जय मां हाटेशवरी...
मैं कुलदीप ठाकुर आनंद का एक और अंक लेकर उपस्थित हूं...
सब से पहले...
दुष्यंत जी की एक रचना जो आम आदमी की पीड़ा व्यक्त करती है...
इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है,
नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है।
एक चिनगारी कही से ढूँढ लाओ दोस्तों,
इस दिए में तेल से भीगी हुई बाती तो है।
एक खंडहर के हृदय-सी, एक जंगली फूल-सी,
आदमी की पीर गूंगी ही सही, गाती तो है।
एक चादर साँझ ने सारे नगर पर डाल दी,
यह अंधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो है।
निर्वचन मैदान में लेटी हुई है जो नदी,
पत्थरों से, ओट में जा-जाके बतियाती तो है।
दुख नहीं कोई कि अब उपलब्धियों के नाम पर,
और कुछ हो या न हो, आकाश-सी छाती तो है।
मुन्सिब क्या पकड़ेगा जुर्म को
जनाब के पसीने छूट रहे है
बस्ती में घुस आए है गीदड़
सुनो ज़रा गोर से कुते भौंक रहे है
पर आज का ये धर्म-संकट
दिखाता है कुछ नया रंग, नया ख़ून ।
नई माँगें , नये मानदण्ड,
कुछ उचित , कुछ अनुचित ।
एक बड़ा सा प्रश्नचिह्न , प्रतिक्षण , प्रतिपल
मुँह फाड़े खड़ा है ।
शुभ मुहूर्त की उधेड़बुन में सही वक्त निकल जाता है।
दो खरगोशों के पीछे दौड़ने पर कोई भी हाथ नहीं आता है।।
मेढ़कों के टर्र-टर्राने से गाय पानी पीना नहीं छोड़ती है।।
कुत्ते भौंकते रहते हैं पर हवा जो चाहे उड़ा ले जाती है।।
‘उलूक’ चलता ही
जा रहा था गाय
की खोज में
गाय गाय सोचता
हुआ चल रहा था
खाने से भरा थैला
उसके दायें हाथ से
कभी बायें हाथ में
कभी बायें हाथ से
दायें हाथ में
अपनी जगह को
बार बार
बदल रहा था ।
सखी सहेली
पास बुलाया
महफ़िल में अब
रंग जमाया
हर कोई फिर
दौड़ा आया
लिंक तो और भी हैं...
पर आनंद में केवल पांच लिंकों की अनुमति है...
आज के लिये पांच लिंक पूरे हुए...
धन्यवाद...
शुभ प्रभात कुलदीप भाई
जवाब देंहटाएंअच्छी रचनाएं चुनी आपने
साधुवाद..
सुंदर प्रस्तुति कुलदीप जी । आभार 'उलूक' का सूत्र ''गाय बहुत जरूरी होती है श्राद्ध करने के बाद पता चल रहा था' को स्थान देने के लिये ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति में मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंhardik dhnyavad , sundar links hai kuldeep ji
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति कुलदीप जी
जवाब देंहटाएं