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रविवार, 12 फ़रवरी 2017

576... अब कैसे कहूं ? ?

नमस्कार  दोस्तो  

सुप्रभात  
आज प

मेरी कविता में तुम

उन तमाम पन्नों पर
 लिखे हुए हजारों शब्दों में
मेरी एक भी कविता शामिल नहीं है
क्योंकि उनमें कहीं
मैंने,
तुम्हारा नाम नहीं लिखा है

पिता

पिता, कभी-कभी जी करता है 
कि कोई ज़ोर से डांटे,
पूछताछ करे,टोकाटाकी करे,
कहे कि आजकल तुम्हारे 
रंग-ढंग ठीक नहीं हैं.
घर से निकलूं तो कहे,
जल्दी वापस आ जाना,
देर से लौटूं तो कहे,
मेरी बात ही नहीं सुनते,
बिना कहे जाऊं तो पूछे,
कहाँ गए थे,

गुड़िया (बाल कविता )




मेरी गुड़िया रंग रंगीली
बेहद प्यारी छवि  उसकी
दिन रात साथ  रहती
मुझे बहुत प्यारी लगती |
है  बहुत सलीके वाली
होशियारी विरासत में मिली
पढाई में सब से आगे
सभी की दुलारी है
अभी से है चिंता  


जंगलों का हत्यारा सम्मानित सिकन्दर है !

                                              आधुनिकता की दौड़ में
                                              सब लगे हुए हैं 
                                              एक अंतहीन ,दिशाहीन होड़ में !
                                              धकिया कर एक-दूजे को ,
                                              सब चाहते हैं एक-दूजे से आगे
                                              निकल जाना ,
                                              ईमानदारी को सूखी रोटी के बजाय
                                              बेईमानी की मलाई  खाना !  



अब कैसे कहूं???

दोनों ने
किया था वादा
हमेशा साथ साथ चलने का,
फिर
मैंने किया भरोसा
और चलती रही आंखें मूंदे
प्रेम के अंधत्व में,
एक ठोकर लगी


अब  दीजिए आज्ञा 
धन्यवाद 
विरम  सिंह  

10 टिप्‍पणियां:

  1. वाह,,,,,
    शुभ प्रभात
    बढ़िया रचनाएँ
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. बढ़िया हलचल. मेरी रचना शामिल करने के लिए शुक्रिया.

    जवाब देंहटाएं

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