वो शायद तैयारी नहीं कर पाए होंगे
चलिए कोई बात नहीं...
ये रहे वो सूत्र जो मुझे पसंद आए...
विंड चाइम की घंटियों सी
किचन से आती
तुम्हारी खनकती आवाज का जादू
साथ ही, तुम्हारा बनाया
ज्यादा दूध और
कम चाय पत्ती वाली चाय का
बेवजह का शुरुर !!
मैंने इश्क़ के लिए अपने शहर के दरवाज़े बंद कर दिए हैं. हमेशा के लिए. हालांकि 'हमेशा' एक खतरनाक शब्द है कि जिसके इस्तेमाल के पहले दास्ताने पहनने जरूरी होते हैं वरना लिखे हुए हर शब्द में एक 'finality' आ जायेगी. कि जैसे अंतिम सत्य लिखा जा चुका हो.
वो स्नेह है
आपकी अनमोल यादों का
जिसे मैने अपने सिर-माथे लिया है
और आपको अर्पित ही नहीं
समर्पित भी किया है अंजुरी का जल
देखती आई हूँ बरसों से
अपनी ही प्रतिमा में कैद
महात्मा को धूप धूल
चिड़ियों के घोसले
और बीट से सराबोर,
पढ़े लिखे खबर वालों
को सुनाना खबर
अनपढ़ की बचकानी
हरकत ही कही जायेगी
खबर अब भी होती
है हवा में लहराती हुई
खबर तब भी होगी
कहीं ना कहीं लहरायेगी
बच्चों की ख़ुशी में ही माता-पिता की ख़ुशी
हर माता-पिता अपने बच्चों को खुश देख कर खुश होते है। दुनिया में ऐसे
कौन से माता-पिता है, जो अपने बच्चों को खरीदी करते देख, सुख-सुविधा से संपन्न होते देख खुश नहीं होंगे?
आज्ञा दें दिग्विजय को
सादर
सुप्रभात दिग्विजय जी....मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात दिग्विजय जी....मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसुंदर हलचल सुंदर सूत्रों के साथ आभार दिग्विजय जी 'उलूक' के सूत्र 'लिखना सीख ले अब भी लिखने लिखाने वालों के साथ रहकर कभी खबरें ढूँढने की आदत ही छूट जायेगी' को जगह देने के लिये ।
जवाब देंहटाएंWaaawaah ..... Bht sunder link sanyojan wa prastuti
जवाब देंहटाएंaabhhar
बढ़िया लिंक्स-सह-हलचल प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंसुंदर लिंक्स. आभार मेरी रचना को शामिल करने हेतु.
जवाब देंहटाएंअति सुंदर आदरणीय....
जवाब देंहटाएंशुक्रिया इस शीर्षकके लिए
जवाब देंहटाएंऔर मेरे ब्लॉग को शामिल करने के लिए ........
सुंदर सूत्रों के साथ सुंदर हलचल .........आभार दिग्विजय जी
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