उदास नहीं होना, क्योंकि मैं साथ हूँ!
सामने न सही पर आस-पास हूँ!
पलकों को बंद कर जब भी दिल में देखोगे !
मैं हर पल तुम्हारे साथ हूँ !..
सादर अभिवादन..
ये रही आज की पसंदीदा रचनाओं के सूत्र..
रौशनी है
लोहे के घर में
अँधेरा है
खेतों में, गाँवों में
जब कोई छोटा स्टेशन
करीब आता है
संवाद
पूछती थी प्रश्न यदि, उत्तर नहीं मैं दे सका तो,
भूलती थी प्रश्न दुष्कर, नयी बातें बोलती थी ।
किन्तु अब तुम पूछती हो प्रश्न जो उत्तर रहित हैं,
शान्त हूँ मैं और तुमको उत्तरों की है प्रतीक्षा ।
अपनी रुस्वाई तेरे नाम का चर्चा देखूँ
एक ज़रा शेर कहूँ , और मैं क्या क्या देखूँ
नींद आ जाये तो क्या महफिलें बरपा देखूँ
आँख खुल जाए तो तन्हाई का सहारा देखूँ
अनदेखा ना होता हो
भला मानुष कोई भी
कहीं इस जमाने में
जो किताबों से इतर
कुछ मंत्र जमाने के
हिसाब के नये
बताता हो समझाता हो ।
शहर कभी कभी अपनी बत्तियां बुझा देता
और खुद को गाँव होने के दिलासे देता.
पॉवरकट की इन रातों में लड़की की नींद टूट जाती.
आसमान एक फीके पीले रंग का होता.
गर्मी की ठहरी हुयी दोपहरों का.
जब ये रंग धूल का हुआ करता था.
इस रंग का कोई नाम नहीं था.
लड़की चाहती थी इस रंग में ऊँगली डुबा ले
और जुबां से चख कर कहे...उदासी.
हम दोनों ही अपने रास्ते खो चुके थे
और नए रास्ते तलाश रहे थे
हम दोनों बहुत थक गए थे
लेकिन हारे नहीं थे
हम दोनों उदास थे
और मुस्कुराहटें ढूंढ रहे थे
इज़जात दें यशोदा को
फिर मिलते हैं
आगे क्या होगा
न मैं जानती हूँ
न आप
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंशुभप्रभात...नवरात्रों की शुभकामनाएं....
जवाब देंहटाएंसुंदर संकलन.....
सुंदर विविधरंगी लिंक्स..शुभकामनायें..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंसभी को नवरात्र की हार्दिक मंगलकामनाएं!
सुंदर प्रस्तुति । आभार यशोदा जी 'उलूक' की बकबक 'अनदेखा ना हो भला मानुष कोई जमाने के हिसाब से जो आता जाता हो' को स्थान देने के लिये ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक्स....
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति।
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