सादर अभिवादन
निम्नांकित पंक्तियाँ मरहूम श़ायर निदा फ़ाज़ली की लिखी है
जिसे वे अक्सर गुनगुनाया करते थे
गिरजा में मंदिरों में अज़ानों में बट गया
होते ही सुब्ह आदमी ख़ानों में बट गया
लफ़्ज़ों से जुदा हो गए लफ़्ज़ों के मआनी
ख़तरे के निशानात अभी दूर हैं लेकिन
...................................(प्रतिभा दीदी के ब्लॉग से )
अब चलते हैं पसंदीदा रचनाओं की ओर.....
जहाँ चुक चुकी थीं संवेदनाएं
जहाँ चुक चुकी थीं वेदनाएं
जहाँ चुक चुकी थीं अभिलाषाएं
तार्रुफ़ फिर कौन किसका कराये
बहुत उदास सी है
शाम आज
आसमान भी
खाली खाली
घर की ओर बढ़ते
उसके कदमों में
है कुछ भारीपन
यूँ तो अकसर
दबे पाँव ही आती है
उन्होंने शहर पहुँचते ही फ़ोन पर अपने आने की इत्तिला दी थी. ये पिछली मुलाकातों की कमाई थी कि वो आते तो फोन ज़रूर करते थे. इस बार कोई एक्सक्लुसिव इंटरव्यू की कोई योजना अख़बार के पास नहीं थी, इसलिए उनसे मिलने का कोई असाइनमेंट भी नहीं था. शाम का वक़्त अख़बार की दुनिया में मरने की फुर्सत भी न होने जैसा ही होता है. ऐसे में वक़्त चुराना ख़ासा मुश्किल काम था. लेकिन उनके साथ एक कप चाय पीने का लालच बड़ा था. सो जल्दी जल्दी काम समेटा और स्कूटर उठाया. मौसम में हलकी सी खुशबू दाखिल हो चुकी थी.
जय मन भावन, जय अति पावन, शोक नशावन,
विपद विदारन, अधम उबारन, सत्य सनातन शिव शम्भो,
सहज वचन हर जलज नयनवर धवल-वरन-तन शिव शम्भो,
मदन-कदन-कर पाप हरन-हर, चरन-मनन, धन शिव शम्भो,
सल्तनत के ज़वाल की आहें
ज़र्द जाहो-जलाल की आहें
मांगती हैं हिसाब वहशत का
हर सुलगते सवाल की आहें
बात पते की....
हर कोई इसे भी
एक शोध का
विषय बनाता है
उलूक दिन में
नहीं देख पाता है
तो क्या हुआ
रात में चश्मा
नहीं लगाता है
उलूकिस्तान में
इस तरह की
बातों को समझना
बहुत ही आसान
माना जाता है
आज्ञा दीजिए यशोदा को
सादर
बढ़िया प्रस्तुति सुन्दर हलचल यशोदा जी । आभार 'उलूक' के सूत्र को शीर्षक पर जगह देने के लिये ।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात सुंदर संकलन आभार आपका
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर प्रस्तुतिकरण छोटी बहना
जवाब देंहटाएंसुन्दर हलचल प्रस्तुति
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