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मंगलवार, 15 फ़रवरी 2022

3305 ....काश एक नींद का टुकड़ा मिल जाता

सादर अभिवादन
आज की शुरुआत
कीर्ति श्रीवास्तव जी की चंद पंक्तियों से
क्या कहूं तुझे
क्या कहूँ तुझे
साया!
नहीं
साया भी साथ छोड़ देता है
साथी!
वो भी तो छोड़ कर चला जाता है
हमसफर!
नए रास्ते मिलते ही
छोड़ दूजी राह पकड़ लेता है

अब रचनाएँ ....



प्रेम से ही सृष्टि का वर्तन
इससे पूरित जग का हर कण,
प्रेम ऊर्जा व्याप रही है
यही सँवारे प्रतिपल जीवन !




लरकी लरिका घूमत हैय
जोड़ा होइ होइ कै पारक मा
चाट पकौड़ा जाय के खात हैं
मुहल्ले से दूर खड़ी ठेलन मा
हे भौजी, भेलेन्टाइन मा
इत्तू उत्तू नाही हौ
येह मा बहुतै मजा बा



सिर्फ़ एक दिन प्रेम दिवस हौ
बाकी मुँह पर ताला हउवै
ई बाजारू प्रेम दिवस हौ
प्रेम क रंग निराला हउवै




प्रेम प्रलय में
जब कुछ भी
नहीं बचेगा
सबकुछ
खो जाएगा
पीड़ा के प्रवाह में
तब भी एक
उत्तप्त हृदय
बचा रहेगा
डोंगी बन कर
वह प्रेम का ही होगा.




महावर रचाये पाँव में, महलों मे बैठी होगी
मदहोश भरी रातों मे जब सितारों को भी नींद आती होगी
गोरे से मुखड़े पे मुस्कान आती होगी
तब वो पूनम का चाँद  भी फीका पड़  जाता होगा
जब शुभ सुहाग की रात आती  होगी




काश एक नींद का
टुकड़ा मिल जाता
एक सर्द रात में
जीवन के दो बिखरे हुए हालात
पटरी पर सोती
पतले कम्बलों में
ठिठुरती ज़िन्दगी
बिछावन की जगह आज का अखबार
 

आज बस

सादर 

10 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात! कुछ प्रेम रंग में भीगी और कुछ हक़ीक़त से रूबरू कराती रचनाओं के लिंक्स देता है आज का अंक, मेरी रचना को स्थान देने हेतु आभार यशोदा जी !

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंदर, सराहनीय लिंकों का संकलन संयोजन । बहुत बहुत शुभकामनाएं ।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत अच्छी रचनाओं की लिंक्स। सभी को बधाई के साथ हमारी रचना को साथAन देने के लिए आभार आपका🙏

    जवाब देंहटाएं
  4. खूबसूरत प्रस्तुति
    सादर...
    आभार🙏

    जवाब देंहटाएं
  5. हृदय स्पर्शी रचनाएं पंख भी दे रही है और जमीन पर भी उतार रही है। सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक आभार।

    जवाब देंहटाएं
  6. आदरणीया सभी को मेरा प्रणाम,बहुत सुंदर संकलन, मेरी रचना को पाँच लिंकों का आनंद में स्थान देने पर तहेदिल से शुक्रिया ।

    जवाब देंहटाएं

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