"एक बेबस माँ ने नवरात्रों के उपवास रखे थे.......!
ताकि नौ दिन तक तो उसका बेटा भरपेट खा सकें...!!"
रविवार से मन बहुत उदास है...
हमारे पास के गांव में...
एक शराबी बेटे ने...
कुलाहड़ी के तेज वार से...
अपनी बूहड़ी मां की हत्या...
इस लिये कर दी की...
...मां ने उसे शराब के लिये पैसे न दिये...
अजात्मृतमूर्खेभ्यो मृताजातौ सुतौ वरम् ।
यतः तौ स्वल्प दुखाय, जावज्जीवं जडो दहेत् ॥
( अजात् ( जो पैदा ही नहीं हुआ ) , मृत और मूर्ख – इन तीन तरह के पुत्रों मे से अजात और मृत पुत्र अधिक श्रेष्ठ हैं , क्योंकि अजात और मृत पुत्र अल्प दुख ही
देते हैं । किन्तु मूर्ख पुत्र जब तक जीवन है तब तक जलाता रहता है । )
अब पेश है...आज के लिये...मेरी पसंद...
पौराणिक दृष्टि से लिंग के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु और ऊपर प्रणवाख्य महादेव स्थित हैं । केवल लिंग की पूजा करने मात्र से समस्त देवी देवताओं की पूजा
हो जाती है । लिंग पूजन परमात्मा के प्रमाण स्वरूप सूक्ष्म शरीर का पूजन है । शिव और शक्ति का पूर्ण स्वरूप है शिवलिंग ।शिव के निराकार स्वरूप में ध्यान-मग्न
आत्मा सद्गति को प्राप्त होती है, उसे परब्रह्म की प्राप्ति होती है तात्पर्य यह है कि हमारी आत्मा का मिलन परमात्मा के साथ कराने का माध्यम-स्वरूप है,शिवलिंग
। शिवलिंग साकार एवं निराकार ईश्वर का ‘प्रतीक’ मात्र है, जो परमात्मा- आत्म-लिंग का द्योतक है । शिवलिंग का अर्थ है शिव का आदि-अनादी स्वरूप । शून्य, आकाश,
अनन्त, ब्रह्माण्ड व निराकार परमपुरुष का प्रतीक । स्कन्दपुराण अनुसार आकाश स्वयं लिंग है । धरती उसका आधार है व सब अनन्त शून्य से पैदा हो उसी में लय होने
के कारण इसे लिंग कहा है । शिवलिंग हमें बताता है कि संसार मात्र पौरुष व प्रकृति का वर्चस्व है तथा दोनों एक दूसरे के पूरक हैं । शिव पुराण अनुसार शिवलिंग
की पूजा करके जो भक्त भगवान शिव को प्रसन्न करना चाहते हैं उन्हें प्रातः काल से लेकर दोपहर से पहले ही इनकी पूजा कर लेनी चाहिए । इसकी पूजा से मनुष्य को भोग
और मोक्ष की प्राप्ति होती है ।
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प्रवीण गुप्ता - PRAVEEN GUPTA
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बस फिर क्या था जो शुरू हुआ लेखन का दूसरा दौर तो लगभग रोज लिखने लगी ।डायरियां भरने लगी जो पढा और जिया था सब धीरे धीरे व्यक्त होने लगा ।
अब मदर्स डे पर डायरी पेन नही देते मेरे बच्चे
आज बिटिया का जन्मदिन है । सुबह से उसे याद ही कर रही हूँ । मेरे भीतर जो भी रचनात्मकता बची रह गयी या पुनसृजित हुई सब तुम्हारे नाम बिट्टो । खूब खुश रहो ।
प्रसन्नता के सातों आसमान तुम दोनों के नाम ।
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मृदुला शुक्ला
---और याद आ रही है
माँ की बातें
हर रिश्ता विश्वास का नहीं
जड़ काट देता है
अब सूख गयी है जड़
लाल हुयी धरती के साथ
लाल हुयी हूँ मैं भी।
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दीप्ति शर्मा
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कभी-कभी ऐसा होता है कि किसी की कही बात फौरन समझ में नहीं आती। जब समझानेवाला ही समझाने में मुश्किल अनुभव करे तो भला समझनेवाला कैसे समझे? स्थिति तब और तनिक
कठिन हो जाती है जब, समझनेवाला लिहाज के मारे दूसरी बार पूछ भी न सके। तब, वह पल टल तो जाता है किन्तु दोनों ही उलझन में बने रह जाते हैं।
ऐसा ही एक बार हम दोनों भाइयों के बीच हो गया। न मैं समझ सका, न वे समझा पाए। लेकिन उस पल को टालने के लिए उन्होंने जो कहा था वह अब, लगभग सैंतालीस बरस बाद
मुझ पर हकीकत बन कर गुजर गया।
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विष्णु बैरागी
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मधु की समझ में नहीं आ रहा था कि सब मम्मियॉं झूठ क्यों बोलती हैं । कल मम्मी सेल में दोसौ रूपये की ड्रैस लेकर आई और बारह सौ की बता रही थीं । अनू तो कह रही
थी हम बड़े होटलों में शाउी ही में जाते हैं पर उसकी मम्म्ी कभी किसी होटल का कभी किसी होटल का नाम लेकर कहती हैं कि डिनर वहॉं किया । पर जब कि खाली चाट खाकर
वापस आ जाते हैं ।ऊपर से यह फर्स्ट आने की बात खूब रही ।यहॉं तो सबके बच्चे फर्स्ट आते हैं । अपने गाल को सहलाती हुई भी वह हंस पड़ी । तभी चलने के लिये नेहा
की मम्मी ने आवाज लगाई तो झूला छोड़ सब अंदर आ गईं
तभी एक महिला बोली, ‘मधु रिजल्ट दिखाना अपना।’
‘रिजल्ट ’भरे हुए गले से मधु जोर से बोली, ‘मैं नहीं दिखाऊँगी अपना रिजल्ट। मैं नेहा क्षिप्रा कोई भी फर्स्ट नहीं आता। मैं तो अर्थमेटिक में फेल हो गई हूँ।
फर्स्ट तो हर साल दीपा आती है। ओर बताऊँ छुट्टियों में मम्मी कहीं पहाड़ वहाड़ नहीं जाती बस नानी घर रहकर आ जाती है।’
‘नहीं मैं सब बताऊँगी। सब मम्मियाँ झूठ बोली है ? झूठ क्यों बोलती है यह मेरी फ्राक ़़़़’ ‘ मधु ज्यादा बड़ों के बीच नहीं बोलते ’ मम्मी चकी तीखी आवाज से रोती
हुई मधु अपने कमरे में जाकर चादर ओढ़ कर लेट गई। मन ही मन डर से कि आज अभी और पिटाई होगी। लेकिन फिर भी उसे बहुत अच्छा लग रहा था कि वह सब कह आई।
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shashi goyal
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farruq Abbas farruq Abbas
मातॄभाषा हो तो विषय को आसानी समझा जा सकता है किन्तु आज हमारे देश में मातृभाषा को किस तरह जबान से, चलन से, गायब कर अंग्रेजी को मातृभाषा बना दिये जाने की
पूरी कोशिश की जा रही है।
आज यह सिध्द हो चुका है कि मातृभाषा में शिक्षा बालक के विकास में ज्यादा सहयोगी है। अलग-अलग आर्थिक और सामाजिक परिवेश से आये विघार्थियों में किसी भी विषय
को समझने की क्षमता समान नहीं होती। अंग्रेजी में पढ़ाए जाने पर उनके लिये यह एक अतिरिक्त समस्या बन जाती है – विषय ज्ञान के साथ भाषा का ज्ञान। भाषा सीखना
अच्छी बात है और लाभदायक भी है। भाषा हमें नये समाज और संसार से जोडती है। लेकिन मातृभाषा की उपेक्षा कर शिक्षा के माध्यम से बलपूर्वक हटा कर अन्य भाषाओं को
विशेष स्थान देना निश्चित ही उचित नही।
जापान, रूस जर्मनी जैसे देश आज हम सबके लिये उदाहरण है जिन्होने भाषा की शक्ति से ही स्वयं को विश्व पटल पर स्थापित किया। अक्सर देखा जा सकता है छात्र छत्तीस
नहीं समझते मगर थर्टीसिक्स बोलो तो समझ जाते हैं। नवासी और उन्यासी में तो बडे बडे लोग अक्सर सोच में पड जाते हैं। किसी भी भाषा से शब्दों का लेन देन कोई गलत
नही। हिन्दी में उर्दू, फारसी, संस्कृत सहित कई लोकभाषाओं के बहुत सारे शब्द हैं जिनका बहुत से जानकार भी आज विभेद नही कर पाते उदाहरण के लिये – आवाज, शुरुआत,
दौरा इत्यादि। अंग्रेजी के भी ढेरों शब्द हैं। डेली, रेलगाड़ी, रोड, टाईम शब्द हिन्दी के हो गए हैं। ई-मेल, इंटरनेट, कम्प्यूटर, लैपटॉप, फेसबुक आदि शब्द हिन्दी
में चल निकले। धन अर्जन के लिये यदि हम दूसरे प्रान्त या देश जाते हैं तो वहाँ के लोगो के साथ सम्बन्ध पूर्वक जीने के लिये उनकी भाषा को सीखना हमारी प्राथमिकता
होनी चाहिये। लेकिन उसके लिये अपनी मातृभाषा को छोड देना किसी भी परिस्थिति में सम्मान जनक नही।
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अपर्णा त्रिपाठी
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आज बस इतना ही...
धन्यवाद।
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंकोई फोन नहीं
कोई मेल नहीं
समझ गई
मौसम सही हो गया है
एक सही व सटीक प्रस्तुति
सादर
बहुत बढियाँ लिंक..
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंकों के साथ सुन्दर हलचल
जवाब देंहटाएंबढ़िया हलचल प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंअपने ब्लॉग मेें मुझे जगह देने के लिये धन्यवाद
जवाब देंहटाएं