मद्रास से....
सब ठीक-ठाक है...
सादर अभिवादन स्वीकारें....
आज की कड़ियाँ मैं चुन रही हूँ...
पढ़ रही हूँ और सुन भी रही हूँ..
आप सुनेंगे....सुनाती हूँ...
ये रही आज की कड़ियां.....
मुश्किल होता है समझ पाना
या की खुद को समझा पाना
जब आप किसी के साथ चल रहे हो
और उस के साथ होने का एहसास हो
तुम खूब रहे हम खूब रहे
तुम पार हुए हम डूब रहे
अपना न मुरीद रहा कोई
पर तुम सबके मतलूब रहे
सोचा कैसे -
सियासत में ही लाएँगे युवराज को
सीमा का प्रहरी, सोचा कैसे ?
सिर बोझ बहुत है टोपी का अपने
ढोयेँ व्यथा देश की ,सोचा कैसे ?
शिक्षण प्रशिक्षण राजनीति का देंगे
संस्कृति संस्कारों का, सोचा कैसे ?
उदय वीर सिंह का बेटा शहीदी पाये
मरे हमारा बेटा ! सोचा कैसे ?
आज एक अजीब सी
उलझन, कौतुहल,
बेचैनी, उद्विग्नता है.
भारी है मन
और उसके पाँव.
कोख हरी हुई है
मौत का राज
दरवाजे के अंदर से एक सफ़ेद साडी में लिपटी औरत ने प्रवेश किया
•
•
सभी देखने वालो के गले के नीचे थूक तक नहीं उतर रहा था।
चलो आज
ऐसा करें कि
बहुत दिनों से बंद
यादों की अलमारी के
ताले खोल दें
आज्ञा दें यशोदा को
फिर मिलेंगे.....
सादर
सुनिए बांसुरी में एक गीत
बढ़िया प्रस्तुति यशोदा जी ।
जवाब देंहटाएंअति सुंदर आदरणीय दीदी....
जवाब देंहटाएंबढ़िया पंचलिंकी हलचल प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंबढ़िया हलचल यशोदाजी। मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसुंदर लिंक सयोजन यशोदा जी. मेरी रचना को स्थान देने के लिए धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंसंजय जी मुझे आपका पंचलिंक ब्लाग बहुत पसंद आया है। ऐसे ब्लाग की परिकल्पना करना हर किसी के बस की बात नहीं है।
जवाब देंहटाएंसंजय जी मुझे आपका पंचलिंक ब्लाग बहुत पसंद आया है। ऐसे ब्लाग की परिकल्पना करना हर किसी के बस की बात नहीं है।
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