जय मां हाटेशवरी...
ऐसी दौड़ी फगुनाहट ढाणी चौक फलांग
फागुन आया खेत में गये पड़ोसी जान।
मन के आँगन रच गए कुंकुम अबीर गुलाल
लाली फागुन माह की बढ़े साल दर साल।
आम बौराया आंगना कोयल चढ़ी अटार
चंग द्वार दे दादर मौसम हुआ बहार।
वर गेहूं बाली सजा खड़ी फ़सल बारात
सुग्गा छेड़े पी कहाँ सरसों पीली गात।--- पूर्णिमा वर्मन
अब पेश है...आज के लिये...
मेरे द्वारा पढ़ी गयी....रचनाओं के कुछ अंश...
5- जिन लोगों के पैर के तलवों में अत्यधिक मात्रा में पसीना आता है उनको कुछ देर पानी में थोड़ी सी फिटकरी(Alum) डाल कर अपने पैरों को डुबा कर रखना चाहिए इससे
आपके कुछ दिन प्रयोग से पैरों का पसीना आना कम होने के साथ-साथ पैरों की दुर्गन्ध में भी लाभ होता है -
6- थोड़े से पानी में दो-तीन टी-बैग डाले और उसमे अपनी हथेलियों को कुछ समय के लिए डुबा कर रक्खे ये प्रयोग आपके हाथों का पसीना आने के लिए प्राकृतिक रूप से
लाभदायक है-
7- बाजार में बिकने वाला कच्चा बैंगन(Brinjal)भी आप के पसीने को रोकने का कारगर उपाय है आप इसका रस निकाल कर हथेली और पैरों के तलवे पर लगाए आपका पसीना निकलना
बंद हो जाएगा-
हौसले गर बुलंद हो दिल में
रास्ते कामयाब हो जाए ३
ज्ञान का दीप भी धरूँ मन में
जिंदगी फिर गुलाब हो जाए
मन्नू को लड़की तो ठीक लगी. दिया जला के और सिर ढक कर के कुछ मन्त्र पढ़ रही थी. मन्नू ने सोचा अब बाकी बातें बाद में होंगी इसलिए निकलो यहाँ से. बाहर आकर देखा
तो ना जूते और ना जुराबें. इधर उधर भीतर बाहर कहीं नहीं. जहाँ जूते उतारे थे वहां दो पुराने मैले स्पोर्ट्स शूज़ मुस्करा रहे थे. कुछ देर दाएं बाएं देखने के
बाद निराश हो कर वही पुराने जूते पहन कर मन्नू भाई 72 नंबर मकान की ओर चल दिए. बड़ा नुक्सान हो गया लड़की के चक्कर में. पर वहां चाय पी कर और लड़की से बात करके
मन्नू को अच्छा लगा और अपने नए जूते की चोरी भी भूल गई. बाहर आकर घोषणा कर दी 'पसंद है'!
मन्नू के जाने के बाद लड़की ने चाय के बर्तन समेटने शुरू कर दिए और बड़बड़ाने लगी,
- मम्मी कहाँ से बुला लिया इस लड़के को? ज़रा ड्रेस सेंस तो देखो इस लड़के का ! गरम सूट के साथ बिना सॉक्स के स्पोर्ट्स शूज़ और वो भी फटीचर ! पता नहीं बैंक में
कैसे भरती हो गया? मेरी तरफ से मना कर दो.
लेकिन ‘एजूकेशन कैंप से गाँव के बच्चों का तात्कालिक भला हो सकता है और ‘मेडिकल कैंप’ से बूढों का। लेकिन पलायन की समस्या इनसे नहीं सुलझने वाली। बाहर निकल
चुके प्रत्येक युवक को ‘बीनू’ बनना पड़ेगा और गाँवों की ओर लौटना पड़ेगा, तभी बात बनेगी। सरकार को भी इसमें शामिल होना पड़ेगा। हिमाचल जाकर अध्ययन करना पड़ेगा कि
क्यों लाहौल-स्पीति और किन्नौर जैसे भयंकर इलाकों में भी पलायन नहीं है। अच्छी सड़कें और चौबीस घंटे बिजली देना पर्याप्त नहीं है, क्योंकि इस मामले में हिमाचल
के मुकाबले उत्तराखंड़ आगे है।
स्पर्श सिर्फ़ दोस्तों से ही नहीं, परिवार से भी अलग किया जा रहा था। कभी पापा का गले लगाना याद नहीं है मुझे। मम्मी का भी बहुत कम। छोटे भाई से लड़ाई में मार
पिटाई की याद है। चुट्टी काटना, हाथ मचोड़ देना जैसे कांड थे लेकिन प्यार से बैठ कर कभी उसका माथा सहलाया हो ऐसा मुझे याद नहीं।
लिखते हुए याद आ रहा है कि बचपन से कैशोर्य तक जाते हुए स्पर्श हमारी डिक्शनरी से मिटाया जा रहा था। ये शायद ज़िंदगी में पहली बार था कि मुझे लगा था कि मेरे
आसपास के लोग हैं वो इमैजिनरी हैं। मैं उन्हें छू कर उनके होने के ऐतबार को पुख़्ता करना चाहती थी। कभी कभी थप्पड़ मार कर भी।
लिखते हुए याद आ रहा है कि बचपन से कैशोर्य तक जाते हुए स्पर्श हमारी डिक्शनरी से मिटाया जा रहा था। ये शायद ज़िंदगी में पहली बार था कि मुझे लगा था कि मेरे
आसपास के लोग हैं वो इमैजिनरी हैं। मैं उन्हें छू कर उनके होने के ऐतबार को पुख़्ता करना चाहती थी। कभी कभी थप्पड़ मार कर भी। ये पहली बार था कि मैंने कुछ चाहा
था और उलझी थी कि सब इतने आराम से क्यूँ हैं। किसी और को तकलीफ़ क्यूँ नहीं होती। किसी और को प्यास नहीं लगती। अकेलापन नहीं लगता? सब के एक साथ गायब हो जाने
का डर क्यूँ नहीं लगता।
जब तक तुमसे नही मिली थी,
तब तक मैं इक स्त्री आजादी,
उसके स्वाभिमान,उसके आत्मसम्मान,
की बाते करती थी...
बाते आज भी वही है..
तुमसे मिल कर इन शब्द को अर्थ मिल गया,
मैंने जाना कि प्यार में,
इक स्त्री कमजोर नही होती,
समर्पित होती है....
धन्यवाद।
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति
चार पंक्तिया
चल पड़े हम उसी सफ़र के लिये
वो ही मंज़िल उसी डगर के लिये
जिसके साये में मिट गई थी थकन
मैं हूँ बेताब उसी शजर के लिये
सादर
बहुत सुन्दर फागुनी हलचल कुलदीप जी ।
जवाब देंहटाएंअति सुंदर सार्थक
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हलचल
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हलचल
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