शतक से अधिक दूर नहीं
बस ये हुआ ही समझिए..
ये रही आज की पसंदीदा रचनाओ की कड़ियां...
सिलसिला आज तो जुड़ा कोई
नफ़रतें छोड़ कर मिला कोई
आसरो से बँधा रहा जीवन
मोगरा डाल पर खिला कोई
हमारा बन के हम में ख़ुद समा जाने को आतुर हैं।
हृदय के द्वार खुल जाओ–किशन आने को आतुर हैं॥
अगर हम बन सकें राधा तो अपने प्रेम का अमरित।
किशन राधा के बरसाने में बरसाने को आतुर हैं॥
ये काली घनी अँधेरी रात
उनकी यादो की बारात ,
चाहे से ना जिन्हें भूल सके
आती है याद हर एक बात।।
"देखो - सब उन्हें ही घेर रहे हैं.
बुद्धिजीवी, मास्टर, पत्रकार, कवि और मानवाधिकार वाले
सभी हत्यारों को ही दोषी क्यों ठहरा रहे हैं?
यह कहाँ का न्याय है?
आख़िर जो मारा गया - उसका भी तो दोष रहा ही होगा?"
अपने मुक़द्दर में नहीं..
मंदिरों में आप मन चाहे भजन गाया करें,
मैकदा ये है यहाँ तहज़ीब से आया करें।
रात की ये रौनकें अपने मुक़द्दर में नहीं,
शाम होते ही हम अपने घर चले आया करें।
अंधेरों के पीछे के अँधेरे भी
उतने ही घनेरे होते हैं
ये जानकर होने लगता है अहसास
भविष्य की कछुआ चाल का
जिसमे न गति होगी न रिदम न संगीत
न सुर न लय न ताल
और अंत में एक दिन पुराने अखबार की एक कतरन
में लिखी बातें........
हो गया शुरु
तुम्हारा भी
देश निकाला
आ गई है खबर
सरकार ने सरकारी
आदेश है निकाला
‘गाँधी आश्रम’ के
सूचना पटों से
अभी निकाले जाओगे .
प्राची की लाली,मेरी पेशानी से होते
गालों को चूमते ,गर्दन तक उतर जाती है
मैं उस स्निग्ध लालिमा की
रक्तिम आभ में अक्षय ऊर्जा से
भर जाती हूँ और महसूस करती हूँ
शुभप्रभात....
जवाब देंहटाएंअति उत्तम संकलन...
आभार।
बहुत सुंदर प्रस्तुति हलचल सौ की ओर बढ़ती हुई । आभार 'उलूक' का यशोदा जी सूत्र 'गाँधी बाबा देखें कहाँ कहाँ से भगाये जाते हो और कहाँ तक भाग पाओगे' को जगह दी।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया हलचल प्रस्तुति ......आभार!
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