सर्व प्रथम प्रस्तुत है
भाई श्री कुलदीप ठाकुर की पसंदीदा रचनाओॆ की कड़ी...
मुझसे चाँद कहा करता है--
तू तो है लघु मानव केवल,
पृथ्वी-तल का वासी निर्बल,
तारों का असमर्थ अश्रु भी नभ से नित्य बहा करता है।
मुझ से चाँद कहा करता है--
- महामना हरिवंश राय बच्चन
शीतल चांदनी अंग जलाये
दाह से वो जल जाता होगा
याद उसे जब वो लम्हे आये
लाज से वो शरमाता होगा ...
प्रकाशन कर्ताः वाणी गीत
हम दोनों की पसंदीदा रचनाओं की कड़ी...
सम्पूर्ण कलाओं से परिपूरित,
आज कलानिधि दिखे गगन में
शीतल, शुभ्र ज्योत्स्ना फ़ैली,
अम्बर और अवनि आँगन में
रचयिताः श्रीप्रकाश शुक्ल
शरद की
बादामी रात में
नितांत अकेली
मैं
चांद देखा करती हूं
तुम्हारी
जरूरत कहां रह जाती है,
रचनाकारः स्मृति आदित्य
सहरा सहरा भटक रहा है
अपने इश्क़ में सच्चा चांद
रात के शायद एक बजे हैं
सोता होगा मेरा चांद...
श़ायरः परवीन शाकिर
प्रस्तुतिः प्रतिभा कटियार
कल पिघलती चांदनी में
देखकर अकेली मुझको
तुम्हारा प्यार
चलकर मेरे पास आया था
चांद बहुत खिल गया था।
रचयिताः फाल्गुनी
प्रस्तुतिः मेरी धरोहर
विभा दीदी का चयन...
परिन्दो को कभी क्या , माँ ने उड़ना सिखाया था ,
उन्हे तो बस किसी शाख से गिरकर बताया था ।
तुम्ह भी चुप चाप चले आये हो महफ़िल से ,
तुम्हे भी क्या उसी ने जाम पिलाया था ।
कवियत्रीः हेम ज्योत्सना 'दीप'
कुँद की कली सी दँत पाँति कौमुदी सी दीसी ,
बिच बिच मीसी रेख अमीसी गरकि जात ।
बीरी त्योँ रची सी बिरची सी लखै तिरछी सी ,
रीसी अँखियाँ वै सफरी सी त्योँ फरकि जात ।
रचयिताः अज्ञात
प्रस्तुतिः शहरयार 'शहरी'
चांदनी हो मुबारक सभी को चाँद आया है रस बरसाने
लेके अंगडाई अरमान जागे, फ़िर हरे हो गए हैं फ़साने
वक्त के घोल में तल्खियों को ,यूँ खंगाला बहुत वक्त मैंने
दाग दिल के मगर सख्त निकले ,आगये चांदनी में रुलाने
ब्लागः सर्जना से
खुली हुई छत पर पसरी हुई है चांदनी
तो आओ,
इस दूधिया रोशनी में लिखें
चांदनी बचाने की कविता
पसरे हुए हरसिंगार की खुशबू से
मह-मह करते आँगन की कविता
ब्लागः सहयात्री से
आदरणीय संजय भास्कर जी का चयन
चंदा की छाँव तले
तारों की बारात चली
ओढ़ के रुपहली चूनर
टिमटिमाती रात चली।
झरोखा में....पूनम श्रीवास्तव
कितनी खामोश चांदनी हैं रात की ,
वो जानती हैं , कोई,
सवाल इससे कहीं कर रहा होगा,
वो जो बैठा होगा , नजरो को उठाये हुए ,
तूफ़ान दिल में समाये हुए |
पहचान में..अंजली माहिल
खोये-खोये से चांद पर,
जब बारिश की बूंदे बैठती,
और बादल की परत,
घूंघट में हो, उसे घेरती,
तब फिसल कर गाल पर,
एक तब्बसुम खिलने लगे,
मेरा सागर में प्रीती बङथ्वाल “तारिका”
शरद की दूधिया चांदनी
और उसमें नहाये से तुम
नीम की फुनगी पे चांद
और मेरे कितने पास तुम
दिल में जज्बातों की हलचल
बिलकुल अनजान उससे तुम
स्वप्न रंजिता में...आशा जोगलेकर
आज मैं आल्हादित हूँ..प्रयास सफल हुआ
सहयोगियो को आभार..
उपलब्धियाँ भी कुछ कम नही मिली
काफी से अधिक ही है... संतुष्ट हूँ
दिन विशेष में सौवी प्रस्तुति
रचनाओं की कड़ियाँ प्रासंगिक हैं
और संग्रहणीय भी है
और अंत में ऋता बहन रचित कुछ हाईकू
जिसे आज तक किसी ने नहीं पढ़ा
अमृत -वर्षा
चाँदनी की किरणें
धरा पर करें।
कल एक घटना होगी और परसों
कोई किसी से कह रहा होगा यूँ
हुआ था शोर पिछली रात को दो चाँद निकले है,
बताओ क्या जरूरत थी तुम्हें छत पर टहलने की.
आज्ञा दें यशोदा को
लोकमयी दिशा
जवाब देंहटाएंचन्द्र ज्यूँ पूर्ण युवा
कौमुदी साड़ी
पहने त्युं रजनी
उफन पड़े सिंधु
सबकी सार्थक मेहनत
आप एक बार झांक लिए हैं
यही बहुत है हमारे लिए
शुभ प्रभात...
जवाब देंहटाएंहमारा और समस्त पाठकों का साथ...
इसी तरह चलता रहेगा...
पांच लिंकों का आनंद...
नित्य पढ़ने की...
आप सब की आदत बने...
यही अब हमारा प्रयास रहेगा...
सौवाँ अंक की शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंबढ़िया हलचल प्रस्तुति हेतु आभार!
लाजबाब लिनक्स
जवाब देंहटाएंबधाई
शतक मारने के लिये पंचों को बधाई और ढेर सारी शुभकामनाऐं आगे के लिये । बहुत सुंदर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंएक से बढ़कर एक बढ़िया लिंक्स मजा आ गया हमारा प्रयास जारी रहेगा बढ़िया हलचल प्रस्तुति हेतु सभी का आभार आभार !!
जवाब देंहटाएंदेखकर अकेली मुझको
जवाब देंहटाएंतुम्हारा प्यार
चलकर मेरे पास आया था
चांद बहुत खिल गया था।
देरी से आया हूँ पर एक से बढ़कर एक बढ़िया लिंक्स
शतक की बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंwww.raajputanaculture.blogspot.com
आभार अमृत वर्षा के लिए ! शतक के लिए हार्दिक बधाई...सादर
जवाब देंहटाएंआभार ऋता बहन
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