहित धन्यवाद रवीन्द्र जी मेरी रचना को ओचित स्थान देने के लिए आज के अंक में |
भावभीनी हलचल
जवाब देंहटाएंआभार मेरी रचना को जगह देने के लिए …
बहुत सुंदर संकलन।
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंमन की तहों को टटोलती रचनाएँ ।
जवाब देंहटाएंहृदय तल से आभार रवीन्द्र जी,
इनक बीच जगह देने के लिए ।
नमस्ते ।
सुंदर पठनीय रचनाओं से सजी हलचल, आभार मुझे भी आज के अंक में शामिल करने हेतु!
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार बढ़िया संकलन
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना की पंक्ति को शीर्ष पर रखने के लिए अभिभूत हूं मैं हृदय से आभार ।
सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई, सभी रचनाएं पठनीय सुंदर।
मेरी रचना को चर्चा में स्थान देने के लिए हृदय से आभार।
सादर सस्नेह।
बहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति ।।सभी लिंक्स पढ़ आये 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंआपका पोस्ट काफी अच्छा हैं sir
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