"मैं और मेरे भोलेनाथ...
हम तो दोनों ही भुलक्कड़ है...
वो मेरी गलतियां भूल जाते है...
और मै उनकी मेहरबानियों को.."
आप सभी को...
पावन शिवरात्री की अग्रिम शुभकामनाएं...
अब देखिये...मेरी पसंद...
इस बार गधों का लीडर था रामप्यारे जो कि महाराज धृतराष्ट्र की संगत में रहकर आरपार हो चुका था. रामप्यारे ने घोडों के लीडर से कहा - घोडों के लीडर जी.. ये सही
है कि हम गधे कभी घोडे नही बन सकते पर क्या तुममें से कोई एक भी गधा बन कर दिखा सकता है?
अब तो घोडों के अस्तबल में खामोशी पसर गई...सब हैरान परेशान...ऐसे घोडे क्या काम के? जो कभी वापस गधे ही नही बन सकें? घोडों ने गधा बनने के लिये तुरंत अपनी
इमरजेंसी मीटिंग आहुत कर ली है जो शीघ्र ही होने वाली है.
इधर गधों के लीडर रामप्यारे की जय जय कार होने लगी....और इस जीत के शुभ अवसर पर गधों ने भी एक प्रीतिभोज का आयोजन कर डाला जिसमे खूब गुलाब जामुन, रसमलाई और
समोसे खाये गये.
वो मेरी समुन्दर पी जाने की चाह थी
जो ज़ख्म भरने का इंतज़ार भी न कर सकी
रेत को मुट्ठी में रख लेने का वहशीपन
जो समय को भी अपने साथ न रख सका
भूल गया था की पंखों का नैसर्गिक विकास
लंबे समय तक की उड़ान का आत्म-विश्वास है
क्या समय लौटेगा मेरे पास ...
ा
चूम लूं अंतिम बार
अपने प्रिय का गरदन
और कह जाऊं
जी न पाएंगे तुम बिन
कि वजूद सारा
डूबा है प्रेम में
और कुछ बचा नहीं मेरे अख़्तियार में
अब तुम हो...चंद सांसे हैं
अधरों पर अंकित है
एक सुहाना अहसास
मोगरे के फूलों सा महकता
मन का आंगन
बस तेरी याद....तेरी याद
फिर कुछ भी
कहने लिखने
के लिये नहीं सूझा
बेवकूफ
आक्टोपस
आठ हाथ पैरों
को लेकर तैरता
रहा जिंदगी
भर अपनी
क्या फायदा
जब बिना
कुछ लपेटे
इधर से उधर
और
उधर से इधर
कूदता रहा
यह औरत ही है जो अपने गर्भ मैं ९ महीने अपने बच्चे को रखती है और जन्म होने पे उस बच्चे को दूध पिलाना होता है| ऐसे मैं बच्चा अपनी माँ से लगा रहता है और वो
जैसी परवरिश करती है वैसा बनता चला जाता है. यह दोनों काम किसी मर्द के लिए करना संभव नहीं यह सभी जानते हैं.ऐसे मैं इस बात कि जिद करना कि हम घर को नहीं संभालेंगे
,बस बाहर जा के धन कमायेंगे कहाँ तक उचित है?
मर्द को ना गर्भ मैं बच्चे रखने हैं, ना दूध पिलाना है| मर्द शारीरिक रूप से भी अधिक मज़बूत है तो यदि वो बाहर के काम करे, मजदूरी करे, नौकरी करे ,व्यापार करे
तो इसे ना इंसाफी तो नहीं कहा जा सकता? यहाँ ना तो किसी गुलामी की बात है और ना ही किसी ज़ुल्म कि बात है. यह बात है पति और पत्नी के समझोते की जिसके नतीजे
मैं दोनों पारिवारिक सुख का अनुभव करते हुई सुखी जीवन व्यतीत करते हैं |
अब अंत में...
भूले-बिसरे पल
धन्यवाद।
शुभ प्रभात भाई कुलदीप जी
जवाब देंहटाएंप्यारी रचनाएँ पढ़वा रहे है आज आप
आभार
सादर
लाजवाब हलचल ... सुंदर सूत्र हैं सभी ...
जवाब देंहटाएंआभार मेरी रचना को शामिल करने का ...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति कुलदीप जी और आभार 'उलूक' के आक्टोपस को जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबढियासंकलन।
जवाब देंहटाएंबढियाँ..
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया...मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार और धन्यवाद
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