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रविवार, 18 अक्तूबर 2015

मैं सारी उम्र चमकने की कोशिश में-------अंक 92

जय मां हाटेशवरी....

आज कल मंदिरों में...
भगतों की भीड़ लगी है...
कोई तो है...
जेस के पास
हम अपनी मन की मुर्ातें...
 पुरी करने की इच्छा से जाते हैं....
पेश है आज की हलचल इन चंद पंखतियों के साथ....
पता नहीं कितनी रिक्तता थी-
जो भी मुझमे होकर गुजरा -रीत गया
पता नहीं कितना अन्धकार था मुझमे
मैं सारी उम्र चमकने की कोशिश में
बीत गया
भलमनसाहत
और मानसून के बीच खड़ा मैं
ऑक्सीजन का कर्ज़दार हूँ
मैं अपनी व्यवस्थाओं में
बीमार हूँ-------------------------धुमिल


अब जैसे ही माइक्रोफोन के चिह्न को क्लिक करेंगे उसका रंग बदल जाएगा। रंग बदलना इस बात का सूचक है वाइस टाइपिंग हेतु डिवाइस तैयार है। अब आप जो भी बोलेंगे वह
टैक्‍स्‍ट एरिया में टाइप हुआ पाएंगे।विंडोज़ आधारित कम्‍प्‍यूटर में भी माइक्रोफोन प्‍लग–इन करके भी वाइस टाइपिंग किया जा सकता है। इसके लिए ब्राउज़र ओपन कर
अपना जी.एम. एकाउन्‍ट ओपन करते हुए गुगल डॉक्‍यूमेंट ओपन कर लें और गुगल डॉक्‍यमेंट के टूल मैन्‍यू को माउस द्वारा क्लिक करते हुए वाइस टाइपिंग मैन्‍यू सक्रीय
करें। अब आप जो भी बोलेंगे वह गुगल डॉक्‍यूमेंट में टाइप हुआ पाएंगे।


वर्तमान समय में पृथ्वी को बचाने के लिए अनेक प्रकार के जागृति अभियान चलाये जा रहे हैं। चाहे वह अधिक मात्रा में पौधों का रोपण हो, जंगलो के कटान को रोकना
हो, नदियों को स्वछ बनाने से जुड़े अभियान हो या फिर कार्बन के उत्सर्जन को कम करने से जुडी हुयी जानकरियाँ हों। ये सभी चीज़े पृथ्वी के अस्तित्व को प्रभावित
करती हैं। इसी प्रकार से वर्तमान समय में पृथ्वी को बचाना वास्तव में स्थायी उपभोग (sustainable consumption) को  सुनिश्चित करने पर भी निर्भर करता है और यदि
हम मांस के उत्पादन की बात करें तो निश्चित ही इसमें अधिक ऊर्जा की खपत होती है।
गौमांस सेवन से सम्बंधित शोध पर रोम में स्थित संयुक्त राष्ट्र की संस्था "खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ)" ने भी कहा कि आम तौर पर मांस खाने वाले और मुख्य रूप
से गौमांस खाने वाले लोग वैश्विक पर्यावरण के लिए सबसे अनुकूल नहीं  हैं। साथ ही साथ यह बात भी चौंकाने वाली वाली हो साबित हो सकती है कि वैश्विक तौर पर गौमांस
उत्पादन जलवायु परिवर्तन के प्रमुख कारणों में से एक है। कुछ लोगों का तो यह भी कहना है कि मांस उत्पादन उद्योग में गौमांस 'शैतान' है।
विशेषज्ञों का मानना है कि  गौमांस के सेवन को त्यागने से कार्बन उत्सर्जन को काम किया जा सकता है। हाल ही में वातावरण में परिवर्तन से सम्बंधित पेरिस में हुए
एक सम्मेलन में Climate Change Negotiations के अम्बेस्डर ने अपने सम्बोधन में कहा "This over consumption of meat is really killing many things (there has
to be a campaign) that big  meat consumers should  stop that. At least try one day without  meat."  जिस तरह  से न सिर्फ भारत में बल्कि सारे विश्व में दिन
प्रतिदिन मांस का सेवन बढ़ता जा रहा है।  मांस का सेवन एक फैशन सा बनता जा रहा है उसको देखते हुये "खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ)" ने कहा है कि  2050  तक विश्व
में मांस की खपत 46


सरकारी डॉक्टरों और दवाखानों के अपेक्षा लोग झोला छाप डॉक्टर्स को प्राथमिकता देते है। कारण साफ़ है कि सरकारी दवा खाने हैं तो जरूर पर डॉक्टर कब बैठता है ये
पता ही नहीं चलता। ना लोगो को न सरकारों को। दूर गाँव में भी डेंगू से मर रहे है लोग, कुछ जानकारी के आभाव में ,कुछ दवा के आभाव में।
देखिये मीडिया को केवल दिल्ली दिखता, दादरी दिखता है, वहाँ हुयी एक मौत दिखती है।  पर बीमारी से असमय कालकलवित होते लोग नहीं दिखते। किसी साहित्यकार भी डेंगू
से हुयी मौतों को आधार बना कर पुरष्कार वापस नहीं किया??? इसे क्या कहना चाहिये?  प्रेमचन्द जीवित होते तो इसी को आधार बना कर पुरष्कार वापस करते ना कि भावो
में बाह जाते है।  आज के पत्रकार, साहित्यकार, और सरकार सभी केवल दादरी में ही सम्वेदनशील दिखाई पड़ते है। यही भारत है!!! जो दिख रहा है उसी का एहतराम है। आम
आदमी बस निरीह प्राणी है। रोज पैदा होता और मरता है। इनकी फिक्र कौन करता है।
 

Yedub App के जरिए अब आप अपने मनपंसीदा कलाकार की आवाज में अपने डायलाँग बोल सकते हैं। येडब नामक इस ऐप को yepaisa ने बनाया है, जिसमें लम्बी डायलाँग लाइब्रेरी
विभिन्न कैटेगरी वाइस उपलब्ध है। इस लाइब्रेरी में अमिताभ बच्चन, अक्षय कुमार, परेश रावल, अमरीश पुरी, प्राण इत्यादि जैसे बहुत सारे फिल्मी कलाकारो की आवाज
के डायलाँग है। इनमें से आप अपने मनपसंद कलाकार की आवाज में अपने डायलाँग डब करा सकते है।


 
अब न कोई रवींद्रनाथ ठाकुर है , न बंकिम , न शरतचंद्र और न ही भारतेंदु , प्रेमचंद है , न मैथिलीशरण गुप्त , दिनकर , निराला , महादेवी , नेपाली , बच्चन ,
न ही अज्ञेय , मुक्तिबोध , शमशेर आदि जो जनता से सीधे जुड़ा हो और जनता उस के पीछे चलने को , उस के कहे को , उस के लिखे को सहर्ष स्वीकार करने को तैयार हो। हां,
राजनीतिकों के डिक्टेशन पर चलने वाले , अपनी ज़िद , कुतर्क और अहंकार में जीने के आदी लेखक जिन को उन का पड़ोसी भी नहीं पहचानता , न ही कोई पाठक संसार है उन का
, ख़ुद ही लिखते हैं , ख़ुद ही पढ़ते हैं । अपठनीय इतने कि चेतन भगत जैसे मसाला लेखक उन की स्पेस ले लेते हैं । जनता और जनता की भावनाओं को समझने में नाकाम यही
लोग अकेले क्रांति की बिगुल बजाते हुए , अपने को खुदा मानते हुए , एकतरफा फ़ैसला लेते हुए इतिहास में दर्ज होने को बेताब दीखते हैं । इन की इस ललक कि सजनी हमहूं
राजकुमार , के क्या कहने


आज के लिये बस इतना ही...
कल और सजेगी आनंद की एक और हलचल...
एक नये अंदाज में...
धन्यवाद....

8 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात
    विविध जानकारियों से परपूर्ण
    अच्छा चयन
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. विविध जानकारियों से सजी '"पांच लिंकों का आनन्द' सुन्दर प्रस्तुति है.

    जवाब देंहटाएं
  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  4. कुलदीप जी अच्छा लगा आपके पर आकर ! किन्तु एक बात कहना चाहुगा की जिस समय आप "पांच लिंको का आनंद " सम्बंधित पोस्ट में पांचो पोस्ट लिंक देते हो उस समय अगर आप प्रत्येक पोस्ट के निचे रिफरेन्स के तौर पर लेखक एवं उस ब्लॉग का नाम भी लिखे जहा से आपने वह पोस्ट का लिंक लिया है इस हेतु उदहारण के तौर पर आप "चर्चामंच" नामक ब्लॉग को देख सकते हैं

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय महोदय,
      आप का सुझाव अति सुंदर है। हमे ब्लौग व रचनाकार के साथ पोस्ट लिंक करने में कोई आपत्ति नहीं है।
      पर हम पाठक के मन में रचना पढ़ने की उतसुकता जगाना जाहते हैं।
      कुछ रचनाकार प्रारंभ में कुछ अच्छा नहीं लिखते थे अर्थात जिन्होंने ब्लौग के माध्यम से लिखना ही प्रारंभ किया था। पर समय के साथ उनके लेखन में बहुत सुधार हुआ है और आज वे बहुत अच्छा लेखन करते हैं। पर अधिकांश पाठकों ने उनके ब्लौग पर जाना ही छोड़ दिया है।

      हटाएं
    2. आदरणीय मनोज भाई
      चर्चा मंच...
      जिसका जिक्र आप कर रहे हैं
      वहां पर भाई कुलदीप जी प्रति सोमवार
      चर्चा हेतु लिंक चयन करते हैं
      और मैं भी चर्चा मंच में बतौर चर्चाकार स्थापित थी
      आपका सुझाव उत्तम है...
      यदा-कदा हम भी ऐसा किया करते हैं
      हम सभी सुझावों का स्वागत करते है
      और अमल में भी लाते हैं
      सादर

      हटाएं

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