नमस्कार ! आज का दिन कुछ ख़ास है , ख़ास उन लोगों के लिए तो प्रेम में आकंठ डूबे हुए हैं .... ... अब वो सच में डूबे हैं या बस अपने को आधुनिक या आज के ज़माने के साथ चलने वाला दिखाने के लिए डूब रहे हैं ..... खैर .... आज का दिन वैलंटाइन डे के नाम से जाना जाता है ...... वैसे इस डे का प्रादुर्भाव कुछ पंद्रह साल पहले ही हुआ है .... ... उससे पहले ये वैलंटाइन बाबा कहाँ थे नहीं पता ....... ख़ोज खबर लेने पर जो कुछ पता चला उसे आप यहाँ पढ़ सकते हैं .....
वैलंटाइन डे क्यों मनाया जाता है ..
वैलेंटाइन डे प्रतिवर्ष 14 फरवरी को ही क्यों मनाया जाता है? इस दिन का इतिहास क्या है? ऐसे अनेक प्रश्न हमारे मन में उठते हैं। दुर्भाग्य से, इनमें से किसी भी प्रश्न का कोई सही उत्तर उपलब्ध नहीं है। वैलेंटाइन डे के इतिहास को विभिन्न वेबसाइट पर विविध रूपों में प्रस्तुत किया गया है। यूरोप में अभी भी अस्पष्टता है कि वास्तव में किस व्यक्ति के नाम से वेलेंटाइन डे प्रारंभ हुआ।
अब इतिहास कुछ भी रहा हो ..... लेकिन लोग इन दिनों खूब अपने प्रेम का इज़हार करते नज़र आते हैं ...... हमारे ब्लॉगर साथी इज़हार तो करते नज़र नहीं आते लेकिन प्रेम पर अपनी कलम ..... ( अरे आज कल कलम कहाँ .)..... कीबोर्ड पर उंगलियाँ टिप टिपाते नज़र आते हैं ...... कुछ ब्लॉगर साथियों द्वारा प्रेम को शब्दों में बाँधने के प्रयास को आज समेट कर लायी हूँ ......... आप उनके विचारों से सहमत हैं या नहीं पढ़ कर ही कह पाएंगे .....
लोग इतना हल्ला काटे हुए हैं कि १४ फरवरी प्रेम दिवस है और लोग आज के दिन न जाने क्या क्या मंसूबे बनाए हुए हैं लेकिन हमारी एक ब्लॉगर साथी अनुराधा चौहान का कथन है कि --
प्रेम का कोई दिन नहीं
प्रेम का कोई माह नहीं
प्रेम आत्मा की आवाज है
प्रेम सृष्टि का आधार हैं
यह एक सुखद एहसास है
आप तो एक दिन की बात कर रहे हो .... यहाँ तो बाज़ार ने पूरा सप्ताह ही प्रेम का तय कर दिया है ...... गुलाब दिवस से ले कर वैलंटाइन डे तक ...... एक इसमें आलिंगन दिवस भी आता है जिसे आम बोल चाल में लोग HUG DAY ( देवनागरी लिपि में नहीं लिखा वर्ना अर्थ का अनर्थ हो जाता ) भी कहते हैं , अभी दो दिन पहले विभा जी ने विशेष पोस्ट भी लगायी थी इस पर ..... लेकिन देखिये इस दिन के लिए प्रीति अज्ञात क्या लिखती हैं .....
यहाँ से आपको चावल के दाने अर्थात कुछ लिखा हुआ नहीं ला सकती ..... समस्या वही कि कॉपी पेस्ट नहीं हो सकता .... वैसे आप इनके ब्लॉग पर इस पोस्ट के आगे पीछे की पोस्ट पढ़ सकते हैं , सब इसी प्रेम सप्ताह के विषय में लिखी हुई हैं ... ............
लोग यहाँ प्रेम - प्रेम कह रहे हैं और जिज्ञासा अपने शब्दों से जिज्ञासा जगाती हुई कह रही हैं कि प्रेम ही तो सब कुछ नहीं ...... बहुत कुछ और भी है .....
प्रेम संसार है । प्रेम निराकार है ।।
है तो ये, बड़ा ही विशाल ।
नहीं है कोई इसकी मिसाल ।।
पर छुपते, छुपाते नैनों में, ये आँसू बन अपनी गति से झरे भी !
सच है ! यहाँ बहुत कुछ है प्रेम से परे भी !!
और इसी बात से कुछ सहमत सी होती हुई सुधा जी प्रेम के अपरिमित दायरे को अपने शब्दों में बयाँ कर रही हैं ..... और तरह तरह से समझा रही हैं कि आखिर प्रेम होता क्या है ?
प्रेम
अपरिभाषित एहसास।
" स्व" की तिलांजली...
"मै" से मुक्ति !
सर्वस्व समर्पण भाव
निस्वार्थ,निश्छल
तो प्रेम क्या ?
बन्धन या मुक्ति !
अब प्रेम हो , चाहत हो , प्यार हो , इश्क हो ....... यानि कि शब्द कोई भी हो लेकिन सब अपने तरीके से ही परिभाषित कर रहे हैं ...... कुसुम कोठारी जी ने मन की वीणा पर संगीत छेड़ा है कि ......
इश्क वो शै है जिसका
कोई आशियाना नही
वो आग का दरिया
जिसका किनारा नही..
इतना सब पढ़ कर ये तो जान ही लिया होगा कि आखिर प्रेम है क्या ? वैसे मुझे तो आज तक न प्रेम समझ आया न ही इसकी परिभाषा | सच कहूँ तो मैं तो उषा जी के वैलंटाइन डे से सहमत हूँ ........ज़िन्दगी के सच को उजागर करती उनकी रचना दिल के पास लगी .......
नहीं ...आज तो नहीं है मेरा वैलेंटाइन डे
लेकिन...
मेरे हाथों में मेंहदी लगी देख तुमने
समेट दिए थे चाय के कप जिस दिन
बुखार से तपते माथे पर रखीं
ठंडी पट्टियाँ जब
सच तो यही है कि जब कोई आपका ख्याल रखता है तो मन में प्रेम की भावना स्वतः उत्पन्न हो जाती है ...... लेकिन ये सब हम उम्रदराज़ लोग ही इस दृष्टि से देख पाते हैं ..................... कॉलेज जाने वाले युवा का दृष्टिकोण कुछ अलग ही मायने रखता है .... वैसे हिन्दू संस्कृति की बात करें तो ये बसंत का पूरा माह ही प्रेम के रस में भीगा होता है ..... और बसंत ही क्यों फाल्गुन भी अपनी अलग छटा बिखेरता है ..... वैसे बसंत पंचमी से ही यहाँ रस के साथ रंग की शुरुआत भी हो जाती है .....ज़रा उनका सोचिये जो अपने देश से दूर जा कर अपनी पढाई पूरी करने में जुटी हो और ऐसे समय वहां कैसे तो प्रेम दिवस मना और कैसे रंग खेला गया . शिखा वार्ष्णेय अपने अनुभव बाँट रही हैं .......और बता रहीं हैं कि सबके लिए प्रेम अलग ही परिभाषा रखता है .....
बसंत पंचमी ( भारतीय प्रेम दिवस ) बीत गया है ,पर बसंत चल रहा है और वेलेंटाइन डे आने वाला है ..यानी फूल खिले हैं गुलशन गुलशन ..अजी जनाब खिले ही नहीं है बल्कि दामों में भी आस्मां छू रहे हैं ,हर तरफ बस रंग है , महक है ,और प्यार ही प्यार बेशुमार . …वैसे मुझे तो आजतक ये प्यार का यह फंडा ही समझ में नहीं आया ….कहीं कहा जाता है ..प्यार कोई बोल नहीं ,कोई आवाज़ नहीं एक ख़ामोशी है सुनती है कहा करती है …तो कहीं कहा जाता है ….दिल की आवाज़ भी सुन ….
एक ओर शिखा ने बताया कि प्रेम हर व्यक्ति के लिए अलग है तो वहीं वाणी जी ने एक प्रश्न उछाल दिया है कि ----
वाणी , आप अपने ब्लॉग की सेटिंग से ताला खोल दीजिये बस हमारा प्रेम तो वहीं पल जाएगा .... कॉपी नहीं कर पा रही 😢😢
खैर........ प्रेम पला या नहीं लेकिन प्रेम में डूबी स्त्री किस कदर भावों के समुद्र में गोते लगाती है ये जानना है तो पढ़िए श्वेता सिन्हा की रचना
पवित्र नदी,कुएँ या झील में
तुम्हारे द्वारा फेंके गये
प्रार्थनाओं का सिक्का बनकर
डूब जाना चाहती हूँ मैं
यहाँ जब हम एक ऐसी नायिका से परिचित हो रहे हैं जो उनके द्वारा लिखी कहानी कविता की एक मात्र नायिका बनने की ख्वाहिश लिए बैठी है , तो दूसरी ओर प्रकृतिदत्त प्रेम और समर्पण को विश्वमोहन जी कुछ इस तरह प्रस्तुत कर रहे हैं ..... नर और नारी के स्वभाव को व्यक्त करते हुए प्रेम की नींव ज़रूर मजबूत हो सकती है .....
तू रामायण, मैं सीता,
तू उपनिषद, मैं गीता.
मैं अर्थ, तू शब्द,
तू वाचाल, मैं निःशब्द.
तू रूप, मैं छवि,
तू यज्ञ, मैं हवि.
मैं वस्त्र, तू तन
तू इन्द्रिय, मैं मन.
नर नारी की बात छोड़ कर जब आगे बढे तो बेचैन आत्मा रुपी ब्लॉग दिखा जहाँ प्रेम को बिलकुल नए अंदाज़ में वर्णित किया गया है ...... वैसे भी देवेन्द्र जी की रचनाओं में पशु -पक्षी ,नदी -तालाब आदि बहुतायत से पाए जाते हैं
. अब उनके शब्द भी जुगनुओं की तरह चमक रहे हैं तो प्रेम भी जुगनू की तरह टिमटिमा रहा है ...
अँधेरी राह में
घने वृक्षों के तले
अक्षर दिखे
गुच्छ के गुच्छ!
जुगनुओं की तरह
आपस में टकराते,
बिखर जाते |
अब हम जुगनू कह लें या तो प्रेम कीअब तक दी गयी परिभाषाओं से सहमति का मन बना लें लेकिन फिर भी कहीं न कहीं कुछ बच जाता है .... कहीं कुछ अधूरा लगता है और मन में आता है की कहीं कुछ और है प्रेम ..... एक नज़र अमृता जी के विचार पर भी डालें जो कह रही हैं कि इन सब परिभाषाओं के इतर भी है प्रेम ...
कोई परिग्रह नहीं
परिग्रह तो दूर की बात
कोई आग्रह भी नहीं ...
कोई प्रतिबंध नहीं
प्रतिबंध तो दूर की बात
कोई अनुबंध भी नहीं ...
वाकई लोग आज के दिन को भले ही प्यार का नाम दें लेकिन असली प्यार की भावना तो दिल में होती है जो किसी को भी दुःख पहुँचाये बिना ही संभव होती है ........ ऐसे ही प्यार की कहानी लायी हैं कामिनी सिन्हा ........
बात उन दिनों की हैं जब मैं दसवीं कक्षा में थी....15 -16 साल की उम्र शोख.....चंचल और मस्ती से भरपूर....शायद ही कोई ऐसा हो जिसे इस उम्र में प्यार की अनुभूति ना हुई हो। मेरी बहुत सी सहेलियां थी लेकिन सब से खास थी " कुमुद " हम दोनों औरो से थोड़े अलग थे...हम औरो की तरह प्रेम कहानियां सुनने और बुनने में नहीं रहते....जब लड़कियां इस तरह की बातें करती तो हम अलग हो जाया करते.....हमें उन बातो में कोई दिलचस्पी नहीं होती.....
सच ही है .... ऐसे प्यार को ही रूहानी प्यार कहा जाता है जो आत्मा से किया जाता है ...... और इस रूहानी प्यार के लिए रेणु क्या कह रही हैं ....एक नज़र डालते हैं ....
बदल जायेंगे जब
सुहाने ये मन के मौसम ,
तनहाइयों में साँझ की
घुटने लगेगा दम,
खुद को बहलायेंगें
इसको निहार हम !!
सच कहूँ तो अब मैं प्रेम के बारे में पढ़ते पढ़ते इतना कन्फ्यूज़ हो चुकी हूँ कि प्रेम क्या है , कैसा है कुछ समझ नहीं आ रहा ...... ऊपर से रश्मि प्रभा जी जैसा रचनाकार जब प्रेम के बारे में लिखे तो डूब कर ही पढना पड़ता है ..... सरसरी निगाह से पढ़ते हुए तो समझ भी नहीं पाते कि बात कहाँ और क्यों कही गयी ...... मेरी बात से आप इत्तेफाक नहीं रखते तो खुद ही जा कर पढ़िए न .....
फिर मैंने अपने चेहरे के आईने से
तेरा अक्स हटा दिया
पर मन की स्लेट से
तेरे नाम को मिटाना आसान न था
यूँ कहो
मुझे गवारा न था ...
प्रेम भी कितना चकरघिन्नी बना देता है ...... कोई कहता है कि प्रेम कह कर नहीं किया जाता .... प्रेम मौन की भाषा में मुखरित होता है लेकिन फिर भी न जाने क्यों लोग उम्मीद करते हैं कि काश कुछ तो कोई कहे .... पुरुषोत्तम जी अधिकतर प्रेम पगी रचनाएँ ही लिखते हैं ...... और देखिये किस तरह बेताब हो कर कह रहे हैं कि ----
प्रिये, तुम मेरी आस, तुम जन्मों की प्यास,
प्यास बुझाने जन्मों की तेरी पनघट ही मैं आता,
मैं राही तेरी राहों का, और कहीं मैं क्युँ जाता,
राह देखती तुम भी अगर, मैं भी तेरा हो जाता।
प्रिये, एक बार जो तुम कह देती, तो मैं रुक जाता!
अब रुकते या नहीं रुकते ये तो कौन जाने लेकिन आपको आगाह करना चाहती हूँ कि वैलेंटाइन डे के कुछ साईड इफेक्ट्स भी होते हैं ....... यदि नहीं विश्वास तो चक्कर लगा कर आईये अंतर्मंथन ब्लॉग पर जहाँ डॉक्टर दराल चर्चा कर रहे हैं साईड इफेक्ट्स की --
जब दस बजे तक न आई,
मैडम को गुस्सा आया,
उसका मोबाईल मिलाया,
तो वो बोली ,
बीबी जी , आज हम
वेलन्ताइन डे मना रहे हैं।
चलिए ... अब आप लोग भी मनाईये वैलंटाइन डे ...... और करिए प्रेम का इज़हार ...... बार बार ... हर बार ...... लेकिन यहाँ प्रतिक्रिया देना न भूलियेगा ...... आपकी प्रतिक्रिया ही मेरे लिए प्रेम का इज़हार है .... 😀😀😀
अब इजाज़त दें ...... फिर मिलते हैं ........ तब तक के लिए नमस्कार .....
संगीता स्वरुप
आज का खास दिन
जवाब देंहटाएंसदियों पहले से
मनाता आ रहा है भारत
केवल दिन ही नहीं
पूरा तीन पक्ष
अर्थात डेढ़ माह..
वसंत पंचमी से
फाल्गुन पूर्णिमा तक ..
प्रेम मे सराबोर रहता है मन,
किसी की मानता ही नहीं
केवल अपने आप में
मगन रहता है मन
आप सब भी टेसू से खिलें
हरसिंगार से झरें..
वसंतोत्सव की शुभकामनाएं
सादर
जोगीरा..
जवाब देंहटाएंसारारा रा
अद्वितीय अंक
सादर नमन..
यशोदा , आभार
हटाएंआदरणीया संगीता स्वरूप जी ने, पुनः अपनी विलक्षणता का परिचय देते हुए एक अद्भुत प्रस्तुति दी है आज के दिन। आज से कुछ 28 वर्ष पहले जब मेरी शादी हुई तब मुझे ससुराल से Valentine Day का कार्ड आया तो मैंने पत्नी से पूछा ये क्या है? उसने बताया कि उसे भी नहीं पता । बस उसकी एक बहन / सहेली ने इसे भेजने को कहा है।।।। खैर,जितनी शिद्दत से उसने कार्ड को चुनने में अपना वक्त बिताया था , वह वाकई तारीफ के काबिल था। प्रेम की अनगिनत भाषाओं मेंं एक भाषा यह भी।।।। पर महज दिखावा न हो तो सही।।।
जवाब देंहटाएंसबों को प्रेम भरा प्रणाम।।।।।
पुरुषोत्तम जी , हार्दिक आभार ।
हटाएंआप 28 साल से जानते थे ,हमने तो 15 साल पहले ही सुना था इस दिन के बारे में ।
अहा! इस प्रेमिल प्रस्तुति में तो प्रेम ही प्रेम उपजे, प्रेम ही प्रेम लहलहाये और चहुंओर प्रेमद संगीत के स्वरूप में खिलकर बिखर जाए। तब तो हम सबों को ये प्रेम ऐसा रुचै कि शीश दे और हृदय भर कर ले जाए.... शीश दिया।
जवाब देंहटाएंअमृता जी , आपकी प्रतिक्रिया से तो संगीत का स्वरूप भी खिल उठेगा। आभार ।
हटाएंकाश ! हर दिन प्रेम दिवस हो और हर इंसान का हृदय प्रेम, संवेदना, ममता और मानवता से भरा हो। सुंदर संकलन।
जवाब देंहटाएंप्रिय मीना ,
हटाएंकाश !!! प्रतिक्रिया के लिए आभार ।
प्रेम हो तो मुझे तो होना ही है
जवाब देंहटाएंये तो सच है रश्मि जी ।
हटाएंहार्दिक आभार ।
आपके इस श्रम के लिए मेरे पास एक ही शब्द है... आभार।
जवाब देंहटाएंदेवेंद्र जी ,
हटाएंइस आभार के लिए मेरे पास भी एक ही शब्द है .... आभार ।
वाह । प्रेम दिवस पर आपकी मेहनत अत्यंत सराहनीय है। 👍🏻👍🏻🙏🙏
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया डॉक्टर साहब ।
हटाएंबेहद दिलचस्प सूत्र समेट लाईं हैं आप। मन गया आज का दिन।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया शिखा । दिन ही तो मनाना था ।
हटाएंप्रेम को शब्दों में बाँधा कैसे जा सकता है? बहुत बढ़िया सूत्र।
जवाब देंहटाएंरेखा श्रीवास्तव
आपको यहाँ देख कर अच्छा लग रहा है । आभार ।
हटाएंअहा!अभी तो लिफ़ाफ़ा देखा है म़ज़मून बाकी है, लिफ़ाफा खुलेगा धीरे धीरे थाम के बैठे हैं अपने ही दिल को,।
जवाब देंहटाएंआज कहीं नहीं जा पाऊंगी पर प्रस्तुति मन ललचा रही है, नज़ाकत से परोसे गये लिंक्स वैलेंटाइन्स सा इन्द्रजालिक दृश्य उकेर रहे है , पढूंगी अवश्य पर एक दो दिन में।
बधाई एवं साधुवाद संगीता जी आप का परिश्रम और धैर्य दोनों प्रशंसनीय है।
घूम घाम कर खोज कर एक ही विषय की रचनाएं विभिन्न ब्लागों से चुन-चुन कर लाना उनको सजाना फिर पेश करना ।
श्रमसाध्य श्र्लाघ्य प्रस्तुति।
सभी रचनाकारों को बधाई।
मेरी काफी पुरानी इश्क़ पर लानत भेजती सी रचना को आज की प्रस्तुति में स्थान देने के लिए हृदय से आभार।
सभी को अपने अपने वैलेंटाइन्स का सानिध्य प्राप्त हो इसी शुभकामना के साथ।
सादर सस्नेह।
कुसुम जी , आप तो उनमें से हैं जो लिफाफा देख कर मजमून भाँप लेती हैं । इतनी सुंदर प्रतिक्रिया पा कर मेहनत सफल हो गयी । वैसे आपने कहा कि इश्क़ पर लानत भेजती सी रचना है आपकी , लेकिन मुझे लगता है कि आपने सच्चाई बयाँ की ही। अब किसी को लानत लगे तो लगे ।
हटाएंआभार ।
सादर नमन आपके अदम्य उत्साह और अद्भुत प्रयास का प्रेम के तंतुओं को सहेजकर इस विलक्षण ताने बाने में बुनने के लिए। प्रेम की महिमा और आपके अलंघ्य श्रम की गरिमा दोनों को शब्दों में नहीं बांधा जा सकता। बधाई और आभार संगीत जी! हृदयतल से।
जवाब देंहटाएंविश्वमोहन जी ,
हटाएंआपके द्वारा इतने सुंदर शब्दों में प्रशंसा पाना मेरे लिए पुरस्कार से कम नहीं ।
आभार ।
बदल ही नहीं पा रही सेटिंग। कोई तो बताये कैसे किया जाए!
जवाब देंहटाएंवाणी ,
हटाएंआप परेशान न हों । वैसे पहले एक कॉपी राइट का गैजेट लगते थे उससे भी ब्लॉग से कॉपी नहीं होता था । यदि वो लगाया हुआ हो तो हटा कर देख लो ।
प्रेम प्रेम सब कोए कहै, कठिन प्रेम की फाँस।
जवाब देंहटाएंप्रान तरफि निकरै नहीं, केवल चलत उसाँस॥
प्रेम,प्रेम,प्रेम...एक..दो..तीन ..पाँच..नौ... नहीं पूरे
अठारह प्रकार का प्रेम परोसा है आज आपने...।
सुगंध तो मनमोहक थी ही एक-एक पकवान का स्वाद भी लाजवाब लगा..और हो भी क्यों न जाने कितनी मेहनत से
एक-एक व्यंजन इतनी लगन से पकाया है आपने।
मन तृप्त हो गया।
----
रचनाओं के लिए क्या कहें हम-
वैलेंटाइन डे क्यों मनाया जाता है?
प्रेम का कोई दिन नहीं
प्रेम से परे
ध्यान रहे गले लगना और गले पड़ना दो अलग बातें हैं,
प्रेम, इश्क़ क्या है?
प्रेम आखिर पलता कहाँ हैं?
प्रेम में डूबे हैं
नर-नारी..
एक बार जो तुम कह देती
प्रेम से इतर
हैप्पी वैलेंटाइन डे
पर मैं तो कर रही हूँ
प्रेम,रंग और मसाले
वैलेंटाइन डे और गाएब़ है कामवाली बाई
---/---
अपनी अस्वस्थता में भी आपने जितना श्रम किया इस अंक के लिए उसकी सराहना के लिए शब्द नहीं है मेरे पास।
आपका प्रेम हम पाठकों पर बना रहे.
अगले विशेषांक की प्रतीक्षा में हूँ।
सप्रेम
प्रणाम दी
सादर।
प्रिय श्वेता ,
हटाएंप्रेम प्रेम सब कोए कहै, कठिन प्रेम की फाँस।
प्रान तरफि निकरै नहीं, केवल चलत उसाँस॥
ये बात तो वही कह सकता जिसे इसका अनुभव हो ।
वैसे प्रेम को व्यंजन की उपमा भी जोरदार है 😄😄
तुमने स्वाद ले ले कर खाया ,कुछ तो मन रूपी पेट भरा होगा । 😄😄😄
मज़ाक एक तरफ .....तुम्हारी प्रतिक्रिया प्रस्तुति से भी लम्बी और बेहतर लग रही । इसके लिए हार्दिक आभार
सस्नेह
इस प्रेम के रंग में मुझे भी रंगने के लिए दिल से शुक्रिया दी, वाकई आप के श्रम पर हर बार नतमस्तक हो जाती, अभी श्वेता जी की प्रतिक्रिया से पता चला आप अस्वस्थ भी है फिर भी इतनी लग्न और मेहनत। कामना करती हूं आप जल्द ही स्वस्थ हो जाए। मैं भी परिस्थिति वश सभी रचनाओं तक नहीं पहुंच पाई हूं परन्तु जाऊंगी जरुर। सभी को प्रेम दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं, 🙏
जवाब देंहटाएंप्रिय कामिनी ,
हटाएंप्रेम का रंग तो इन सब रचनाकारों ने बिखेर रखा है । मैं तो बस समेट कर लायी हूँ । शुभकामनाओं के लिए आभार ।
सस्नेह
प्रिय दीदी , प्रेम दिवस पर प्रेमिल भावनाओं से सुसज्जित अनुपम अंक जिसके लिए कोई सराहना का शब्द सूझ नहीं रहा | समय मिलते ही रचनाओं पर चिंतन- मंथन लगा रहा कि आखिर प्रेम की असली परिभाषा किसे माने ? सभी तरह के प्रेम से साक्षात्कार हुआ | सभी रंग मनमोहक और मनभावन |संयोग ही है मेरी प्रेम कविताओं को पाठकों ने सबसे ज्यादा सराहा |
जवाब देंहटाएंजैसा की अक्सर रचनाकारों के बारे में कहा जाता है कि वे प्रेम से ही लिखना शुरू करते हैं , मैंने भी शुरुआत प्रेम रचनाओं से की थी | ब्लॉग के अलावा शब्दनगरी में किसी समय बहुत बड़े पाठक वर्ग ने सिर्फ प्रेम कविताओं को पढ़ा | फिर भी मुझे लगता है मैं सही ढंग से इसे लिख ना सकी | क्योंकि ये विषय ही ऐसा है जिस पर कलम घिसाते दिग्गजों ने उम्र गुजार दी पर ये पूर्ण रूपेण ना लिखा गया और ना समझा गया || दूसरी बात , शायद प्रेम ने अधूरेपन में ही पूर्णत्व पाया है |राधा - कृष्ण जैसे दिव्य प्रेम के ध्वजवाहक ही अजर - अमर माने गये तो हीर-रांझा , लैला-मजनूँ , शीरी-फ़रहाद की अधूरे प्रेम की कथाओं ने जनमानस को द्रवित कर खूब प्रसिद्धि पायी | कभी लिखा था --
मुहब्बत की किस्मत में ही है --
मिलकर जुदा होना ,
नहीं तो हीर होती राँझे की
लैला को मजनूँ मिल जाता ///////
खैर , वैलन्टाइन दिवस के बारे में सबने खूब लिखा पर देश के वीर जवानों पर आज ही के दिन तीन साल पहले पुलवामा में भीषण आक्रमण हुआ जिसमें अपार संभावनाओं से भरे हमारे कई जाँबाज वीर जवान शहीद हुए | उनकी पुण्यस्मृति को हजारों सलाम |किसी के व्हात्ट्सअप्प stats से पता चला--समस्त राष्ट्र की आँखों के तारे भगत सिंह , यशपाल और राजगुरु को आज ही के दिन फाँसी की सज़ा सुनाई गयी थी | सो , हमें उनका स्मरण जरुर रहे जिनके कारण आज हम खुले मन से प्रेम दिवस मनाने के लिए स्वतन्त्र हैं | तीनों अमर विनुतियों को कोटि नमन |अंत में , सभी रचनाकारों को बधाई और आपको ढेरों प्यार और शुभकामनाएं| अपने स्वास्थ्य का ध्यान जरुर रखें | मेरी पुरानी रचना को फिर से पाठकों के समक्ष लाने के लिए आभारी हूँ |एक बार फिर प्रेममय प्रस्तुति के लिए आभार |
पुलवामा के शहीदों को समर्पित मेरी एक रचना --[यूँ मैंनेप्रेम पर उस साल एक विस्तृत लेख लिखा था --- प्रेम ना बाड़ीउपजे-- पर शहीदों की शहादत से मन विदीर्ण हो गया और फिर एक साल बाद प्रकाशित किया उस लेख को |]---
https://renuskshitij.blogspot.com/2019/02/blog-post_16.html
प्रिय रेणु ,
हटाएंप्रेम के इतने सारे रंगों से रु ब रु होते हुए चिंतन मंथन किया यह जान कर अच्छा लगा । ये भी सच है कि जिनकी प्रेम कहानी अधूरी रही वही जग प्रसिद्ध हुई । प्रेम पा लिया तो फिर वो हकीकत बन जाती है । तुम्हरी लिखी प्रेम कविताएँ सभी तो नहीं पढ़ पायी हूँ , लेकिन ऐसे ही चक्कर काटते हुए काफी कुछ पढ़ा ज़रूर है ।
अपने वीर सैनिकों को हमें कभी भी भूलना नहीं चाहिए । तुमने यहाँ भी उनको याद किया इसके लिए साधुवाद । उन्होंने भी देश के प्रेम में ही अपनी शहादत दे दी ।
जहाँ तक व्हाट्स एप्प से प्राप्त ज्ञान है उनको एक बार जाँच ज़रूर लेना चाहिए । यशपाल को कब फाँसी लगी मुझे नहीं मालूम ।
भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव जी को एक साथ फाँसी लगी थी 23 मार्च को । एक जगह ये ज़रूर पढ़ा था कि 14 फरवरी को फाँसी देने का फैसला सुनाया गया था ।
रचना का लिंक देने के लिए शुक्रिया । प्रस्तुति की सराहना के लिए हार्दिक आभार ।
सस्नेह
प्रेम ही प्रेम बिखरा है यहाँ , लगता है वेलेंटाइन बाबा यहीं ठहर गये....नये से नया तो कही वर्षों पुराना प्रेम...आश्चर्य ये कि अस्वस्थता के बावजूद कैसे बटोरा इतना सारा प्रेम आपने?! इसीलिए कहते हैं प्रेम में बहुत बड़ी शक्ति होती है ...
जवाब देंहटाएंएक से बढ़कर एक रचाएं प्रेम की कुछ गम्भीरता लिए तो कुछ परिभाषित करती और हास्य व्यंग के साथ मन माहौल को हल्का करती....लाजवाब रचनाएं चुनी हैं आपने...इतनी श्रमसाध्य प्रस्तुति की सराहना हेतु शब्द नहींमिल रहे बस कोटिश नमन🙏🙏🙏🙏 इस प्रेम
इस प्रेममयी प्रस्तुति में मेरी रचना भी सम्मिलित करने हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंपता नहीं मेरी साइट कल से हैंग पड़ी है पूरी टिप्पणी नहीं हो पा रही ।कल से कोशिश कर रही हूँ अब आधी आधी करके ही डाल रही हूँ
दे से आने एवं इस तरह की गुस्ताखी हेतु क्षमा चाहती हूँ
🙏🙏🙏🙏
प्रिय सुधा जी ,
हटाएंकल से आपकी साइट हैंग हो रही थी तो हम तो यही जानते हैं कि बड़े बड़े लोगों के साथ ऐसी छोटी छोटी बातें होती रहती हैं । 😄😄😄😄
वैसे पुरानी रचनाएँ पढ़ाने का एक अलग ही आनंद है ।
जब ब्लॉग शुरू किया जाता है तो बहुत कम पाठक पहुंचते हैं ।धीरे धीरे प्रसिद्धि मिलने लगती है और पाठक भी ज्यादा आते हैं ।
सराहना हेतु शुक्रिया ।
सुंदर चयन। बधाई।
जवाब देंहटाएंआभार गिरीश जी ।🙏
हटाएंप्रेम को परिभाषित और रेखांकित करतीं सुंदर और सार्थक रचनाओं के संकलन को सजाने के लिए आपको बहुत बहुत शुक्रिया दीदी ।पारिवारिक व्यस्तता में अभी सब पढ़ नहीं पाई, अब पढ़ूंगी। आपको मेरा सादर नमन एवम वंदन 💐👏
जवाब देंहटाएंप्रिय जिज्ञासा ,
हटाएंप्रस्तुति की सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
सस्नेह
आपकी प्रस्तुति से प्रेम है
जवाब देंहटाएंविभा जी ,
हटाएंआभार आपका ।
बहुत सुंदर प्रेममयी प्रस्तुति।इस सुंदर संकलन में मेरी रचना शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीया।
जवाब देंहटाएंNice Sir .... Very Good Content . Thanks For Share It .
जवाब देंहटाएंचांदनी के नीचे खाली गली में हम चल रहे थे 💏
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