नया रंग
उमंग भी नयी
मोद है वसंत का
पर बाकी आप पर छोड़ देता हूँ...
चलिए देखें आज क्या है
ठिठुरन का अन्त आ गया..........रचनाकार अज्ञात
मादक सुगन्ध से भरी
पन्थ पन्थ आम्र मंजरी
कोयलिया कूक कूक कर
इतराती फिरै बावरी
जाती है जहाँ दृष्टि
मनहारी सकल स्रष्टि
लास्य दिग-दिगन्त छा गया
देखो बसन्त आ गया।
वही रजाई वही कम्बल.....वन्दना गुप्ता
यहाँ तो वही रजाई वही कम्बल
गरीबी के उलाहने
भ्रष्टाचार के फरेब
जाति धर्म का लोच
वोट का मोच
लुभावने वादों का गुलदस्ता
आज का सच...
हर जाति
का प्रतिशत
दिखाया
गया है
आज के
अखबार में
मीडिया
भी खूब
भटकाती
रही है
इस
तरह के
समाचार में
आज बस यहीं तक
आज्ञा दें दिग्विजय को
शुभ प्रभात..
जवाब देंहटाएंआभार
रचना...
ठिठुरन का अन्त आ गया के
वास्तविक रचनाकार शास्त्री नित्य गोपाल जी कटारे जी हैं
इसकी जाकारी पमें विनय रंजन ने दी
मैं आभारी हूँ
सादर
ढ़ेरों आशीष संग आभार
जवाब देंहटाएंउम्दा प्रस्तुतीकरण
सुन्दर प्रस्तुति। आभार 'उलूक' का दिग्विजय जी एक पुराने सूत्र 'चुनाव और आदमी का प्रतिशत' को जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंउम्दा रचनाएं
जवाब देंहटाएंसुंदर संकलन। मेरी रचना को स्थान दिया, बहुत आभार।
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