कल देश का आर्थिक बजट पेश हुआ...
अब पांच राज्यों में विधान सभा चुनाव होने बाकि है...
पर जनता केवल प्रतीक्षा ही करती रहती है...
...अच्छे दिनों की...
नेता बस अभिनय करते हैं...
तुम बैठे हो आसन पर
आज हम शोर मचाएंगे,
तुम्हारे अच्छे कामों को भी,
मिट्टी में ही मिलाएंगे...
तुमने भी यही किया,
अब हम भी यही करेंगे,
पहले तुमने हमे गिराया,
अब फिर तुम्हे गिराएंगे...
अब पेश है...
कुछ चुनी हुई रचनाओं के अंश...
सर्व प्रथम एक ताजे अखबार की कतरन
मालूम है
बात को
लम्बा
खींच
देने से
ज्यादा
समझ
में नहीं
आता है
बेटा ! परिश्रम एवं श्रम करने में बहुत अंतर होता है,
साक्षर हो कर मेहनत करे जो वो सदा सुखी होता है।
बेटा ! श्रम करने वाले को केवल गेहूँ ही मिलता है,
परिश्रम करने वाले को गेहूँ और गुलाब मिलता है।
लिख सके लेखनी स्तुति यह किंचित भी आसान नहीं !
निज उपासना के भाव से ये शब्द हैं ,सुर तान नहीं !
स्नेह आशीष की आशा में यह करपात्र फैलाया है !!
वसंत पंचमी के अवसर पर नेह नवल बरसाया है !
अज्ञान तिमिर को हटा ज्ञान , ज्योत जलाने आया है
अनुत्तरित हर प्रश्न , मौन जगतिक पृच्छायें ,
राग छेड़ वीणा- तारों में स्फुलिंग भर-भऱ ,
विकल धूममय दृष्टि - मंदता करो निवारित !
मनोकामना पूरो भारति !
दोस्तों ,कहानी तो आपने पढ़ ली ,अब कहानी पर ध्यान देते है- इस कहानी में 2 दोस्त है ,हर्ष और गोपाल। दोनों ही अमीर।लेकिन दोनों की सोच में बहुत अंतर है। जैसा की आपने कहानी में पढ़ा हर्ष अभिमानी किस्म का है और उसे छोटी लड़की की भावनाओ की कोई कद्र नही क्योंकि उसने फटे-पुराने कपड़े पहने थे।
लेकिन गोपाल के लिए वह बच्ची ,अन्य बच्चो की ही तरह है। उसे उस पर दया आ गयी और उसकी सारी बात भी ध्यान से सुनी और उसकी मदद भी की। गोपाल को उसके कपड़ो वगैरह से कोई फर्क नहीं , यानी कि गोपाल में अपनी अमीरी को लेकर कोई अहंकार नहीं।और वह down to earth है।
दोस्तों असल कामयाबी का राज सिर्फ इतनी-सी ही कहानी में है।अगर हम इस कहानी को समझ जाए तो अपनी ज़िन्दगी में सफलता को हमेशा के लिए बनाये रख सकते है। जो भी हर्ष जैसे लोग होते है ,करोड़ो रूपये कमाकर भी कंजूसों की ही तरह रहते है या फिर किसी जरूरतमंद की कभी मदद नहीं करते ,ऐसे लोग ही जल्दी ही असफल हो जाते है ,अगर असफल न भी हो तो भी लोग इनका दिल से आदर-सम्मान नहीं करते ,ऐसे ही लोगों की दूसरे लोग बुराई करते है क्योंकि यह इसी लायक है।
हौसला
बचा कर रखना
अँधेरे में
यूँ ही
डराती रहती हैं
काली रातें
सुबह से पहले
सांसें
चलती रहें
ठंडी हवा में भी
सुना है
बर्फ बन
भहरा कर गिरता है
जाड़ा
बसंत से पहले।
….......................
इस घटना के बाद पहली बार ऐसा हुआ कि राजा को मलाई की प्रतीक्षा करते-करते नींद आ गयी । उसी समय मंत्री ने राजा की मूछों पर सफेद चाक (खड़िया) का घोल लगा दिया । अगले दिन राजा ने उठते ही नौकर को बुलाया तो मंत्री और खजांची भी दौड़े आए । राजा ने पूछा -कल मलाई क्यों नही लाये ?
नौकर ने खजांची और मंत्री की ओर देखा.... तभी मंत्री बोला - हुजर यह लाया था, आप सो गए थे इसलिए मैने आपको सोते में ही खिला दी थी । देखिए अभी तक भी आपकी मूछों में लगी है । यह कहकर उसने राजा को आईना दिखाया । मूछों पर लगी सफेदी को देखकर राजा को विश्वास हो गया कि उसने मलाई खाई थी ।
अब यह रोज का क्रम हो गया, खजाने से पैसे निकलते और बंट जाते, राजा के मुंह पर सफेदी लग जाती ।
यह कहानी आज के समय में भी एक दम फिट है । आप कल्पना करें कि- आम जनता राजा है, मंत्री हमारे नेता हैं और अधिकारी व ठेकेदार, खजांची और हलवाई हैं
पैसा भले कामों के लिए निकल रहा है और आम आदमी को चूना दिखाकर बहलाया जा रहा है
आज बस इतना ही...
धन्यवाद।
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंअच्छी रचनाओं का संगम
साधुवाद
सादर
उम्दा प्रस्तुतीकरण
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति और आभार कुलदीप जी 'उलूक' के अखबार की कतरन के लिये ।
जवाब देंहटाएंबड़े दुःख की बात है. जब आक़ा खड़िया के घोल को मलाई बता रहा है तो उसकी पोल खोल कर सीधे-सादे, भोले-भाले, हर बात पर सहज ही विश्वास करने वाले देशवासियों के मन में शंकाएँ उत्पन्न करना तो देशद्रोह हुआ. हम तो यह मानते हैं कि हमारे खाते में काले धन की वापसी वाले 15 लाख भी जमा हो गए हैं. अरुण जेटली जैसा गोरा-चिट्टा आदमी तो दूध का धुला होगा ही. उस पर अविश्वास? राम ! राम!
जवाब देंहटाएंयह कहानी आज चरितार्थ हो रही है- जैसे एक षड्यंत्र ही चल रहा हो हर तरफ.
जवाब देंहटाएंआपका आभार,कुलदीप जी !
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ....
जवाब देंहटाएंबहुत सुुदर प्रस्तुति। मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद ।
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