शीर्षक पंक्ति:आदरणीय अरुण चंद्र रॉय जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
रविवारीय अंक में पाँच पसंदीदा सूत्रों के साथ हाज़िर हूँ।
मधु - सिंचन (कविता) शृंगार के छंद
तब नाव तट से खोलने से पूर्व ही
अर्थ ढूँढने में क्यों भटक जाता है?
क्यों उत्ताल तरंगों पर बढ़ने से पूर्व ही,
अविचारित से प्रश्न में उलझ जाता है?
जिस दिन समाज का
छोटा तबका बंदूक
और तलवार की भाषा को
अघोषित करार देगा।
का जन्म होगा
जिसकी वर्णमाला से
शांति और अहिंसा के
नारों का निर्माण होगा।
दिन में परछाई क्यों ढूँढ़ते हो ?
तुम्हारे द्वारा
मेरा हौसला
बढ़ाना
चलते-चलते व्यंग्य-बाण का तीखा प्रहार-
मर्कटस्य सुरापानं, मध्ये वृश्चिकदंशनम्।
तन्मध्ये भूतसंचारो, यद्वा तद्वा भविष्यति। (हितोपदेश)
स्वभाव से नटखट और चपल बंदर यदि मदिरापान करे; उसी बीच उसे बिच्छू डस ले, और ऊपर से उस पर भूत भी सवार हो जाए: तो फिर वह कैसे-कैसे उत्पात करेगा, इसकी कल्पना कीजिए !
तब नाव तट से खोलने से पूर्व ही
जवाब देंहटाएंअर्थ ढूँढने में क्यों भटक जाता है?
क्यों उत्ताल तरंगों पर बढ़ने से पूर्व ही,
अविचारित से प्रश्न में उलझ जाता है?
बहुत सुंदर
बेहतरीन अंक
आभार..
सादर..
आभार
जवाब देंहटाएंसभी पढ़ लिए । गजब की लेखनी और गजब का उनका संकलन। इस संकलन के लिए बहुत-बहुत आभार
जवाब देंहटाएंसुन्दर संकलन
जवाब देंहटाएंबहुत ही शानदार प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसभी अंक बहुत ही उम्दा और सराहनीय हैं
मेरी रचना को 5 लिंकों में जगह देने के लिए आपका तहे दिल से बहुत-बहुत आभार व धन्यवाद आदरणीय सर🙏
बहुत ही उम्दा अंक । सराहनीय प्रस्तुति के लिए आपका आभार आदरणीय 👏💐
जवाब देंहटाएंइस अंक की सारी रचनाएँ उत्कृष्ठ है। सारी रचनाएँ पढ़ीं। ब्लॉग को जीवित रखने का आपका यह प्रयास प्रशंसनीय है। सादर!--ब्रजेंद्रनाथ
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आदरणीय मेरी रचना को स्थान देने के लिए बढ़िया संकलन
जवाब देंहटाएंसुंदर सूत्र संयोजन के लिए
जवाब देंहटाएंआपको साधुवाद
सभी रचनाकारों को बधाई
सादर