आज फरवरी का अंतिम दिन है...
नव वर्ष भी पुरानी हो गयी...
हमारा ये ब्लौग भी...
600 दिनों का होने वाला है...
पाना है जो मुकाम वो अभी बाकि है,
अभी तो आये है जमी पर ,आसमां की उड़ान अभी बाकी है…
अभी तो सुना है सिर्फ लोगों ने हमारा नाम,
अभी इस नाम की पहचान बनाना बाकी है
अब पेश है...आज की कुछ चयनित कड़ियां...
फागुन आते ही-
सांध्य सुन्दरी के आते ही
आदित्य लुकाछिपी खेले
बालियों के पीछे से
खेले खेल संग उनके
आसमा भी हो जाए सुनहरा
साथ उनके खेलना चाहे
अपनी छाप छोड़ना चाहे
भली करेंगे राम, भाग्य की चाभी थामे-
भली करेंगे राम, भाग्य की चाभी थामे।
निश्चय ही हो जाय, सफलता तेरे नामे।
तू कर सतत प्रयास, कहाँ प्रभु रुकने वाले।
भाग्य कुंजिका डाल, कभी भी खोलें ताले।।
चाहत ...-
आज मरुस्थल का वो फूल भी मुरझा गया
जी रहा था जो तेरी नमी की प्रतीक्षा में
कहाँ होता है चाहत पे किसी का बस ...
अनाथ – सनाथ
सब कुछ अच्छी तरह से चल रहा था ! दिशा छ: वर्ष की हो गयी थी ! तभी उसके जीवन में जैसे भूचाल आ गया ! वत्सला को ब्लड कैंसर हो गया और वह नन्ही दिशा को बिलखता छोड़ भगवान के पास चली गयी ! पत्नी के विछोह में सौरभ दुःख में डूब गया ! दिशा की ओर से भी वह लापरवाह रहने लगा ! नन्ही दिशा सनाथ होते हुए भी एक बार फिर अनाथ हो गयी !
मौके का फ़ायदा उठा सौरभ के ऑफिस की एक सहकर्मी वन्दना सहानुभूति और संवेदना के पांसे चलते हुए सौरभ के दिल में घर बनाने लगी ! हर ओर से बिखरे सौरभ को वन्दना का साथ अच्छा लगने लगा ! और एक दिन उसने वन्दना के सामने विवाह का प्रस्ताव रख दिया ! वन्दना ने हाँ कहने में पल भर की भी देर न लगाई ! उसके सामने रईस खानदान के इकलौते वारिस का प्रस्ताव आया था जिसके पास इंदौर और जबलपुर में अकूत संपत्ति थी ! दिशा से पीछा छुड़ाने का हल उसके पास था कि वह उसे होस्टल भेज देगी और उसने यही शर्त सौरभ के सामने भी रखी थी जिसे सौरभ ने तुरंत स्वीकार कर लिया ! सौरभ ने अपने माता-पिता को बुला कर वन्दना के साथ विवाह करने की अपनी इच्छा व्यक्त कर दी ! न चाहते हुए भी सहमति देने के अलावा उनके पास कोई और विकल्प नहीं था !
कैसी यह मनहूस डगर है
नहीं लौटता जो भी जाता।
कंकरीट के इस जंगल में,
अपनेपन की छाँव न पायी।
आँखों से कुछ अश्रु ढल गये,
आयी याद थी जब अमराई।
पंख कटे पक्षी के जैसे,
सूने नयन गगन को तकते।
ऐसे फसे जाल में सब हैं,
मुक्ति की है आस न करते।
धक्का
मुझे अपने आप से, अपनों से
किये सारे वादे
जो अधूरे हैं पूरा करना है
दुनियाँ की तवारीख़ में
मौज़ूदगी दर्ज़ करनी है
दुनियाँ के आँसुओं को मायूसी से खींचकर
खुशियों और ख़्वाबों के टब में डुबोना है
औकात...
तभी ,इठलाती
इक ब्रांडेड जूती बोली
यहाँ रहोगे तो ऐसे
ही रहना होगा दबकर
देखो ,हमारी चमक
और एक तुम
पुराने गंदे ...हा....हा....
फिर एक दिन
पुरानी जूतों की शेल्फ
रख दी गई बाहर
रात के अँधेरे में
चुपचाप पुराने चप्पल
निकले और
धुस गए अपनी
पुरानी शेल्फ में
अपनी "औकात"
जान गए थे ।
आज बस इतना ही...
धन्यवाद।
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंश्रेष्ठ रचनाओं का आस्वादन किया जाएगा आज
एहसास दिलाया आपने
नया साल अब दूर नीहीम
सादर
बहुत सुन्दर सूत्रों से सुसज्जित आज की हलचल ! मेरी लघु कथा 'अनाथ-सनाथ' को आज की हलचल में सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से आभार कुलदीप जी !
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक्स हैं सभी ... बहुत आभार मुझे भी शामिल करने का ...
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएँ एक से बढ़कर एक । मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदय से आभार ।
जवाब देंहटाएंआज की हलचल में मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद कुलदीप जी |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति कुलदीप जी।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत लिंक रचनाऐं एक से बड़कर एक कुलदीप जी का बहुत आभार इतनी सुन्दर रचनाओं का रसास्वादन करवाने हेतु।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिंक्स...आभार
जवाब देंहटाएंउम्दा प्रस्तुतीकरण
जवाब देंहटाएंश्रीकृष्ण और उनकी मथुरा नगरी से जुडे रोचक पहलु स्थानीय इतिहासकार योगेन्द्र सिंग छोङ्कर् कि नजरो से
जवाब देंहटाएंhistorypandit.com: Hindi Website For Historical place, Sprituality,Lord Krishna, Biography, History, Educational Article
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